नई दिल्ली : सनातन धर्म के प्राचीन ग्रंथ वाल्मीकि रामायण में भगवान श्रीराम की ओर से श्रीलंका पर चढ़ाई के समय रामसेतु निर्माण का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। इसमें वर्णन है कि जब भगवान श्रीराम को लंका जाने के लिए समुद्र पर पुल बनाने की आवश्यकता हुई तो उन्होंने समुद्र देवता से अनुमति लेकर अपनी वानर सेना की सहायता से यह सौ योजन लंबा पुल बनाया था। श्रीराम की सेना लंका के विजय अभियान पर चलते समय जब समुद्र तट पर पहुंची तब विभीषण के परामर्श पर समुद्र तट पर डाब के आसन पर लेटकर भगवान राम ने समुद्र से मार्ग देने का आग्रह किया था। महाभारत में भी इस घटना का उल्लेख मिलता है। रामेश्वरम में आज भी श्रीराम की शयन मुद्रा मूर्ति विद्यमान है। समुद्र से रास्ता मांगने के लिए यहीं पर रामचंद्र जी ने तीन दिन तक प्रार्थना की थी। शास्त्रों में श्री रामसेतु के आकार के साथ-साथ इसकी निर्माण प्रक्रिया का भी उल्लेख मिलता है।
सीता हरण के बाद जब श्री राम ने सीता को रावण से छुड़ाने के लिए लंका द्वीप पर चढ़ाई की तो उस वक्त उन्होंने सभी देवताओं का आह्वान किया तथा युद्ध में विजय हेतु आशीर्वाद मांगा था। श्री राम ने वरुण देव से समुद्र पार जाने के लिए रास्ता मांगा था। जब वरुण ने प्रार्थना नहीं सुनी तो उन्होंने समुद्र को सुखाने के लिए धनुष उठाया। डरे हुए वरुण ने क्षमा याचना करते हुए उन्हें बताया कि श्री राम की सेना में मौजूद नल-नील नाम के वानर जिस पत्थर पर उनका नाम लिखकर समुद्र में डाल देंगे, वह तैर जाएगा और इस तरह श्री राम की सेना समुद्र पर पुल बनाकर उसे पार कर सकेगी। इसके बाद श्री राम की सेना ने लंका के रास्ते में पुल बनाया और लंका पर हमला कर विजय हासिल की। कहा जाता है कि रामसेतु के दर्शन मात्र से संसार-सागर से मुक्ति मिल जाती है। भगवान विष्णु और शिव में भक्ति तथा पुण्य की वृद्धि होती है। सेतु का दर्शन करने पर सब यज्ञों का, समस्त तीर्थो में स्नान का तथा सभी तपस्याओं का पुण्य फल प्राप्त होता है।
बता दें कि भारत के दक्षिणपूर्व में रामेश्वरम और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच उथली चट्टानों की एक चेन है। समुद्र में इन चट्टानों की गहराई सिर्फ 3 फुट से लेकर 30 फुट के बीच है। इस पुल की लंबाई करीब 48 किलोमीटर है।
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