प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17 मार्च को ही राज्यों के मुख्यमंत्रियों को आगाह कर दिया था कि अगर उन्होंने कड़े कदम नहीं उठाए तो देश में संक्रमण की स्थिति खतरनाक होगी.
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नई दिल्ली: आज कल देश में एक सवाल काफी पूछा जा रहा है कि क्या केंद्र सरकार (Central Government) ने कोरोना वायरस (Coronavirus) पर जीत की घोषणा में बहुत जल्दी कर दी? बहुत से लोग कह रहे हैं कि हां, सरकार ने ऐसा किया और मौजूदा संकट इसी का नतीजा है. इस तरह का नेरेटिव सेट किया जा रहा है. लेकिन इस सवाल का सही जवाब क्या है? इसके लिए आपको वो बातें जाननी होंगी, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17 मार्च को हुई एक वर्चुअल बैठक में कही थीं, जिसमें अलग अलग राज्यों के मुख्यमंत्री भी थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने 17 मार्च को ही मुख्यमंत्रियों के साथ हुई वर्चुअल बैठक में इस बात की आशंका जताई थी कि अगर कोरोना वायरस की बढ़ती रफ्तार को नहीं रोका गया तो देश में संक्रमण फैल जाएगा, और 47 दिनों बाद स्थिति ठीक ऐसी ही है. आप कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री ने पहले ही खतरे को भांप लिया था और राज्य सरकारों को चेतावनी भी दी थी, लेकिन इस पर उस तरह से अमल नहीं हुआ, जिस तरह से कदम उठाने की जरूरत थी. लेकिन नेरेटिव ये बनाया जा रहा है कि केंद्र सरकार ने तो कोरोना के खिलाफ युद्ध में जीत का ऐलान कर दिया था और सरकार जश्न मना रही थी. लेकिन सच्चाई कुछ और है.
अगर राज्य सरकारों ने प्रधानमंत्री की चेतावनी को गंभीरता से लिया होता तो आज देश में हर दिन औसतन 3 हजार लोगों की मौत कोरोना से नहीं होती, और ना ही हर हफ्ते औसतन 3 लाख 73 हजार नए मामले दर्ज होते. आज हम आपको ऐसी जरूरी बातें भी बताना चाहते हैं, जिससे आपको पता चलेगा कि प्रधानमंत्री कोरोना वायरस की बढ़ती रफ्तार को लेकर कितने चिंतित थे. सितंबर 2020 से अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्रियों के साथ 14 वर्चुअल बैठक कर चुके हैं. इन सभी बैठकों में प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों से यही कहा कि कोरोना वायरस को हल्के में लेने की भूल नहीं करनी चाहिए.
प्रधानमंत्री के अलावा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय भी सितंबर 2020 के बाद से अब तक विभिन्न राज्यों के साथ 12 वर्चुअल बैठक कर चुका है. इन बैठकों में खासकर महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और पंजाब के उन जिलों को चिन्हित किया गया, जहां कोरोना के मामलों बढ़ रहे हैं. कोरोना वायरस पर रोकथाम के लिए केंद्र सरकार ने 53 उच्च स्तरीय टीमें अलग-अलग राज्यों में तैनात की. इनमें 30 टीमें अकेले महाराष्ट्र में, 11 टीमें छत्तीसगढ़ में, 9 टीमें पंजाब में और 3 टीमें गुजरात में भेजी गईं. इन टीमों का काम था राज्यों में कोरोना की स्थिति पर नजर रखना और केंद्र सरकार को इस पर रिपोर्ट देना. बड़ी बात ये है कि इन टीमों ने मार्च के महीने से ही चेतावनी देनी शुरू कर दी थी, लेकिन राज्य सरकारों ने ठोस कदम नहीं उठाए.
इस समय कई राज्य आर्थिक मदद को लेकर भी केंद्र सरकार को घेर रहे हैं. जबकि सच्चाई ये है कि भारत कोविड-19 इमरजेंसी रेसपोंस के अंतर्गत केन्द्र सरकार मार्च 2021 तक राज्यों को 8 हजार 147 करोड़ रुपये दे चुकी है. इसके अलावा पिछले साल अप्रैल से मई महीने के बीच केंद्र सरकार ने राज्यों को ऑक्सीजन के 1 लाख 2 हजार 400 सिलिंडर्स दिए थे, और सरकार 1 लाख 27 नए सिलिंडर्स भी जल्द राज्यों को देने वाली है. लेकिन इसके बावजूद कई राज्यों में आम लोग ऑक्सीजन सिलिंडर्स के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
पिछले साल जब भारत में कोरोना वायरस की पहली लहर आई थी तब देश के सरकारी अस्पतालों में आईसीयू बेड (ICU Beds) की संख्या 2168 थी. लेकिन अब आईसीयू बेड की संख्या लगभग 85 हजार हो गई है. इसके अलावा केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को 35 हजार वेंटिलेटर भी दिए हैं. आज हो सकता है कि ये जानकारियां उन राज्य सरकारों को अच्छी ना लगें, जिन्होंने प्रधानमंत्री की चेतावनी को नरजअंदाज किया, लेकिन हम चाहते हैं कि आपको हर विषय में सही जानकारी होनी चाहिए. इस खबर का एक लाइन में सार यही है कि प्रधानमंत्री ने 17 मार्च को ही राज्यों के मुख्यमंत्रियों को आगाह कर दिया था कि अगर उन्होंने कड़े कदम नहीं उठाए तो देश में संक्रमण की स्थिति खतरनाक होगी.
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