Court News: याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि चिंता की बात यह है कि देशभर के पुलिस थाने इलाज के दौरान दुर्भाग्यवश मरीजों की मौत होने पर डॉक्टरों के खिलाफ मामले दर्ज कर रहे हैं.
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Supreme Court on Doctor's Attack: सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टरों पर बढ़ते हमलों से उन्हें बचाने के लिए निर्देश जारी करने वाली याचिकाओं पर विचार करने से बुधवार को इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि उससे हर काम करने और हर चीज पर नजर रखने की उम्मीद नहीं की जा सकती. जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि संबंधित दिशा-निर्देश पहले ही निर्धारित किए जा चुके हैं और याचिकाकर्ता उचित वाद दायर करने के लिए स्वतंत्र हैं.
बेंच ने कहा, 'आप सुप्रीम कोर्ट से यह अपेक्षा नहीं कर सकते कि सभी कुछ वह करेगा और प्रत्येक गतिविधि पर निगरानी रखेगा.' याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एक वकील ने जब डॉक्टरों पर हमले की घटनाओं का जिक्र किया, तो बेंच ने कहा, 'ये सभी बहुत दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट यहां बैठकर हर घटना की निगरानी नहीं कर सकता है.'
क्या है पूरा मामला?
बेंच 2022 में दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें डॉक्टरों पर हमले के मामले बढ़ने का आरोप लगाया गया था और उनकी सुरक्षा के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने का अनुरोध किया गया था. एक याचिका में राजस्थान के दौसा में एक स्त्री रोग विशेषज्ञ की कथित आत्महत्या की जांच सीबीआई से कराने का अनुरोध किया गया है. राजस्थान में प्रसव के दौरान ज्यादा खून बह जाने के कारण एक मरीज की मौत के बाद भीड़ ने उनको काफी परेशान किया था. इसके बाद स्त्री रोग विशेषज्ञ ने आत्महत्या कर ली थी.
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एक वकील ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के 21 अक्टूबर, 2022 के आदेश का हवाला दिया, जिसमें केंद्र और अन्य को नोटिस जारी कर इन याचिकाओं पर जवाब मांगा गया था. याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एक वकील ने कहा कि वास्तविकता यह है कि भले ही सुप्रीम कोर्ट का कोई फैसला आ गया हो, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ भी नहीं बदला है.
दोबारा दिशा-निर्देश देने का क्या मतलब?
बेंच ने पूछा, ‘‘तो फिर दोबारा दिशा-निर्देश देने का क्या मतलब है?’’ जब वकील ने कहा कि संसद ने भी इस मुद्दे पर विचार किया है, तो बेंच ने कहा, ‘‘यह काम संसद को करना है.’’ जब वकील ने दलील दी कि डॉक्टरों पर हमले के मामलों से निपटने के लिए पुलिस को ट्रेंड किया जाना चाहिए, तो बेंच ने कहा, ‘‘ये सभी नीतिगत मामले हैं.’’
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि चिंता की बात यह है कि देशभर के पुलिस थाने इलाज के दौरान दुर्भाग्यवश मरीजों की मौत होने पर डॉक्टरों के खिलाफ मामले दर्ज कर रहे हैं.
बेंच ने पूछा, 'सभी पुलिस थानों के खिलाफ इस तरह का आरोप कैसे लगाया जा सकता है?' इसने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले फैसले में पहले ही दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं और निर्देशों का उल्लंघन अवमानना के समान होगा. बेंच ने कहा, 'इस तरह सामान्य निर्देश कैसे दिए जा सकते हैं?' शंकरनारायणन ने कहा कि अक्टूबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी नोटिस के अनुसार, चार राज्यों ने अपने जवाब दाखिल किए और उन्होंने याचिका की स्वीकार्यता पर कोई आपत्ति नहीं जताई.
बेंच ने पूछा, ‘‘तो क्या एक बार नोटिस जारी होने के बाद दूसरी बेंच इसे (याचिका को) खारिज नहीं कर सकती?’’ बेंच ने कहा, ‘‘अगर यह तुच्छ नहीं है तो यह परेशान करने वाली बात है.’’ शंकरनारायणन ने कहा कि याचिका में उठाए गए मुद्दे न तो परेशान करने वाले हैं और न ही तुच्छ. शंकरनारायणन ने बाद में अनुरोध किया कि क्योंकि चार राज्यों से जवाब आ चुके हैं, इसलिए सुप्रीम कोर्ट इस मामले को दिल्ली हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दे.