DNA ANALYSIS: अमेरिकी अखबार The New York Times ने क्यों छापी भारत के श्मशान घाटों की तस्वीरें
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DNA ANALYSIS: अमेरिकी अखबार The New York Times ने क्यों छापी भारत के श्मशान घाटों की तस्वीरें

DNA ANALYSIS: जब अमेरिका में कोरोना महामारी से मरने वाले लोगों की संख्या 1 लाख के पार हो गई तो The New York Times ने अंतिम संस्कार की तस्वीरें नहीं छापी. बल्कि उन अमेरिकी लोगों के नाम पहले पन्ने पर लिखे, जिनकी मौत इस वायरस की वजह से हुई.

अमेरिका दिखा रहा दोहरा चरित्र.

नई दिल्ली: अब हम आपको अमेरिका (US) के असली चरित्र के बारे में बताते हैं. और इसे समझने के लिए आपको ये तस्वीर देखनी होगी. ये तस्वीर अमेरिका के एक अखबार New York Times की है, जिस पर लिखा है कि Cremation Never End, मतलब खत्म ना होने वाले अंतिम संस्कार. अमेरिका के इस अखबार ने भारत के श्मशान घाटों पर धधकती चिताओं की ये तस्वीर अपने पहले पन्ने पर छापी है.

अमेरिका का दोहरा चरित्र

लेकिन क्या आपको पता है कि जब अमेरिका में कोरोना वायरस (Coronavirus) की वजह से हजारों लोग मर रहे थे तो इस अखबार के पहले पन्ने पर क्या खबर थी. इसे अब आप इन तस्वीरों से समझिए. जब अमेरिका में इस महामारी से मरने वाले लोगों की संख्या 1 लाख के पार हो गई तो इस अखबार ने अंतिम संस्कार की तस्वीरें नहीं छापी. बल्कि उन अमेरिकी लोगों के नाम पहले पन्ने पर लिखे, जिनकी मौत इस वायरस की वजह से हुई. कुछ ऐसा ही इसने तब किया, जब अमेरिका में मौतों की संख्या 5 लाख के पार पहुंची.

मृतकों के लिए अखबारों के अलग-अलग मापदंड

यानी दो देश और दोनों के लिए अलग-अलग मापदंड. New York Times का ये पन्ना बताने के लिए काफी है कि वो अपने लोगों के अंतिम संस्कार की तस्वीरें अखबार में ना छाप कर उनकी गरिमा का ख्याल रखता है. लेकिन जब बात भारत की आती है तो वो इसे पूरी तरह भूल जाता है. हमारे देश के लोगों की जलती चिताएं इस अखबार के लिए ख़बरों का श्रृंगार बन जाती हैं. और यही है अमेरिका का असली चरित्र.

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कोरोना से जंग में अमेरिका से आगे है भारत

भारत की आबादी 135 करोड़ है और अमेरिका की आबादी सिर्फ़ 33 करोड़ है. लेकिन कम आबादी होने के बावजूद अमेरिका में कोरोना वायरस से अब तक 5 लाख 72 हज़ार लोगों की मौत हुई है. जबकि 135 करोड़ की आबादी वाले भारत में अब तक 1 लाख 95 हज़ार लोगों की इससे जान गई है.

ये आंकड़े बताने के लिए काफ़ी हैं कि भारत ने कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ जंग में अमेरिका से अच्छा काम किया. और अपने कई लोगों की जानें बचाई. जबकि ख़ुद को सुपर पावर बताने वाला अमेरिका कम आबादी के बावजूद अपने लाखों लोगों की जान नहीं बच पाया.

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अमेरिकी अखबारों ने नहीं छापी अपने देश की तस्वीरें

हालांकि इसके बावजूद अमेरिका के लोगों के अंतिम संस्कार की तस्वीरें कभी अखबार के पहले पन्ने पर नहीं छपी. लेकिन भारत के श्मशान घाटों की तस्वीरें वहां इस तरह इस्तेमाल हो रही हैं, जैसे यहां मरने वाले लोगों की कोई गरिमा या सम्मान ना हो. आज जब हमने Google पर इस पर सर्च किया तो हमें ये तस्वीरें मिलीं. ये तस्वीरें भारत की तुलना ज़्यादा संवेदनशील हैं और इनमें ये ध्यान रखा गया है कि इससे मृतकों के परिवार को ठेस ना पहुंचे.

अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप में जब कोरोना वायरस की दूसरी लहर आई थी और वहां हर दिन हज़ारों लोग मर रहे थे तो भारत ने कभी भी इन देशों के हालात का मज़ाक़ नहीं बनाया. हमारे देश ने हमेशा मदद की पहल की और दूसरी लहर के दौरान यूरोप समेत कई देशों को पीपीई Kit, मास्क और वैक्सीन भेजीं. भारत अब तक कुल 80 देशों को वैक्सीन भेज चुका है. लेकिन इन देशों ने कभी ऐसा नहीं किया.

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अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप के देश अपने यहां होने वाली मौतों को तो पूरा सम्मान देते हैं, लेकिन जब बात भारत की आती है, ब्राज़ील की आती है और दक्षिण अफ्रीका की आती है तो ये देश अपना असली चरित्र दिखा देते हैं.

कल से भारत में ये चर्चा हो रही है कि अमेरिका ने मुश्किल की इस घड़ी में भारत का साथ देने के लिए वैक्सीन के Raw Material पर लगी रोक हटा ली है और इसके अलावा मेडिकल उपकरण भेजने की भी बात कही है.

लेकिन यहां हम आपको ये बात बताना चाहते हैं कि अमेरिका ने ये ऐलान करने में बहुत देर कर दी है. भारत पिछले डेढ़ महीने से ये रोक हटाने के लिए कह रहा था, लेकिन अमेरिका इसके लिए सहमत नहीं हुआ. अमेरिका की दलील थी कि वो पहले अपने लोगों को वैक्सीन लगाएगा और फिर दूसरे देशों को Vaccines के लिए Raw Material देगा. इस फ़ैसले से भारत में वैक्सीन के उत्पादन पर असर पड़ा और देश में वैक्सीन की कमी का संकट हम सभी ने देखा. हालांकि पहले भी ऐसे कई मौक़े आए हैं, जब अमेरिका ने भारत की मदद करने से इनकार कर दिया. लेकिन भारत ने हार नहीं मानी.

1990 में अंतरिक्ष मिशन के लिए अमेरिका ने भारत के साथ Cryogenic Technology साझा करने से इनकार कर दिया था. लेकिन बाद में भारत ने ख़ुद को इस क्षेत्र में विकसित कर लिया और आज हमारे देश के वैज्ञानिकों के पास ये Technology मौजूद है.

इसी तरह 1990 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल में युद्ध चल रहा था तो भारत ने अमेरिका से GPS Data साझा करने के लिए कहा था ताकि वो कारगिल की ऊंची चोटियों पर छिप कर बैठे आतंकियों के ठिकाने के बारे में पता लगा सके और अमेरिका ने तब भी हमारी मदद नहीं की थी. लेकिन भारत ने इस क्षेत्र में भी काम किया और आज हमारे पास अपना सैटेलाइट है, जिससे हम दूसरे देशों को भी GPS Data दे सकते हैं.

इसी तरह 1980 के दशक में अमेरिका ने Super Computer बना लिया था और ये Super Computer मौसम का पूर्वानुमान लगाने में भी मददगार था. तब भारत ने ये Technology अमेरिका से साझा करने के लिए कहा था लेकिन अमेरिका ने इसे मानने से इनकार कर दिया था.

अमेरिका के इस इनकार के बाद ही वर्ष 1988 में भारत ने Centre for Development of Advanced Computing की स्थापना की, जिसने सिर्फ़ 3 वर्षों में ही देश का पहला Super Computer विकसित कर लिया था.

आज भले अमेरिका ने वैक्सीन के Raw Material पर लगाई रोक हटा ली है लेकिन आपको जानकर ख़ुश होगी कि आने वाले कुछ महीनों के बाद भारत इसके लिए भी किसी देश पर निर्भर नहीं रहेगा. जिस Adjuvant के लिए आज हम अमेरिका पर निर्भर हैं, उसमें भी हमारा देश जल्द आत्मनिर्भर बन जाएगा.

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