1990 में तीन अक्टूबर की सुबह दोनों तरफ की जर्मनी में रहने वाले लोगों के लिए एक नया अहसास लेकर आई.
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भारत और पाकिस्तान के विभाजन के साथ ही एक खुशफहमी भरी आवाज हाशिए से उठती रही है कि कभी न कभी ये जुदा देश फिर एक होंगे. यहीं से बड़ा सवाल उठता है कि क्या कभी ऐसा हुआ है कि जब कोई देश टूटकर हिस्सों में बंट जाए लेकिन फिर एक हो जाए. जी हां, शीत युद्ध के दौर में विचारधाराओं के आधार पर जर्मनी टूटकर दो हिस्सों में बंटा. उसके 45 बरस बाद आज ही के दिन तीन अक्टूबर, 1990 को विभाजित हुए पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी एक हो गए. यह आधुनिक इतिहास में पहला मौका था कि किसी विभाजित देश को जनांदोलन के चलते फिर से एक होने का मौका मिला.
1990 में तीन अक्टूबर की सुबह दोनों तरफ की जर्मनी में रहने वाले लोगों के लिए एक नया अहसास लेकर आई. उसकी पिछली रात से ही बर्लिन के ब्रांडनबुर्गर गेट के सामने लाखों की तादाद में लोग जमा थे और वह 45 बरस बाद एकीकृत जर्मनी का सूरज उगते हुए देखना चाहते थे. सुबह होते-होते जब रोशनी की किरणें बिखरीं तो क्षितिज पर पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी में नहीं बल्कि एकीकृत जर्मनी में चमक उभरी.
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शीत युद्ध
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1945 में नाजी जर्मनी की हार के बाद जर्मनी दो हिस्सों में बंट गया. पूर्वी हिस्से पर तत्कालीन सोवियत संघ (रूस) का वर्चस्व हो गया और पश्चिमी हिस्से पर फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका का वर्चस्व हुआ. बर्लिन और जर्मनी के बाकी प्रांतों को चार मिलिट्री केंद्रों में विभाजन के आधार पर यह बंटवारा हुआ था. इसका नतीजा यह हुआ कि पश्चिमी शक्तियों के नियंत्रण वाला हिस्सा 23 मई 1949 को फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी (पश्चिमी जर्मनी) कहलाया. दूसरी तरफ सोवियत संघ के नियंत्रण वाला दक्षिणी जोन उसी साल सात अक्टूबर को जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक (पूर्वी जर्मनी) कहलाया. पूर्वी जर्मनी ने ईस्ट बर्लिन को अपनी राजधानी बनाया और पश्चिमी जर्मनी ने बॉन को अपनी राजधानी बनाया. इन सबका नतीजा यह हुआ कि विचारधारात्मक स्तर पर पूर्वी जर्मनी, रूस के प्रभाव के कारण कम्युनिस्ट देश बन गया और पश्चिमी जर्मनी पूंजीवादी देश के रूप में आगे बढ़ा.
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एक दीवार जो बाद में ढहा दी गई
1950 के दशक में पश्चिमी जर्मनी ने सोशल मार्केट इकोनॉमी को अपनाया और तेजी से आर्थिक प्रगति की. 1955 में यह नाटो का हिस्सा बना और 1957 में यूरोपीय इकोनॉमिक कम्युनिटी का हिस्सा बना. दूसरी तरफ पूर्वी जर्मनी ने सोवियत संघ के नियंत्रित इकोनॉमी के मॉडल को अपनाया. दोनों देशों के लोगों के बीच आवागमन को रोकने के लिए 1961 में बर्लिन वॉल भी बनाई गई. लेकिन जर्मन लोगों ने कभी विभाजन और दीवार को स्वीकार नहीं किया. इन सबका नतीजा यह हुआ कि 1970 का दशक आते-आते लोगों ने फिर से एक होने के लिए आंदोलन शुरू कर दिए. नतीजतन दोनों तरफ के नेतृत्व के बीच भी तनाव खत्म हुआ.
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1989 में हंगरी ने अपनी तरफ से बॉर्डर पर बनाई दीवार को गिरा दिया. उसका असर यह हुआ कि पूर्वी जर्मनी से हजारों लोग हंगरी होते हुए पश्चिमी जर्मनी भाग गए. इसका एक सबसे बड़ा कारण यह भी था कि एक तरफ पश्चिम जर्मनी जहां फल-फूल रहा था, वहीं पूर्वी जर्मनी आर्थिक तंगी, बेरोजगारी से जूझता हुआ बदहाल देश था. इसलिए बेहतर जिंदगी की आस में लोग मौका पाते ही पूर्वी जर्मनी से पश्चिमी जर्मनी की तरफ भाग रहे थे. सोवियत संघ के प्रभाव वाले पोलैंड और हंगरी में भी कम्युनिस्ट शासन के खिलाफ जन आंदोलन शुरू हो गए थे. इन सबका नतीजा यह हुआ कि लोगों ने 1989 में बर्लिन की दीवार को ढहा दिया. पूर्वी जर्मनी ने भी बॉर्डर पर राहत दे दी. एकीकरण के लिए बढ़ते जन आंदोलन के बीच 12 सितंबर, 1990 को टू प्लस फोर ट्रीटी के तहत शीत युद्ध की सभी शक्तियों ने जर्मनी पर अपनी दावेदारी को छोड़ा और जर्मनी को संप्रभुता मिली. इसके साथ ही तीन अक्टूबर, 1990 को जर्मनी का एकीकरण हो गया.