Galwan Valley में भारत के शूरवीरों की विजयगाथा, जानें उस रात की एक-एक बात
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Galwan Valley में भारत के शूरवीरों की विजयगाथा, जानें उस रात की एक-एक बात

गलवान की उस घटना को आज भी कोई भूला नहीं है. एक तरफ चीन के बुज़दिलों की नापाक फ़ौज थी तो दूसरी तरफ भारतीय जवान साहस और शौर्य की वीरगाथा लिख रहे थे. ठीक एक साल पहले 15 जून को लद्दाख की बर्फीली गलवान नदी के किनारे चीन ने धोखे से हमला किया तो भारत के शूरवीरों ने चीनी सैनिकों का कचूमर निकाल दिया.

जी मीडिया

नई दिल्ली: पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प को अब एक साल बीत चुका है. यह एक साल भारतीय सेना के शौर्य का एक साल है जब आज ही के दिन चीनी सैनिकों को भारतीय सेना ने सबक सिखाया था. इस दुर्गम इलाके में भारतीय सेना अब भी चीन की हर नापाक हरकत से निपटने को तैयार है.

  1. गलवान झड़प का एक साल
  2. जानें उस रात की पूरी कहानी
  3. भारतीय जवानों ने चटाई थी धूल

चीन को करारा जवाब

गलवान घाटी की हिंसक झड़प में 20 भारतीय जवानों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था लेकिन चालाक चीन ने आज तक खुद को हुए नुकसान की कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी है. इस झड़प से भारतीय शूरवीरों ने धोखेबाज़ चीन को एक सबक तो जरूर दिया कि अगर अब हिमाकत की तो अंजाम बहुत ही बुरा होगा.

एक साल पहले की उस घटना को आज भी कोई भूला नहीं है. एक तरफ चीन के बुज़दिलों की नापाक फ़ौज थी तो दूसरी तरफ भारतीय जवान साहस और शौर्य की वीरगाथा लिख रहे थे. ठीक एक साल पहले 15 जून को लद्दाख की बर्फीली गलवान नदी के किनारे चीन ने धोखे से हमला किया तो भारत के शूरवीरों ने चीनी सैनिकों का कचूमर निकाल दिया. इस झड़प में चीन के कई सैनिक मारे गए लेकिन भारत ने भी अपने 20 वीर जवानों को खो दिया. 

कितनी तैयार भारतीय सेना?

गलवान झड़प के बाद से ही भारतीय सेना खुद को मजबूत बनाने में जुटी हुई है. इसी रणनीति के तहत लद्दाख में करीब 60 हजार सैनिकों की तैनाती की गई है. सैनिको के लिए बुनियादी सुविधाओं को और विकसित किया गया और अत्याधुनिक हथियारों की खरीद भी हुई. इसके अलावा ड्रोन, सेंसर, टोही विमानों से अब LAC पर नज़र रखी जा रही है. DRDO का खास सर्विलांस सिस्टम भी तैनात करने का प्लान बनाया गया है. इस इलाके में सीमा पर सड़कों के निर्माण में और तेजी लाई जा रही है जिसके तहत भारत-चीन की सीमा पर 32 सड़कों का निर्माण होगा.

सीमा पर तनाव के बीच भी भारत हमेशा से शांति के प्रयास करता रहा. इसी कोशिश में भारत और चीन के बीच कोर कमांडर लेवल की बैठक होती रही हैं. अब तक 11 दौर की सैन्य वार्ता हो चुकी है. चीन का सामना करने के लिए भारतीय फ़ौज पूरी तरह से तैयार है और लगातार खुद को मजबूत करने में जुटी हुई है. वायुसेना ने भी अब इस इलाके में अपनी मोर्चाबंदी कर दी है.

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भारत के वायुवीर LAC पर की पैनी नजर बनाए हुए हैं. इलाके में पूरी तरह एक्टिव और लड़ाकू विमानों की तैनाती की गई साथ ही सबसे एडवांस रफाल लड़ाकू विमानों की तैनाती की गई है. इसके अलावा दुश्मन के हर दांव से निपटने के लिए शिनूक और अपाचे जैसे हाई टेक हेलिकॉप्टर भी इस इलाके में गश्त लगाते मिल जाएंगे. LAC पर तेजस विमान को भी तैनात किया गया है. 

भारतीय सेना लद्दाख में चीन के साथ किसी भी स्थिति से निपटने के लिए खुद को बेहतर बनाने में जुटी है. माइनस 40 डिग्री तापमान में भी LAC पर भारतीय जवानों का जोश हाई है. पिछले एक साल में लद्दाख में 60 हजार से ज्यादा सैनिकों की तैनाती की गई. इसके अलावा सेना की खुफिया यूनिट हाई अलर्ट पर रहती है. 

गलवान झड़प के बाद भारत ने भी एलएसी पर चीन के प्रति अपने रवैये में भी बड़ा बदलाव किया है. रणनीतिक चोटियों पर भारत ने कब्जा किया क्योंकि नया भारत दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए हर पल तैयार है.

गलवान में उस रात क्या हुआ?

गलवान घाटी में चीन और भारत के सैनिकों में झड़प की वजह सीमा पर चीन की एक ऑब्जर्वेशनल पोस्ट थी. 16 बिहार इंफैन्ट्री रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल संतोष बाबू इसे लेकर कई बार चीनी कमांडर को आपत्ति दर्ज करवा चुके थे. एक बार उनके कहने पर चीन ने इस कैम्प को हटा भी दिया. लेकिन 14 जून को अचानक फिर से ये कैम्प खड़ा कर दिया गया. यहीं से गलवान में भारत के शौर्य की वीर गाथा शुरू हुई थी.

इस कैम्प को लेकर जैसे ही कर्नल संतोष बाबू ने चीनी ऑफिसर से सवाल किया एक चीनी सैनिक ने उन्हें धक्का दिया और गालियां देने लगा. फिर क्या था 16 बिहार इंफैन्ट्री रेजिमेंट के सैनिकों ने चीन के सैनिकों को पीटना शुरू कर दिया. भारतीय सैनिकों ने चीन के ऑब्जर्वेशन पोस्ट को तहस-नहस कर दिया. ये लड़ाई का सिर्फ पहला राउंड था और अगले कुछ ही घंटों में गलवान घाटी का इतिहास और भूगोल दोनों बदलने वाला था.

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शाम तक सीमा पर भारतीय और चीनी सैनिकों का जमावड़ा बढ़ने लगा. यहीं से गलवान घाटी में दूसरा और सबसे अहम राउंड शुरू होने वाला था. यहां पर चीन के सैनिकों ने प्लान बनाकर सोची समझी साज़िश के तहत भारतीय सैनिकों पर हमला किया. 15 जून की शाम को शुरू हुआ बिना हथियारों का ये युद्ध देर रात तक चला और कर्नल संतोष बाबू इसी लड़ाई में शहीद हो गए.

कर्नल की शहादत का बदला

कर्नल संतोष बाबू का शहीद होना चीन की सेना पर सबसे ज्यादा भारी पड़ा. जब ये ख़बर भारतीय सैनिकों को मिली, तो उनके गुस्से की कोई सीमा नहीं थी, क्योंकि भारतीय सेना में कमांडिंग अफसर को सैनिक पिता की तरह सम्मान देते हैं. कमांडिंग अफसर को हाथ लगाना तो दूर, उनसे अभद्र भाषा में बात करना भी सैनिक बर्दाश्त नहीं करते. यहीं से उस रात की लड़ाई का तीसरा राउंड शुरू हुआ और फिर ये लड़ाई करीब आधी रात तक चली. 

तीसरे राउंड की लड़ाई में 16 बिहार रेजीमेंट के साथ,  'Three मीडियम' रेजीमेंट और तीसरी पंजाब रेजीमेंट के सैनिक भी थे. हमारे सैनिकों ने एक खास जगह पर, जहां पर चीन का कर्नल खड़ा था, वहां पर हमला किया. भारतीय सैनिकों ने चीन के कर्नल को जिंदा पकड़ लिया और वहां मौजूद चीन के 7 सैनिकों को तुरंत मार गिराया. 

बगैर हथियारों के लड़ी जंग

इसके बाद तो भारत और चीन के सैनिकों के बीच बिना हथियार के सबसे बड़ा युद्ध शुरू हो गया. बिहार रेजिमेंट का एक-एक जवान चीन के 10-10 जवानों पर भारी पड़ रहा था. दोनों ओर से तकरीबन 4 से 5 घंटे तक बिना हथियारों वाला युद्ध चलता रहा. गलवान घाटी की ये लड़ाई पत्थरों और डंडों से लड़ी गई. चीन के सैनिकों के पास खास तरह के डंडे थे, जिनमें नुकीली कीलें लगी हुई थीं. जबकि भारतीय सैनिक अपने फौलादी इरादों से उन्हें ज़मींदोज़ कर रहे थे. भारतीय शूरवीरों के पराक्रम ने चीनी मंसूबों को नेस्तनाबूत कर दिया था.

तीसरे राउंड की इस लड़ाई में दोनों देशों के कई सैनिक लड़ते-लड़ते गलवान नदी में गिर गए. इस संघर्ष में हमारे 20 सैनिक शहीद हुए और चीन के 40 से 50 सैनिक मारे गए. 15 जून की रात ये सब होता रहा लेकिन देश की जनता को अब तक कुछ पता नहीं था. सबसे बड़ी बात ये है कि 15 जून की रात की इस लड़ाई में भी भारतीय सेना ने अनुशासन नहीं तोड़ा. चीन के साथ समझौते को नहीं तोड़ा. इसलिए एक भी गोली नहीं चली. लेकिन हथियार ना चलाने के बावजूद भारत के सैनिकों ने चीन के धोखे का पूरा बदला ले लिया.

इस घटना के बाद से अब तक दोनों पक्षों के बीच विश्वास बहाल नहीं हो पाया है. सैन्य और राजनयिक स्तर पर कई दौर की बातचीत के बाद दोनों सेनाओं ने फरवरी में पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी तट से सैनिकों और हथियारों को हटाने की प्रक्रिया पूरी कर ली. टकराव के बाकी स्थानों से भी सैनिकों को पीछे हटाने की प्रक्रिया पर बातचीत चल रही है.

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