EXCLUSIVE: पुरातत्वविदों को मिली 2000 साल पुरानी चावल और मूंग दाल की खिचड़ी
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EXCLUSIVE: पुरातत्वविदों को मिली 2000 साल पुरानी चावल और मूंग दाल की खिचड़ी

खिचड़ी की ये लोकप्रियता नई नहीं है. पुरातत्वविदों के अनुसार खिचड़ी का इतिहास कम से कम 2,000 साल पुराना है.

महाराष्ट्र के तेर की वह साइट जहां 2000 साल पुराने चावल के अवशेष मिले हैं.

मुंबई: क्या आम और क्या खास, सभी के जीवन में खिचड़ी का खास रोल है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी खाने में खिचड़ी सबसे ज्यादा पसंद है. परिवार से दूर रहने वालों का तो सहारा ही खिचड़ी है. खिचड़ी की ये लोकप्रियता नई नहीं है. पुरातत्वविदों के अनुसार खिचड़ी का इतिहास कम से कम 2,000 साल पुराना है.

पुरातत्वविदों को महाराष्ट्र में एक साथ पके हुए चावल और मूंग दाल मिले हैं. इसे पहली शताब्दी का बताया जा रहा है. इससे संकेत चलता है कि खिचड़ी 2000 साल पहले हमारी थाली का हिस्सा बन चुकी थी. ये अवशेष उस्मानाबाद जिले के तेर इलाके से मिले हैं. ये क्षेत्र प्राचीन भारत का एक प्रमुख व्यापारिक क्षेत्र था, और यहां प्रमुख रूप से रोम के साथ व्यापार होता था.

कैसे बनी खिचड़ी 
सोलापुर विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग की प्रमुख माया पाटिल ने कहा, 'हमें मिट्टी के दो टूटे हुए बर्तन मिले हैं. इस बर्तन में बड़ी मात्रा में चावल और मूंग दाल को एक साथ पकाया गया था. अनाज जले हुए थे और कार्बन में तब्दील हो गए थे.'

भारत में मिर्च, आलू और टमाटर से लोगों का परिचय कुछ शताब्दी पहले ही हुआ और इसके बाद निश्चित रूप से खिचड़ी के स्वाद में इजाफा हुआ होगा. हालांकि खिचड़ी पकाने के तौर-तरीकों में बदलाव होने के बाद भी दाल-चावल के स्वादिष्ट संयोजन बेमिसाल बना हुआ है. चाहें गरीब हो या अमीर, सादगी और सेहत के लिए उसकी पहली पसंद दाल-चावल की खिचड़ी ही है.

मनपसंद भोजन

इस समय महाराष्ट्र का ये क्षेत्र सूखाग्रस्त है और यहां ज्यादा बारिश नहीं होती है. यानी धान की खेती के लिए ये जगह सही नहीं है. इससे ये भी पता चलता है कि प्राचीन काल में यहां काफी बारिश होती रही होगी, तभी लोगों के भोजन में चावल का महत्वपूर्ण स्थान था. महाराष्ट्र में हड़प्पा की कई साइट्स से चावल के अवशेष मिले हैं, लेकिन शायद ये पहला मौका है जब चावल और दाल एक साथ पके हुए मिले हैं. दल को इसके अलावा पके हुए गेहूं, ज्वार, बाजरा और अरहर दाल भी मिले हैं. 

पाटिल ने बताया कि प्राचीन काल में यहां के लोग शाकाहारी और मांसाहारी दोनों थे. ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां इंसानी बस्तियों से मछली तथा भेड़ और बकरी जैसे पशुओं की हड्डियां मिली हैं.

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