DNA ANALYSIS: पाकिस्तान की शर्मनाक हार की कहानी, जब भारतीय सेना ने PoK में की थी पहली स्ट्राइक
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DNA ANALYSIS: पाकिस्तान की शर्मनाक हार की कहानी, जब भारतीय सेना ने PoK में की थी पहली स्ट्राइक

55 साल पहले भारतीय सेना ने पीओके यानी पाक अधिकृत कश्मीर में पहली स्ट्राइक की थी. 1965 में 28 अगस्त को भारतीय जवानों ने पीओके में 8 किलोमीटर अंदर हाजी पीर पोस्ट पर कब्जा कर लिया था.

DNA ANALYSIS: पाकिस्तान की शर्मनाक हार की कहानी, जब भारतीय सेना ने PoK में की थी पहली स्ट्राइक

नई दिल्ली: 55 साल पहले भारतीय सेना ने पीओके यानी पाक अधिकृत कश्मीर (Pakistan Occupied Kashmir) में पहली स्ट्राइक की थी. 1965 में 28 अगस्त को भारतीय जवानों ने पीओके में 8 किलोमीटर अंदर हाजी पीर पोस्ट पर कब्जा कर लिया था. इसी के साथ भारत ने 1900 वर्ग किलोमीटर इलाके पर दोबारा कब्जा हासिल किया था.

आप सोचिए कि 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध से जिन भारतीय सैनिकों का हौसला लगभग टूट चुका था. सिर्फ 3 साल बाद ही उन्होंने इस बड़ी जंग में जीत हासिल की थी.

पाकिस्तान का करना पड़ा बुरी हार का सामना
पाकिस्तान के पास उस समय अमेरिका में बने कई टैंक थे. इन टैंकों की मदद से शुरुआत में उसने भारत पर हावी होने की कोशिशें भी कीं. लेकिन उसे बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था.

1965 के युद्ध के बाद पूरी दुनिया में भारत की एक नई पहचान बनी थी. उस समय टाइम मैगजीन ने लिखा था कि भारत अब दुनिया में नई ताकत बनकर उभर रहा है. भारत और पाकिस्तान के बीच ये युद्ध 17 दिनों तक चला था. इन 17 दिनों में ही भारत की सेना लाहौर तक पहुंच गई थी.

हाजी पीर पोस्ट पर कब्जा
ये युद्ध पाकिस्तान की कई शर्मनाक हारों में से एक है. इस युद्ध की कई गाथाएं सैन्य इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखी हुई हैं. जिसमें एक है हाजी पीर पोस्ट की जीत. 1965 में 28 अगस्त के दिन भारतीय सेना ने इस पर कब्जा करके पाकिस्तान को चौंका दिया था.

भारत ने पाकिस्तान के जबड़े से 1920 वर्ग किलोमीटर का वो क्षेत्र छीन लिया था जो सामरिक नजरिए से युद्ध का रुख पहले ही भारत की ओर मोड़ चुका था.

1965 की भारत-पाकिस्तान जंग में 28 अगस्त वो तारीख थी जब भारतीय सेना ने पीओके में 8 किलोमीटर अंदर जाकर हाजी पीर पोस्ट पर कब्जा कर लिया था. ये भारत की ओर से पाकिस्तान के कब्जाए कश्मीर में सर्जिकल नहीं सीधी स्ट्राइक थी.

भारत की ओर से इस जंग की आधिकारिक घोषणा 6 सितंबर को की गई थी. लेकिन रणनीतिक तौर पर हाजी पीर पहुंचकर उससे पहले ही भारतीय सेना मोहरे बिछा चुकी थी.

भारतीय सेना ने दो तरफा हमले की योजना बनाई
1965 के युद्ध में हाजी पीर की पोस्ट दोनों देशों की सेनाओं के लिए बहुत जरूरी थी. पहाड़ों पर लड़ाई हमेशा चोटियों पर होती है. चोटियों पर कब्जा होना सामरिक नजरिए से सबसे जरूरी होता है.

हाजी पीर पोस्ट का महत्व यही था कि अगर इस दर्रे पर किसी का कब्जा हो तो उसकी श्रीनगर और पुंछ की दूरी मात्र 50-55 किलोमीर रह जाती है. ऐसा न हो तो पुंछ से श्रीनगर जाने के लिए पहले जम्मू जाना पड़ता है फिर श्रीनगर. ये रास्ता करीब 600 किलोमीटर का हो जाता है.

हाजी पीर पोस्ट पर कब्जा करने के लिए भारतीय सेना ने दो तरफा हमले की योजना बनाई थी. एक छोर से एक पैरा टीम थी तो दूसरी तरह से पंजाब रेजिमेंट.

हाजी पीर पोस्ट की ओर चढ़ाई, धीमी, फिसलन से भरी और लंबी थी. सिर्फ रात के अंधेरे में ही वहां तक पहुंचा जा सकता था क्योंकि दिन होने पर चोटी पर बैठे पाकिस्तानी सैनिक बड़ी आसानी से भारतीय सैनिकों को निशाना बना सकते थे. उस वक्त तेज बारिश हो रही थी. लेकिन सुबह तक चोटी पर पहुंचना ही मेजर रंजीत सिंह दयाल सिंह का मकसद था जो 1 पैरा के सैनिकों को लीड करते हुए बढ़ रहे थे.

भारतीय सैनिकों में दुश्मनों को धूल चटाने और भारत पर धोखे हमला करने वाले पाकिस्तान को सबक सिखाने का ऐसा जज्बा था कि सीले हुए शकरपारे और बिस्कुट खाकर भी उन्होंने हाजी पीर पहुंचकर देश को बड़ी सौगात दी थी.

तीसरा हमला रहा कामयाब 
एक ओर ब्रिगेडियर अरविंदर सिंह की टीम को परनाला के ढलानों पर पहले कब्जा करना था जिसके बाद अगली टीम का काम हाजी पीर पोस्ट पर धावा बोलना था. पहले दो हमलों में नाकामयाबी मिली लेकिन तीसरा हमला कामयाब रहा.

हाजी पीर पर हमला सेना की किसी और टुकड़ी को करना था. लेकिन मेजर दयाल ने उनकी टीम के लिए हाजी पीर पोस्ट पर हमला करने की इजाजत मांगी. उनके सामने 1500 फीट की लगभग सीधी चढ़ाई थी. लेकिन जैसे ही अनुमति मिली मेजर दयाल के सैनिकों ने ऊपर चढ़ना शुरू कर दिया था. लक्ष्य बस जीत था.

खराब मौसम युद्ध के नजरिए से कठिन होता है क्योंकि इसमें दोनों ही पक्षों को बहुत मुश्किलें आती है. लेकिन भारतीय सेना ने इसका फायदा उठाया और जबरदस्त आक्रमण करके पोस्ट के बचाव में मौजूद पाकिस्तानी सैनिकों को चौंका दिया.

पाकिस्तानी​ सैनिक अपना खाना छोड़कर भागे
डीआर मनकेकर ने अपनी किताब '22 Fateful days' में लिखा है कि "दयाल और उनके सैनिक सुबह साढ़े चार बजे हाजी पीर जाने वाली सड़क पर पहुंच गए थे. उन्होंने अपने सैनिकों को दो घंटे का विश्राम दिया और फिर ऊपर चढ़ना शुरू किया. जब वो सुबह 8 बजे चोटी पर पहुंचे, तब तक पाकिस्तानी सैनिक भारी गोला बारूद छोड़ कर वहां से भाग चुके थे. अपने पीछे वो इतना खाना छोड़ गए थे जिससे 1000 लोगों को एक महीने तक खाना खिलाया जा सकता था.

23 भारतीय सैनिक शहीद
हाजी पीर पहुंचने के बाद अपनी मौजूदगी को पक्का करने के लिए भारतीय सेना ने आसपास का जायजा लिया तो पाकिस्तानी सैनिकों के ठिकाने नजर आए. इनमें बड़ी संख्या में वो मौजूद थे लेकिन हाजी पीर पोस्ट किसी भी हाल में हाथ से जाने नहीं देनी थी. भारतीय सेना की उस टुकड़ी में 65 सैनिक थे. लेकिन फिर भी वो पाकिस्तानी सैनिकों पर भारी पड़े. इस हमले में 23 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे. लेकिन हाजी पीर पर पूरा नियंत्रण पाया जा चुका था. इस शानदार उपलब्धि के लिए मेजर रंजीत दयाल और ब्रिगेडियर जोरू बख्शी को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया.

भारतीय सेना लाहौर तक पहुंच गई
हाजी पीर पोस्ट पर कब्जा होने के बाद पाकिस्तान में खलबली मच गई. उस वक्त पाकिस्तान की जिब्राल्टर फोर्स के लोग भारतीय कश्मीर में घुसे हुए थे. हाजी पीर पर भारतीय सेना की मौजूदगी की वजह से वो वहीं फंसकर रह गए. उन्हें पाकिस्तान लौटने का रास्ता नहीं मिला. 23 सितंबर 1965 को पाकिस्तान की हार से बाद खत्म हुए इस युद्ध में उसे पता चल गया कि वो चाहकर भी भारत से आगे टिक नहीं सकता.

भारत ने कभी युद्ध की शुरुआत नहीं की लेकिन ये जरूर है कि उसने उसका अंत किया है. 1965 भारत पाकिस्तान युद्ध में भी यही हुआ था. पाकिस्तान ने युद्ध की शुरुआत की, लेकिन भारतीय सेना ने उसे बुरी तरह हराया था और भारतीय सेना लाहौर तक पहुंच गई थी.

भारत एक शांतिप्रिय देश है लेकिन 1965 युद्ध के बाद दुनिया ये जान गई कि भारत शांति से रहना चाहता है, लेकिन किसी ने उसे छेड़ा तो उसे सजा देना भी जानता है.

1966 में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के अयूब खान के बीच ताशकंद में समझौता हुआ था जिसके बाद भारत ने पाकिस्तान के कब्जे वाली कई पोस्ट छोड़ दी थीं.

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