DNA ANALYSIS: कोरोना के दौर में ऑनलाइन शिक्षा के लिए कितना तैयार है भारत?
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DNA ANALYSIS: कोरोना के दौर में ऑनलाइन शिक्षा के लिए कितना तैयार है भारत?

कोरोना वायरस की वजह से भारत के सभी स्कूल बंद हैं और अभी इनके जल्दी खुलने की भी कोई उम्मीद नहीं है. इसलिए ज्यादातर स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई हो रही है लेकिन, क्या भारत के सभी वर्गों के छात्र आसानी से ऑनलाइन शिक्षा हासिल कर सकते हैं?

DNA ANALYSIS: कोरोना के दौर में ऑनलाइन शिक्षा के लिए कितना तैयार है भारत?

नई दिल्ली: अब हम एक और ऐसी खबर का विश्लेषण करेंगे जो भारत के करोड़ों परिवारों से जुड़ी है. इस विश्लेषण के केंद्र में है ऑनलाइन शिक्षा. और भारत में इसका भविष्य आज हम ये समझने की कोशिश करेंगे कि क्या कोरोना वायरस के इस दौर में भारत ऑनलाइन शिक्षा के लिए तैयार है? और क्या भारत के सभी वर्गों के छात्र आसानी से ऑनलाइन शिक्षा हासिल कर सकते हैं?

अगर आप युवा हैं तो आपने अपनी पिछली पीढ़ी के मुंह से ये जरूर सुना होगा कि शिक्षा हासिल करने के लिए उन्होंने कितना संघर्ष किया. आज भी पुरानी पीढ़ी के कई लोग ऐसे किस्से सुनाते हैं कि उन्हें स्कूल जाने के लिए कई किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता था या फिर उन्होंने अपनी पढ़ाई मोमबत्ती या स्ट्रीट लाइट की रोशनी में पूरी की. उदाहरण के लिए भारत के पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए न्यूज पेपर बेचा करते थे. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर पढ़ाई किया करते थे. हालांकि आज स्थितियां बदल चुकी हैं लेकिन शिक्षा को लेकर संघर्ष की कहानी पहले जैसी ही है. बस फर्क इतना है कि पहले के लोग स्कूल जाने के लिए संघर्ष करते थे और आज की पीढ़ी को ऑनलाइन शिक्षा हासिल करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.

NCERT के एक ताजा सर्वे में सामने आई ये बात
कोरोना वायरस की वजह से भारत के सभी स्कूल बंद हैं और अभी इनके जल्दी खुलने की भी कोई उम्मीद नहीं है. इसलिए ज्यादातर स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई हो रही है. लेकिन भारत में सभी परिवारों की इंटरनेट तक पहुंच नहीं है और यही वो वजह है जिसने डिजिटल डिवाइड यानी डिजिटल खाई पैदा कर दी है, जिसे भारत को जल्द से जल्द भरना होगा.

NCERT के एक ताजा सर्वे से पता चलता है कि भारत के 27 प्रतिशत छात्रों के पास स्मार्टफोन और लैपटॉप नहीं है

28 प्रतिशत छात्र बार-बार बिजली जाने की वजह से ठीक से पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं.

33 प्रतिशत छात्रों ने माना कि ऑनलाइन क्लासेज के दौरान वो पढ़ाई पर ठीक से ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं.

गणित और विज्ञान के छात्रों के लिए ऑनलाइन पढ़ाई सबसे ज्यादा मुश्किल साबित हो रही है.

इस सर्वे में 50 प्रतिशत छात्रों ने तो ये भी कहा कि उनके पास स्कूल की पुस्तकें ही नहीं हैं यानी ऑनलाइन ही नहीं छात्रों को ऑफलाइन पढ़ाई में भी समस्या आ रही है.

हालांकि NCERT की वेबसाइट पर कई विषयों की ई-बुक्स तो हैं लेकिन उसके लिए भी इंटरनेट और स्मार्टफोन होना चाहिए. जिससे आज भी देश के करोड़ों बच्चे वंचित हैं.

ये सर्वे केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय और CBSE से जुड़े स्कूलों में पढ़ने वाले 34 हजार छात्रों, पैरेंट्स और टीचर्स से बातचीत के आधार पर तैयार किया गया है.

90 लाख छात्रों के पास ऑनलाइन शिक्षा की कोई सुविधा नहीं
अब आप सोचिए जिस देश में 27 प्रतिशत छात्रों के पास लैपटॉप या स्मार्टफोन नहीं है और जहां बार बार बिजली जाने की समस्या की वजह से 28 प्रतिशत छात्र ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कर पाते. उस देश में ऑनलाइन शिक्षा का भविष्य क्या होगा. इन दोनों आंकड़ों को जोड़ दिया जाए तो एक बात साफ हो जाती है कि अभी भारत के आधे से ज्यादा छात्र ठीक तरह से ऑनलाइन शिक्षा हासिल नहीं कर पा रहे हैं.

भारत में स्कूल और कॉलेज जाने वाले छात्रों की संख्या 30 करोड़ है और ये सभी छात्र फिलहाल स्कूल नहीं जा सकते.

National Sample Survey office की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 90 लाख छात्रों के पास ऑनलाइन शिक्षा की कोई सुविधा नहीं है.

भारत में 24 प्रतिशत घर सिर्फ स्मार्टफोन के जरिए इंटरनेट से जुड़े हुए हैं और सिर्फ 11 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं जिनमें इंटरनेट कनेक्शन वाला एक कंप्यूटर है. ग्रामीण भारत में तो स्थिति ज्यादा खराब है.

भारत को ऑनलाइन शिक्षा के रास्ते पर ले जाने के मिशन में सबसे बड़ी बाधा
भारत के गांवों में 16 प्रतिशत घरों में सिर्फ 1 घंटे से 8 घंटे तक बिजली आती है. ग्रामीण भारत के 33 प्रतिशत घरों में 9 से 12 घंटे और 47 प्रतिशत घरों में 12 घंटे से ज्यादा बिजली आती है. भारत की 66 प्रतिशत आबादी आज भी गांवों में रहती और अगर इस आबादी को 24 घंटे बिजली नहीं मिलेगी तो यहां गांवों में रहने वाले छात्र ऑनलाइन पढ़ाई कैसे करेंगे. गांव में रहने वाली भारत की इस 66 प्रतिशत आबादी में से सिर्फ 16 प्रतिशत की पहुंच इंटरनेट तक है.

सबसे गरीब 20 प्रतिशत परिवारों में से सिर्फ 3 प्रतिशत परिवारों की पहुंच किसी कम्प्यूटर तक है और 9 प्रतिशत परिवारों के पास इंटरनेट कनेक्शन है.

जिन घरों में इंटरनेट की पहुंच है भी उसमें से 3 प्रतिशत घरों में इंटरनेट बार-बार बाधित हो जाता है और 53 प्रतिशत घर खराब कनेक्टिविटी का सामना करते हैं. 32 प्रतिशत घरों में ब्रॉड बैंड सिग्नल ही नहीं आता.

ये डिजिटल डिवाइड देश के अमीर और गरीब राज्यों में और भी बड़ा हो जाता है. उदाहरण के लिए दिल्ली, केरल और हरियाणा में इंटरनेट की पहुंच सबसे ज्यादा लोगों तक है, जबकि असम को छोड़ दिया जाए तो भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में इंटरनेट की पहुंच सबसे कम है.

ये डिजिटल खाई बहुत गहरी हो चुकी है और भारत को ऑनलाइन शिक्षा के रास्ते पर ले जाने के मिशन में सबसे बड़ी बाधा है. इसकी वजह से माता-पिता और छात्रों को क्या क्या समस्या आ रही है. इस पर आज हमने एक विश्लेषण तैयार किया है. अगर आप मोबाइल फोन या किसी इंटरनेट डिवाइस पर हमारा ये विश्लेषण देख रहे हैं तो आप बहुत किस्मत वाले हैं. लेकिन आज आपको उन लोगों की परेशानी को समझना चाहिए जो चाहकर भी इंटरनेट के जरिए शिक्षा हासिल नहीं कर पा रहे हैं.

परिवारों का घर खर्च बढ़ गया
कोरोना संक्रमण के दौरान लगे लॉकडाउन में डिजिटल भारत का सबसे सटीक रियलिटी टेस्ट भी हो गया है. देश का बच्चा-बच्चा ऑनलाइन क्लास में पढ़ने आया तो पता चला कि डिजिटल भारत बनने के लिए देश कितना तैयार है. शहर हो या गांव हमने ये समझने की कोशिश की है कि ऑनलाइन क्लासेज में क्या बच्चे कुछ पढ़ पा रहे हैं या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि स्कूलों की फीस का मीटर चलता रहे, इसलिए ये सारी कवायद की जा रही है.

नोएडा के प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाले आदित्य नौंवी क्लास में हैं. एक तरफ इनकी क्लास चलती है तो दूसरी तरफ आदित्य का छोटा भाई सूर्यांश, अपने पापा के साथ मोबाइल पर पढ़ाई कर रहा है. ऑनलाइन क्लास की मजबूरी है कि छोटे बच्चों के साथ अभिभावकों का होना जरूरी है.

बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई चलती रहे इसके लिए परिवारों का घर खर्च बढ़ गया है. वाई फाई के कनेक्शन के साथ-साथ कम्प्यूटर को भी अपग्रेड किया गया.

वरालिका केजी में पढ़ती हैं. इनकी क्लास भी घरवालों को अपना समय देने पर मजबूर करती है. इनकी ऑनलाइन क्लास के लिए मोबाइल डेटा लिमिट बढ़वाने के साथ-साथ इनके मां बाप को नया फोन भी लेना पड़ा ताकि पढ़ाई चलती रहे.

अभिभावकों की परेशानी ये है कि स्कूल अपनी फीस हर महीने ले रहे हैं. स्कूल से जुड़े सारे खर्च अभिभावाकों की जेब से जा रहे हैं लेकिन ऑनलाइन क्लासेज ने बच्चों के परिवारों का इंटरनेट और मोबाइल, लैपटॉप का खर्च बढ़ा दिया है.

राजस्थान के कोटा में रंगपुर कस्बे के इस परिवार में कमाई करने वाले केवल एक व्यक्ति हैं जो मात्र 12 हजार कमाते हैं. इन पर दो स्कूली बच्चियों की पढ़ाई की जिम्मेदारी है. पहले स्कूल की फीस भरते थे अब फीस के साथ-साथ स्मार्टफोन और इंटरनेट का खर्च अलग से होने लगा है. शिक्षक भी अभिभावकों की ये मजबूरी समझते हैं

बिहार के कटिहार में तीन बच्चियों की पढ़ाई का खर्चा उनकी मां सिलाई कढ़ाई की कला से उठाती है. ये इस बात से परेशान रहती हैं कि हर महीने मोबाइल इंटरनेट रिचार्ज इनकी कमाई का ज्यादातर हिस्सा ले लेता है, मजबूरी है क्योंकि, पढ़ाई भी जरूरी है.

गांवों का हाल ज्यादा खराब
बड़े शहरों में तो फिर भी मां-बाप कुछ ना कुछ करके मोबाइल इंटरनेट की व्यवस्था कर पा रहे हैं लेकिन उन गांवों का हाल खराब है जहां बिजली कम वक्त के लिए आती है और मोबाइल नेटवर्क खराब होना एक बड़ी समस्या है. अभी तक अभिभावक बच्चों को मोबाइल लैपटॉप पर ज्यादा देर न बैठने की नसीहत देते थे लेकिन अब ये मजबूरी और जरूरत बन गई है.

ग्रेटर नोएडा के केंद्रीय विद्यालय के छात्रों से भी हमने बात की ऑनलाइन शिक्षा की मुश्किलों से दो चार हो रहे इन बच्चों की परेशानी जानने की कोशिश की.

परेशानियां हर तरह की परिस्थितियों में होती हैं. कई स्कूलों में पंखे नहीं होते. पीने का ढंग का पानी नहीं होता बच्चों को इन परेशानियों से भी दो चार होना पड़ता है और अब जब बच्चे घर पर हैं ऑनलाइन क्लासेज हो रही हैं तो अभिभावकों को उनकी सेहत और अपने बजट की चिंता सता रही है.

शिक्षा हासिल करने के लिए हर पीढ़ी को किसी ना किसी तरह संघर्ष करना ही पड़ता है. लेकिन सिर्फ शिक्षा ही आपको अच्छा और सच्चा नागरिक नहीं बनाती. उदाहरण के लिए केरल भारत का सबसे साक्षर राज्य है. जहां के 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग पढ़ना और लिखना जानते हैं. लेकिन फिर भी केरल से हर साल सैकड़ों लोग ISIS जैसे आतंकवादी संगठन में भर्ती हो जाते हैं, जबकि बिहार जैसा राज्य जिसे शिक्षा व्यवस्था के क्षेत्र में बहुत पिछड़ा माना जाता है और जहां सिर्फ 63 प्रतिशत लोग साक्षर हैं. फिर भी बिहार से हर साल बड़ी संख्या में लोग IAS और IPS बनते हैं. सिर्फ 2001 से 2015 के बीच ही बिहार से 68 IAS अफसर देश को मिले थे यानी सबसे साक्षर राज्य होने के बावजूद केरल के कई युवा ISIS का हिस्सा बन रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर पिछड़ा होने के बावजूद बिहार के युवा IAS बनने का दम रखते हैं.

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