सिस्टम को ये पता होता है कि किसी अपराधी के कौन से नेता और कौन से अधिकारियों से संबंध हैं.
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नई दिल्ली: जो लोग ये कहते हैं कि विकास दुबे का एनकाउंटर इसलिए कर दिया गया क्योंकि उसके पास नेताओं और अधिकारियों के राज थे. ऐसे लोगों को ये भी बताना चाहिए कि आखिर जिन बड़े-बड़े अपराधियों का अब तक एनकाउंटर नहीं हुआ, उन्होंने ही कौन से राज बता दिए हैं?
राज बताने की बात तो दूर ये अपराधी, विधायक और सांसद बन चुके हैं और अगर विकास दुबे जिंदा रहता, तो इसमें कोई संदेह नहीं कि वो भी भविष्य में एक बड़ा नेता बन जाता.
इन नेताओं पर कई आपराधिक मामले
उत्तर प्रदेश में मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद जैसे अपराधियों का नाम सब जानते हैं. मुख्तार अंसारी करीब 15 वर्ष से जेल में है, उसके खिलाफ हत्या, अपहरण और अवैध वसूली के 40 से ज्यादा मामले दर्ज हैं, लेकिन वो फिर भी लगातार चुनाव जीतता रहा और वो इस वक्त मऊ विधानसभा सीट से बहुजन समाज पार्टी का विधायक है.
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इसी तरह एक नाम अतीक अहमद का है, जिसके खिलाफ करीब 42 गंभीर मामले दर्ज हैं. ये भी फिलहाल जेल में है. लेकिन अतीक अहमद भी कई बार विधानसभा चुनाव जीत चुका है विधायक बन चुका है और यही अतीक अहमद समाजवादी पार्टी के टिकट पर उस फूलपुर लोकसभा सीट से सांसद भी चुना गया था, जिस सीट से कभी देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने थे.
इसके अलावा हरिशंकर तिवारी, विजय मिश्रा, बृजेश सिंह, धनजंय सिंह जैसे कई नाम हैं, जिन्हें उत्तर प्रदेश में बाहुबली कहा जाता है, और इनमें से ज्यादातर लोग पिछले 30 वर्षों में या तो खुद नेता बन चुके हैं या फिर इनके परिवार के लोग नेता हैं.
यहां ये भी समझना जरूरी है कि सिस्टम को ये पता होता है कि किसी अपराधी के कौन से नेता और कौन से अधिकारियों से संबंध हैं. इसके लिए किसी से राज उगलवाने की जरूरत नहीं पड़ती, इसके लिए उस इच्छा शक्ति की जरूरत पड़ती है जिसके जरिए ऐसी सांठगांठ का सफाया किया जा सके.
1990 में रखा अपराध की दुनिया में कदम
विकास दुबे ने वर्ष 1990 में अपराध की दुनिया में कदम रखा था और उस समय उत्तर प्रदेश में जनता दल की सरकार थी और मुख्यमंत्री थे मुलायम सिंह यादव. 1990 से लेकर वर्ष 2020 तक उत्तर प्रदेश पर करीब 12 मुख्यमंत्रियों ने शासन किया. इन मुख्यमंत्रियों में समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव से लेकर, बीजेपी के कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह शामिल थे.
इसके अलावा बीएसपी की अध्यक्ष मायावती भी 4 बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं और मुलायम सिंह के पुत्र अखिलेश यादव वर्ष 2012 से 2017 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और अब योगी आदित्यनाथ ये जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. लेकिन हैरानी की बात ये है कि 11 मुख्यमंत्री और करीब 10 सरकारें बदल जाने के बाद भी विकास दुबे अपने अंजाम तक नहीं पहुंचा बल्कि इस दौरान उसका साम्राज्य लगातार बड़ा होता रहा और वो एक लुटेरे से हत्यारा और हत्यारे से गैंगस्टर में बदल गया.
इस दौरान इस सिस्टम में ये विकास सबके साथ था और इसने सबका विकास किया. लेकिन 2020 में विकास के पापों का घड़ा भर गया और उत्तर प्रदेश की जो नई सरकार अपराधियों का सफाया करने के वादे के साथ सत्ता में आई थी. उसने विकास दुबे को कोई डिस्काउंट नहीं दिया और ये कहानी उसके एनकाउंटर के साथ ही समाप्त हो गई.
लेकिन आप ये विरोधाभास देखिए, अब विकास दुबे जैसे अपराधी के एनकाउंटर पर ही राजनीति हो रही है. कांग्रेस हो, समाजवादी पार्टी हो या फिर बहुजन समाज पार्टी हो, विपक्ष की ज्यादातर पार्टियां अब ये कह रही हैं कि विकास दुबे का एनकाउंटर इसलिए कर दिया गया ताकि वो राजनैतिक सांठगांठ के राज ना बता पाए.
विकास दुबे का कैसा मानवाधिकार?
कुछ लोग इस एनकाउंटर की शिकायत लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भी पहुंच गए. ऐसी ही सोच वाले कई लोग आतंकवादियों के मानवाधिकारों की बातें भी करते रहे हैं और आतंकवादियों को फांसी से बचाने के लिए आधी रात को सुप्रीम कोर्ट भी खुलवाते रहे हैं.
आज उन 8 पुलिसकर्मियों के परिवारों को कितनी तसल्ली मिली होगी, जिन पुलिसकर्मियों की हत्या विकास दुबे और उसके गिरोह ने की थी. विकास दुबे के मारे जाने से इन पुलिसकर्मियों की शहादत का बदला लिया गया है.
विकास दुबे जैसे अपराधियों के एनकाउंटर पर हमारे देश में लोग क्यों खुश हो रहे हैं, ये आपको समझाते हैं.
एनकाउंटर पर क्यों खुश हो रहे लोग?
भारत में अगर कोई अपराधी पकड़ा भी जाए तो उसे सजा मिलने के चांस बहुत कम होते हैं. क्योंकि भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां कन्विक्शन रेट सबसे कम है. IPC के तहत आने वाले अपराधों में सजा मिलने की दर सिर्फ 40 प्रतिशत है और अगर मामला यौन उत्पीड़न का हो तो सजा मिलने की दर घटकर सिर्फ 18 प्रतिशत रह जाती है. हैरानी की बात ये है कि भारत में कन्विक्शन रेट लगातार घट रहा है. वर्ष 2016 में गंभीर अपराध के मामलों में सजा मिलने की दर 46 प्रतिशत थी जिसमें अब करीब 5 से 6 प्रतिशत की कमी आ चुकी है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2016 में गंभीर अपराधों के मामले में 5 लाख 96 हजार लोगों को सजा मिली थी, जबकि 6 लाख 78 हजार से ज्यादा लोग बरी हो गए थे.
इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि हमारी न्याय प्रणाली पूरी दुनिया के मुकाबले बहुत सुस्त रफ्तार से काम करती है. भारत की अदालतों में इस समय साढ़े तीन करोड़ से ज्यादा मुकदमे लंबित हैं. नवंबर 2019 तक के आंकड़ों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग केसेज की संख्या करीब 54 हजार, अलग-अलग हाई कोर्ट्स में करीब 44 लाख 75 हजार और निचली अदालतों में 3 करोड़ 14 लाख मामलों में कोई फैसला नहीं आया है.
शायद यही वजह है कि जब पुलिस किसी अपराधी को एनकाउंटर के जरिए इंस्टंट सजा देती है तो देश के लोग खुशियां मनाने लगते हैं. क्योंकि उन्हें धीमी न्याय प्रक्रिया के जरिए इंसाफ मिलने की उम्मीद बहुत कम होती है.
इन देशों में अपराधी को नहीं मिलती माफी!
अपराधियों को सजा देने के मामले में भारत की स्थिति भले ही खराब हो लेकिन दुनिया के कई देशों का इस मामले में रिकॉर्ड बहुत अच्छा है. चीन में 100 अपराधियों में से करीब 99.9 प्रतिशत को सजा मिलना तय है. वर्ष 2014 में चीन में 12 लाख अपराधियों में से सिर्फ एक हजार अपराधियों को ही सबूतों के अभाव में बरी किया गया था.
इजरायल में सजा मिलने की दर करीब 93 प्रतिशत है. जापान में 100 में से 99.4 प्रतिशत अपराधियों को सजा होकर ही रहती है. जापान में पुलिस बिना आरोप पत्र दाखिल किए और बिना वकील की सुविधा उपलब्ध कराए भी आरोपी से 23 दिनों तक पूछताछ कर सकती है. रूस में भी करीब 99 प्रतिशत अपराधियों को सजा जरूर मिलती है.
कहा जाता है कि भारत के ज्यादातर कानून अंग्रेजों के समय में बनाए गए थे और इनमें इतनी कमियां हैं कि अपराधियों को समय रहते सजा हो ही नहीं पाती. लेकिन खुद ब्रिटेन में कन्विक्शन रेट भारत से लगभग दोगुना है. ब्रिटेन के हाई कोर्ट्स से अपराधियों को सजा मिलने की दर करीब 80 प्रतिशत और निचली अदालतों में सजा मिलने की दर करीब 84 प्रतिशत है.
अमेरिका में गंभीर अपराधों को फेलोनी (Felony) कहा जाता है और अगर विकास दुबे अमेरिका में होता तो उसे सजा मिलने के चांस 68 प्रतिशत होते. लेकिन भारत में रहकर विकास दुबे हत्याएं और लूटमार करता रहा. लेकिन उसे हमारा सिस्टम 30 वर्षों तक कोई खास सजा नहीं दे पाया.