देवेंद्र कुमार, नई दिल्ली: दिल्ली पुलिस में सब-इंस्पेक्टर के रूप में भर्ती हुए एक दरोगा ने बड़े अफसरों के संरक्षण में कई कुख्यात बदमाशों के एनकाउंटर किए. उस अधिकारी को इसका इनाम भी मिला और वह प्रमोशन पाते हुए एसीपी रैंक तक पहुंच गया. एसीपी बनने के बाद उसने कनॉट प्लेस में फिर एक एनकाउंटर (Fake Encounter)  को अंजाम दिया लेकिन उसका यह फैसला जीवन की सबसे बड़ी भूल साबित हुआ और 12 परिवारों की बर्बादी का सबब बन गया. 


वर्ष 1997 में दिल्ली में हुआ शूटआउट


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यह कहानी वर्ष 1997 में दिल्ली के कनॉट प्लेस (Connaught Place Shootout) में हुए फर्जी एनकाउंटर केस (Fake Encounter) की है. इस एनकाउंटर को दिल्ली पुलिस के एसीपी एसएस राठी (ACP SS Rathi) ने अंजाम दिया था. ‘एनकाउंटर स्पेशलिस्ट’ माने जाने वाला एसएस राठी पश्चिमी जिले के स्पेशल स्टाफ में था. कई अपराधियों करने की वजह से उसे सब-इंस्पेक्टर से इंस्पेक्टर बनाया जा चुका था. 


सब-इंस्पेक्टर से एसीपी तक हुआ प्रमोशन


इसके बाद उसने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुख्यात राजबीर रमाला को रेस्तरां में ढेर कर दिया था. उस वक्त रमाला पर तीन लाख रुपये का इनाम था. इसके बाद फरीदाबाद में जाकर तीन लाख रुपये के एक और इनामी रणपाल को मार गिराया था.  उसने तिलकनगर में सतबीर गूजर का एनकाउंटर किया था. इसके बाद राजबीर सिंह को एसीपी प्रमोट किया गया था.


कनॉट प्लेस में 2 कारोबारियों को मारा


क्राइम ब्रांच के एसीपी सत्यवीर सिंह राठी  (ACP SS Rathi) की टीम को सूचना मिली कि कुख्यात बदमाश यासीन अपने एक साथी के साथ कनॉट प्लेस में आने आने वाला है. उसकी टीम ने 31 मार्च, 1997 को कनॉट प्लेस में नीले रंग की मारुति कार को घेरकर बिना कोई मौका दिए ताबड़तोड़ गोलियां बरसा (Fake Encounter) दी.


उस कार में 3 लोग सवार थे. जिनमें 2 लोग मौके पर मारे गए जबकि एक घायल हो गया. पुलिस की टीम ने दावा किया कि घटना में 2 बदमाश मारे गए हैं और एक घायल है. पुलिस ने यह भी दावा किया कि कार सवार बदमाशों ने पिस्टल से पुलिस पर गोलियां चलाईं, जिसके जवाब में पुलिस ने उन पर फायर किया.


पुलिस कमिश्नर की चली गई थी कुर्सी 


बाद में मारे गए लोगों के परिवार ने मीडिया के सामने आकर कहा कि मृतकों के नाम प्रदीप गोयल और जगजीत सिंह थे. वे कोई बदमाश नहीं बल्कि कारोबारी थे. घायल हुआ तीसरा व्यक्ति तरुण भी कारोबारी ही था. परिवार वालों के इस खुलासे के बावजूद एसीपी एसएस राठी की टीम इस मुठभेड़ (Fake Encounter) को सही ठहराने पर अड़ी रही. उनकी बात का तत्कालीन पुलिस कमिश्नर निखिल कुमार ने भी समर्थन किया. हालांकि पब्लिक और मीडिया के जबरदस्त प्रेशर की वजह से केंद्र सरकार ने 24 घंटे में ही निखिल कुमार को पद से हटा दिया. 


जांच में फर्जी पाई गई मुठभेड़


इसके बाद एसीपी सत्यवीर सिंह राठी (ACP SS Rathi) , इंस्पेक्टर अनिल समेत दस पुलिस वालों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर सस्पेंड कर दिया गया. जनता के जबरदस्त आक्रोश को देखते हुए एलजी ने मामले की जांच सीबीआइ को सौंप दी. सीबीआई जांच में साबित हो गया कि मारे गए दोनों लोग गैंगस्टर नहीं बल्कि कारोबारी थे. कोर्ट में यह भी साबित हो गया कि पुलिस ने जिस पिस्टल को कारोबारियों से बरामद और फायरिंग होना दिखाया था, उससे कोई गोली चली ही नहीं थी. 


बर्बाद हो गई 12 परिवारों की जिंदगी


आखिरकार डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने एसीपी एसएस राठी  (ACP SS Rathi) समेत सभी 10 पुलिस वालों को उम्र कैद की सजा सुना दी. इस सजा को हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी बहाल रखा. दिलचस्प बात ये है कि जिस यासीन के चक्कर में दो बेगुनाह लोगों को मार दिया गया था, उसे घटना के 5 दिन बाद 4 अप्रैल 1997 को क्राइम ब्रांच की दूसरी टीम ने दरियागंज के एक रेस्त्रां से बिना खून खराबे के पकड़ लिया था. इस घटना में दोनों कारोबारियों के परिवारों के अलावा आरोपी 10 पुलिस वालों के परिवारों की जिंदगी भी बर्बाद हो गई.


प्रमोशन-पुरस्कारों की चाह पड़ी भारी


तत्कालीन पुलिस अफसरों के मुताबिक यह शूटआउट (Connaught Place Shootout) आउट ऑफ टर्न प्रमोशन और वीरता पुरस्कार हासिल करने के लालच में हुआ था. दरअसल यह वह दौर था, जब बदमाशों को ठिकाने लगाने वाले पुलिसवालों को दिल्ली पुलिस में जमकर आउट ऑफ टर्न प्रमोशन दिया जा रहा था. 


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कभी भुला नहीं सकेंगे पीड़ित परिवार


खुद एसीपी राठी  (ACP SS Rathi) भी ऐसे ही सीढ़ी चढ़कर एसीपी बना था. अब वह इस पद से ऊपर उठकर डीसीपी बनना चाहता था. उसके साथियों की भी ऐसी ही इच्छा थी लेकिन कनॉट प्लेस शूटआउट में 2 कारोबारियों की हत्या से उनका यह अरमान अधूरा रह गया. इसके साथ ही वह पीड़ित परिवारों को हमेशा के लिए ऐसी टीस दे गया, जिसे वे कभी भुला नहीं सकेंगे. 


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