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नई दिल्ली: आज हम आपको टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics) की दो कहानियों के बारे में बताएंगे. पहली, एक हॉकी टीम की है, जिसने 41 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद ब्रॉन्ज मेडल (Bronze Medal) जीत लिया. जबकि दूसरी कहानी पहलवान रवि दहिया (Ravi Dahiya) की है, जिन्होंने कुश्ती में देश के लिए सिल्वर मेडल जीता. इन कहानियों से आज आपको दो सीख मिलेंगी. पहला परीक्षा की आखिरी घड़ी तक हिम्मत नहीं हारनी चाहिए, और दूसरा ये कि सफलता के लिए धैर्यवान होना चाहिए.
भारतीय हॉकी टीम ने मैच के आखिरी 6 सेकंड में मैच बदल दिया, और रवि दहिया ने भी आखिरी 50 सेकंड में हारा हुआ सेमीफाइनल मैच जीत लिया. लेकिन रवि दहिया के इस सेमीफाइनल मैच में एक ऐसी बात हुई, जिसकी चर्चा नहीं हो रही. वो बात कजाखिस्तान के पहलवान से जुड़ी हुई है जिसने मुकाबले के दौरान रवि दहिया के बाजू को अपनी दांतों से काट लिया और धोखे से इस मुकाबले को जीतने की कोशिश की. ये मैच 4 जुलाई को खेला गया, रवि के सेमीफाइनल मुकाबले का आखिरी एक मिनट बचा था, तब तक रवि दहिया 9 प्वाइंट्स गंवा चुके थे, और कजाखिस्तान के पहलवान के पास चार प्वाइंट्स की लीड थी. लेकिन आखिरी कुछ सेकंड में उन्होंने प्रतिद्वंदी खिलाड़ी को Pin Down कर दिया, यानी उसे नीचे गिरा कर उसके दोनों कंधों को मेट (Mat) पर लगा दिया.
रेसलिंग की भाषा में इसे विक्ट्री बॉय फॉल (Victory By Fall) कहते हैं. आम भाषा में इसे किसी पहलवान को चित करना कहते हैं. ऐसा करने वाला पहलवान अपने बाउट (Bout) को उसी समय जीत लेता है. कजाखिस्तान के पहलवान इस बात को जानते थे और इसीलिए उन्होंने रवि दहिया के बाजू में दांतों से काट लिया ताकि वो अपने दांव को पूरा नहीं कर पाएं. रवि दहिया के सामने चुनौती ये थी कि उन्हें कुछ ही सेकंड में इस पहलवान को हराना भी था और खुद को उससे बचाना भी था. एक खिलाड़ी जब इस तरह से नियमों के खिलाफ खेलता है तो सामने वाले खिलाड़ी के लिए अपने दांव पर पूरी ताकत लगाना आसान नहीं होता. इसीलिए आज हम कहना चाहते हैं कि भले कुश्ती के मेट पर रवि दहिया गोल्ड मेडल वाला दांव लगाने से चूक गए, लेकिन उन्होंने जिस तरह से सिल्वर मेडल जीता वो जज्बा और जुनून किसी गोल्ड की चमक से कम नहीं है.
नियमों के मुताबिक, कुश्ती के बाउट में कोई भी खिलाड़ी एक दूसरे को काट नहीं सकता है. यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग (United World Wrestling) के चैप्टर 9 प्रोहिबिशन एंड इल्लीगल होल्ड (Prohibition and Illegal Holds) के सेक्शन 48 में लिखा है कि, 'पहलावान कुश्ती के Bout में एक दूसरे के बाल नहीं खींच सकते, कान नहीं खींच सकते, खेल के दौरान प्रतिद्वंदी खिलाड़ी को कहीं नोंच नहीं सकते, दांत से नहीं काट सकते और उंगलियां भी नहीं मरोड़ सकते. अगर कोई खिलाड़ी पहली बार ऐसा करता है तो रेफरी उसे चेतावनी दे सकता है. दूसरी बार ऐसा होने पर वो प्रतिद्वंदी खिलाड़ी को दो प्वाइंट्स एक्स्ट्रा दे सकता है. इसके अलावा अगर रेफरी को लगता है कि कोई जानबूझकर खेल के दौरान सामने वाले खिलाड़ी को नुकसान पहुंचा रहा है तो वो उस समय मैच को रोक कर ऐसा करने वाले पहलवान को डिस्क्वालिफाई (Disqualify) भी कर सकता है, और प्रतिद्वंदी खिलाड़ी को विजयी घोषित कर सकता है.
लेकिन इस मामले में ऐसा कुछ नहीं हुआ. UWW का कहना है कि कजाखिस्तान के पहलवान ने रवि दहिया को जानबूझकर नहीं काटा था. सोचिए, एक तरफ तो हम स्पोर्ट्समैन स्पिरिट की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, और दूसरी तरफ उसी खेल में ये सबकुछ होता है. हालांकि ऐसा नहीं है कि कुश्ती या फिर बॉक्सिंग के खेल में किसी खिलाड़ी ने ऐसा पहली बार किया हो. ये दोनों ऐसे खेल हैं, जिनमें ताकत और दिमाग दोनों का तालमेल जरूरी होता है. लेकिन इन्हीं खेलों में हार के दौरान अक्सर खिलाड़ी अपना आपा खो कर इस तरह की हरकत करते हैं.
वर्ष 2016 के रियो ओलंपिक खेलों में यूक्रेन के एक पहलवान ने क्वाटर फाइनल के दौरान अमेरिका के एक पहलवान का हाथ काट लिया था. हालांकि तब भी इस मामले में इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी (International Olympic Committee) की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गई थी. इसके अलावा 2012 के लंदन ओलंपिक में भारतीय पहलवान सुशील कुमार (Sushil Kumar) पर भी सेमीफाइनल मुकाबले में कजाखिस्तान के पहलवान का कान काटने के आरोप लगे थे. लेकिन बाद में उन्होंने इन आरोपों से इनकार कर दिया था, और UWW संस्था ने भी उन्हें दोषी नहीं पाया था. हालांकि आज सुशील कुमार अपने जूनियर पहलवान की हत्या करने के आरोप में जेल में बंद हैं.
कुश्ती की तरह बॉक्सिंग में भी इस तरह की घटनाएं हुई हैं. वर्ष 1997 में अमेरिका की एक बॉक्सिंग चैंपियनशिप के दौरान मशहूर बॉक्सर माइक टायसन (Mike Tyson) ने बॉक्सर इवांडर होलीफील्ड (Evander Holyfield) का रिंग में कान काट लिया था. माइक टायसन उस समय मुकाबले में इवांडर होलीफील्ड से पीछे चल रहे थे, जिसके बाद उन्होंने ऐसा किया था. इसके लिए तब उनका बॉक्सिंग का लाइसेंस 6 वर्षों के लिए सस्पेंड कर दिया गया था, और उन पर 3 मिलियन यूएस डॉलर यानी करीब साढ़े 22 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था. हालांकि यहां एक बात बहुत कम लोग जानते हैं और वो ये कि इसके बाद कान काटने के लिए माइक टायसन पूरी दुनिया में मशहूर हो गए और फिर उन्होंने कान काटने का ऐक्शन करते हुए कई इवेंट्स में अपनी तस्वीरें खिंचवाई और इससे खूब पैसा कमाया. माइक टायसन ने एक बार कहा था कि उन्होंने इवांडर होलीफील्ड का कान काटने के लिए जितना जुर्माना भरा, उससे ज्यादा पैसे उन्होंने इन इवेट्स में अपनी फोटो खिंचवाकर कमा लिए थे.
किसी भी खिलाड़ी का किरदार एक मेडल से बड़ा होता है और इसे आप रवि दहिया की बातों से समझ सकते हैं. उन्होंने फाइनल में हार के बाद देश के लोगों से माफी मांगी और कहा कि वो हताश हैं क्योंकि उम्मीदों के मुताबिक वो देश के लिए गोल्ड मेडल नहीं जीत सके. हरियाणा सरकार ने रवि दहिया को इनाम में 4 करोड़ रुपये देने का ऐलान किया है और उनके सिल्वर मेडल जीतने पर पूरा देश खुश है. हमने इस पर आपके लिए एक स्पेशल रिपोर्ट तैयार की है, जो आपको प्रेरणा भी देगी और ये भी बताएगी कि सफलता के लिए जीवन में धैर्यवान होना सबसे ज्यादा जरूरी है.
कुश्ती में देश को सिल्वर मेडल मिला, लेकिन रवि ने गोल्ड के लिए कमाल की कुश्ती लड़ी. भले ही सामने वाला योद्धा दो बार का विश्व चैंपियन रूस का जावुर युगुएव क्यों ना हो. रवि ने दिखाया की भारतीय पहलवानों में कितना दम है, और रूस के पहलवान को आसानी से गोल्ड जीतने नहीं दिया. रवि दहिया के सिल्वर मेडल जीतने की खुशी में हरियाणा के सोनीपत के उनके गांव नहारी में जश्न का माहौल है, क्योंकि रवि ने इतिहास रचा है. रवि दहिया की उपलब्धि से ना सिर्फ देश, प्रदेश या फिर उनका गांव खुश है. बल्कि उनके ट्रेनिंग सेंटर के ट्रेनर्स के चेहरे भी चांदी की तरह चमक रहे हैं. रवि दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में ट्रेनिंग करते थे, और कोरोना संक्रमण के दौर में भी उनकी ट्रेनिंग चलती रही है. यहीं से ट्रेनिंग लेकर उन्होंने देश के लिए कई मेडल भी जीते हैं.
छत्रसाल स्टेडियम में हम रवि दहिया के उस कमरे में गए जहां वो रहते थे. उन्होंने अपने कमरे में एक पोस्टर लगाया गया जो उनके दृढ़ निश्चय को दिखाता है. ये टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड मेडल का फोटो है, जिसको रोजाना देखकर उनके जीतने की ललक बनती थी. रवि के साथी पहलवान भी उनकी जिद को देखकर ये मान चुके थे कि ओलंपिक में वो मेडल जरूर जीतेंगे. अरुण कुमार भी रवि दहिया के ही गांव नहारी से हैं. इस गांव से कई अंतर्राष्ट्रीय पहलवान निकले हैं. हालांकि रवि के गांव की हालत बहुत अच्छी नहीं है. सड़क और बिजली पानी की व्यवस्था अच्छी नहीं है. लेकिन फिर भी रवि ने साबित किया है कि जो लोग जीतना चाहते हैं, वो कमियों पर बात नहीं करते हैं. वो केवल अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करते हैं.
अब हम आपको धैर्य और हिम्मत की दूसरी कहानी के बारे में बताएंगे. कहते हैं कि वैसे तो समय किसी के लिए नहीं रुकता और घड़ी की सुईयां लगातार भागती रहती हैं. लेकिन कुछ दुर्लभ मौके ऐसे होते हैं जब समय रुक जाता है. शुक्रवार को जब ओलंपिक के ब्रॉन्ज मेडल मैच के लिए भारत और जर्मनी की हॉकी टीमें मैदान पर उतरी तो 60 मिनट के इस मैच के दौरान भी घड़ी की सुईयां लगातार भागती रहीं. इस दौरान भारत की टीम पांच-चार से आगे थी. 59 मिनट 54 सेकेंड बीत चुके थे, लेकिन तभी भारत के एक खिलाड़ी से एक गलती हो गई. इसके बाद जर्मनी को पैनल्टी कॉर्नर मिल गया, और इसी के साथ मैच की घड़ी रुक गई.
6 सेकेंड बाकी थे. जर्मनी की टीम गोल कर देती तो मुकाबला बराबरी पर आ जाता. भारत की टीम गोल बचा लेती तो भारत इतिहास रच जाता. ऐतिहासिक जीत और हार के बीच सिर्फ 6 सेकेंड की दीवार थी, और यही वो मौका था जब किसी के लिए ना रुकने वाला समय भी रुक गया. ना सिर्फ समय रुका बल्कि भारत के करोड़ों लोगों के हृदय की धड़कन और सांसे भी रुक गईं. इसके बाद रेफरी ने सीटी बजाई. घड़ी फिर से चलनी शुरू हो गई. जर्मनी के एक खिलाड़ी ने गेंद को भारत के गोल में पहुंचाने के लिए शॉट मारा, लेकिन गोल पोस्ट और गेंद के बीच में भारत के गोलकीपर पीआर श्रीजेश दीवार बनकर खड़े हो गए. यानी गेंद गोल पोस्ट में नहीं गई और भारत ने इतिहास रच दिया.
ओलंपिक खेलों के पोडियम तक पहुंचने में भारत की पुरुष हॉकी टीम को 41 वर्ष लगे हैं. आखिरी बार भारत ने वर्ष 1980 के मॉस्को ओलंपिक खेलों में हॉकी का गोल्ड मेडल जीता था. लेकिन आज 41 वर्षों का ये सूखा खत्म हो गया. ये जीत भारतीय हॉकी और भारत में खेलों के प्रति सोच में आया बहुत बड़ा बदलाव है. अगर आप जीत के दौरान की उस तस्वीर को देखेंगे तो समझेंगे कि जीवन बदलाव के लिए आपको घंटों, दिनों, महीनों और वर्षों की मोहलत नहीं देता. सेकेंडों में इस बात का फैसला हो जाता है कि आप पहले से बेहतर हुए हैं या नहीं. 6 सेकंड में आप गलती भी कर सकते हैं, गलती से सबक लेकर खुद को संभाल भी सकते हैं, और खुद को संभालकर चुनौतियों से टकरा भी सकते हैं. अंत में बिना विचलित हुए जीत भी सकते हैं. आज भारत की हॉकी टीम ने ये सब 6 सेकंड में करके दिखा दिया, और पूरे देश को बता दिया कि उम्मीद ही सफलता की सबसे बड़ी कुंजी है.
भारत कभी हॉकी की दुनिया की महाशक्ति हुआ करता था. आज भी भारत के नाम ओलंपिक खेलों में हॉकी के 8 गोल्ड मेडल, एक सिल्वर और तीन ब्रॉन्ज मेडल हैं. ये किसी भी देश के मुकाबले सबसे ज्यादा हैं, लेकिन भारत की हॉकी का वो सर्वणिम इतिहास आज की पीढ़ी के लिए किसी परिकथा जैसा है. क्योंकि आज की पीढ़ी ने इसके किस्से और कहानियां तो सुनी थी, लेकिन इसे सच होते हुए अपनी आंखों से कभी नहीं देखा था. लेकिन आज वो परिकथा मैदान पर जीत की असली कहानी बनकर लोगों के सामने आ गई.
इस उपलब्धि पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी टीम को बधाई दी और टीम के कैप्टन और कोच से फोन पर बात की. नरेंद्र मोदी देश के अकेले ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जो सिर्फ जीतने वाले खिलाड़ियों को ही नहीं बल्कि हारने वाले खिलाड़ियों को भी बधाई दे रहे हैं. उनका हौसला बढ़ा रहे हैं. इससे पहले सिर्फ जीतने वाले खिलाड़ियों को बधाई दी जाती थी. जबकि सच ये है कि जीतने वालों के साथ जश्न में तो सभी शामिल हो जाते हैं. लेकिन हारने वालों को दिलासा देने वाले और उनका उत्साहवर्धन करने वाले बहुत कम होते हैं. भारत जैसे देश में क्रिकेट के अलावा जब किसी और खेल की कोई टीम मैदान पर उतरती है तो उसका समर्थन करने वाले इक्का दुक्का लोग होते हैं. लेकिन जब टीम जीत जाती है तो सब बधाई देने वालों में शामिल हो जाते हैं. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इस परंपरा को तोड़ते हुए खिलाड़ियों का समर्थन भी किया उन्हें जीत पर बधाई भी दी और हारने पर दिलासा भी दिया. इसके अलावा अब से कुछ देर पहले ही प्रधानमंत्री मोदी ने हॉकी टीम के सभी खिलाड़ियो को अलग-अलग ट्वीट करके बधाई दी है और हर एक खिलाड़ी की तारीफ की है.
अगर चीन में उनकी टीम ब्रॉन्ज मेडल जीतती या मुकाबला हार जाती तो वहां के राष्ट्रपति शी जिनपिंग कभी अपनी टीम को ऐसे बधाई नहीं देते या उनका हौसला नहीं बढ़ाते. जबकि हार और जीत के बावजूद अपने खिलाड़ियों के साथ खड़े रहना ही असली राष्ट्रवाद है. खिलाड़ी ही नहीं जब देश के वैज्ञानिक भी प्रयास करने के बाद असफल हो जाते हैं तो उन्हें भी हौसला अफजाई की जरूरत होती है. 7 सितंबर 2019 को जब भारत का चंद्रयान टू चंद्रमा की सतह पर क्रैश लेंड हो गया था तब भारत की अंतरिक्ष एजेंसी ISRO के चेयरमैन हताश हो गए थे, और उनकी आंखों में आंसू आ गए थे. तब भी प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें गले लगाकर चुप कराया और कहा कि जीवन में उतार चढ़ाव आते रहते हैं. ऐसे ही भाव उस समय भारत के करोड़ों लोगों के मन में था. जो बताता है कि भारत के करोड़ों लोगों के लिए असली राष्ट्रवाद का मतलब क्या है.
आज भारत की जीत के हीरो गोल कीपर श्रीजेश थे. श्रीजेश केरल के रहने वाले हैं और उनके गोल कीपर बनने की कहानी बहुत दिलचस्प है. पहलवान रवि दहिया और भारत की हॉकी टीम की जीत हमें बताती है कि जीवन में एक-एक सेकंड का कितना महत्व होता है. जीवन कुछ ही पलों में हार और जीत का फैसला कर देता है. ये उपलब्धि हमें सब्र का महत्व भी सिखाती है. सेमिफाइनल में रवि दहिया आखिर तक अपने प्रतिद्वंदी से पिछड़ रहे थे. उनके पास सिर्फ 2 मिनट बाकी थे वो चाहते तो वहीं मानसिक रूप से हार मान लेते, लेकिन रवि दहिया ने अपना सब्र नहीं खोया और आखिर के कुछ सेकंड में खेल का रुख बदल दिया और जीत गए.
जीवन में लड़ते हुए आप कई बार घायल भी हो जाते हैं. चोट आपके शरीर को भी लग सकती है और मन को भी, और ये चोट कोई और भी आपको पहुंचा सकता है. जैसा रवि दहिया के साथ हुआ. लेकिन चुनौतियों के जबड़े चाहे जितने भी मजबूत हो वो आपके इरादों से मजबूत नहीं हो सकते. इसलिए अपने इरादों को फौलादी बनाइए, फिर आप जीवन में कोई मैच नहीं हारेंगे. इसी तरह हॉकी टीम को ये उपलब्धि हासिल करने में 41 वर्ष लग गए. ये इंतजार बहुत लंबा होता है. कामयाबी का इंतजार करते-करते लोग हताश हो जाते हैं, निराश हो जाते हैं. लेकिन अगर आप प्रयास जारी रखते हैं तो ये प्रयास ही आपकी प्राणवायु बन जाता है, और आप सफलता के पोडियम पर पहुंचकर ही दम लेते हैं.
भारत में क्रिकेट मैच के दौरान तो स्टेडियम दर्शकों से भरे होते हैं. लेकिन हॉकी या दूसरे खेलों के दौरान स्टेडियम लगभग खाली रहते हैं. ये बात किसी भी खिलाड़ी का मनोबल तोड़ सकती है. लेकिन खाली स्टेडियम में खेलने की यही आदत भारत के खिलाड़ियों के काम आई. ओलंपिक्स में, कोरोना की वजह से दर्शकों पर पाबंदी है. इसलिए स्टेडियम खाली हैं. दूसरे देशों के खिलाड़ियों के लिए ये दिक्कत की बात है, क्योंकि उनका हौसला बढ़ाने के लिए उनके देश के फैन्स वहां मौजूद नहीं हैं. लेकिन भारतीय खिलाड़ियों ने ओलंपिक खेलों के दौरान इसी स्थिति का फायदा उठाया और जो बात कभी उनका मनोबल तोड़ती थी, वही बात आज उनके लिए ताकत बन गई.
विपरित परिस्थतियां कैसे भारत के खिलाड़ियों के लिए अवसर बन गई. इसे एक और उदाहरण से समझिए. टोक्यो में इन दिनों भीषण गर्मी पड़ रही है. तापमान 40 डिग्री से ऊपर है. 120 वर्षों में पहली बार टोक्यो में इतनी गर्मी पड़ी है. दुनिया के बहुत सारे चैंपियन खिलाड़ी इस गर्मी का सामना नहीं कर पा रहे, और उनका प्रदर्शन खराब हो रहा है. क्योंकि इनमें से ज्यादातर खिलाड़ी जिन देशों से आते हैं, उन देशों में इतनी गर्मी नहीं पड़ती. लेकिन भारत के ज्यादातर खिलाड़ी इसी गर्मी और उमस में खेलते हुए राष्ट्रीय टीम का हिस्सा बनते हैं. कई खिलाड़ियों ने तो गर्मी की वजह से अपना नाम वापस ले लिया और रूस के एक टेनिस खिलाड़ी ने तो अंपायर को यहां तक कह दिया कि वो अगर इस गर्मी से मर गए तो क्या अंपायर इसकी जिम्मेदारी लेंगे. इसी गर्मी की वजह से हॉकी के ब्रॉन्ज मेडल बैच में जर्मनी के खिलाड़ी मैदान पर दौड़ते हुए. बहुत परेशान नजर आए, जबकि भारत के खिलाड़ियों को देखकर लग रहा था कि गर्मी उनके लिए कोई समस्या ही नहीं है. इसे ही कहते हैं. हालात को अपने पक्ष में करके, उसे एक अवसर में बदलना, और ये बात आप भारत के खिलाड़ियों से सीख सकते हैं.