दुनियाभर के तमाम देश कोरोना वायरस के खिलाफ अपने-अपने तरीके से लड़ रहे है. लेकिन इस लड़ाई में एक दवाई ऐसी है, जिसने ज्यादातर देशों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है. इस दवा का नाम है Hydroxy-Chloro-quine.
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दुनियाभर के तमाम देश कोरोना वायरस के खिलाफ अपने-अपने तरीके से लड़ रहे है. लेकिन इस लड़ाई में एक दवाई ऐसी है, जिसने ज्यादातर देशों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है. इस दवा का नाम है Hydroxy-Chloro-quine. पूरी दुनिया की दवाओं की ज़रूरत का 10 प्रतिशत भारत पूरा करता है और जेनरिक दवाओं के उत्पादन और सप्लाई के मामले में भी भारत पूरी दुनिया में सबसे आगे है .
Hydroxy-Chloro-quine भी एक जेनरिक दवा है. इसलिए अब अमेरिका समेत दुनिया के 30 देश इस मामले में भारत से मदद चाहते हैं. लेकिन सवाल ये है कि क्या 135 करोड़ आबादी वाले भारत के पास इस दवा का इतना स्टॉक है कि वो पूरी दुनिया की मदद कर सके. इस महामारी को देखते हुए फिलहाल भारत ने ज़रूरी दवाओं के निर्यात पर पाबंदी लगा दी है. इसलिए दुनिया की मदद करने का फैसला भारत के लिए आसान नहीं है.
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच शनिवार को इस मुद्दे पर फोन पर बातचीत हुई. पूरी दुनिया में कोरोना वायरस के संक्रमण के सबसे ज्यादा मामले अमेरिका में सामने आए हैं और अमेरिका चाहता है कि भारत मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल होने वाली Chloro-Quine अमेरिका को बेचे. डोनल्ड ट्रंप को यकीन है कि ये दवा लाखों अमेरिकियों की जान बचा सकती है. इसलिए वो चाहते हैं कि भारत इसके निर्यात से प्रतिबंध हटा ले. पहले आप ये सुन लीजिए कि ट्रंप ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस विषय पर क्या कहा . फिर हम आपको बताएंगे कि क्या वाकई Chloro-quine कोरोना वायरस को हरा सकती है ?
डोनल्ड ट्रंप इस दवा को लेकर बहुत उत्साहित हैं लेकिन वैज्ञानिक अभी इस दवा के इस्तेमाल को लेकर एक मत नहीं हैं. फिर भी दुनिया भर की सरकारें चाहती हैं कि वो ज्यादा से ज्यादा मात्रा में Chloro-Quine जमा कर लें. ब्राज़ील के राष्ट्रपति भी प्रधानमंत्री मोदी से बात करके इस दवा की सप्लाइ सुनिश्चित करने का आग्रह कर चुके हैं.
सार्क देशों के अलावा इंडोनेशिया और यूएई की सरकारें भी इस मामले में भारत से मदद मांग रही है. कुल मिलाकर 30 देश इस संबंध में भारत से आग्रह कर चुके हैं. कोरोना वायरस से पहले दुनियाभर की दवाओं की ज़रूरत का एक बड़ा हिस्सा भारत ही पूरा करता था. दवाओं के उत्पादन के मामले में भारत पूरी दुनिया में तीसरे नंबर पर है और दुनिया की जेनरिक दवाओं की ज़रूरत का 20 प्रतिशत भारत ही पूरा करता है.
जेनरिक दवाओं के उत्पादन में भारत पहले नंबर पर
ऐसा इसलिए है क्योंकि जेनरिक दवाओं के उत्पादन में भारत पहले नंबर पर है. जेनरिक दवाएं ऐसी दवाएं होती हैं जिनका पेटेंट समाप्त हो चुका होता है. लेकिन इनका केमिकल फार्मूला मूल दवा जैसा ही होता है. Cloro-quine भी एक ऐसी ही जेनरिक दवा है. भारत में बनी ऐसी दवाओं की मांग पूरी दुनिया में इसलिए सबसे ज्यादा है क्योंकि इनकी कीमत बाकी देशों के मुकाबले काफी कम हैं. भारत दुनिया भर की सरकारों को ये दवा सप्लाई करने में सक्षम है. क्योंकि फिलहाल भारत में कोरोना वायरस के मामले कई देशों के मुकाबले बहुत कम है. लेकिन अगर इन मामलों में तेज़ी से वृद्धि हुई तो भारत को ये दवा अपने लोगों के लिए सुरक्षित रखनी होगी और यही दवा कंपनियों की सबसे बड़ी दुविधा है.
DNA वीडियो:
क्लोरोक्वीन मलेरिया के इलाज में कारगर मानी जाती है और कुछ मामलों में इसने कोरोना वायरस के मरीज़ों को भी लाभ पहुंचाया है. लेकिन अभी इसे लेकर इतने बड़े स्तर पर कोई रिसर्च नहीं हुई है कि इसे कोरोना वायरस का राम बाण इलाज घोषित किया जा सके. भारत का स्वास्थ्य मंत्रालय भी उन लोगों को इस दवा के इस्तेमाल की इजाजत दे चुका है जो कोरोना वायरस के मरीज़ों का इलाज कर रहे हैं या फिर जो किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए है. लेकिन इस इजाजत का अर्थ ये नहीं है कि ये दवा कोरोना वायरस के संक्रमण को ठीक कर सकती है बल्कि इसका मतलब सिर्फ ये है कि ये दवा शायद संक्रमण से बचा सकती है.
हालांकि अभी इस दवा के असर को लेकर कुछ भी कहना जल्दबाज़ी है लेकिन जिस तरह से दुनिया भर की सरकारें भारत से ये दवा मांग रही है उसे देखकर ये कहा जा सकता है कि पूरी दुनिया को इस समय ये दवा संजीवनी बूटी की तरह लग रही है. लेकिन नतीजे पर पहुंचने से पहले...पूरी दुनिया को इस दवा को लेकर बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक शोध करने होंगे.