सती प्रथा, बाल विवाह का अंत करने वाले राजा राममोहन की याद में Google ने बनाया खास Doodle
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सती प्रथा, बाल विवाह का अंत करने वाले राजा राममोहन की याद में Google ने बनाया खास Doodle

राजा राममोहन राय को 'आधुनिक भारत का निर्माता', 'आधुनिक भारत का जनक', 'बंगाल पुनर्जागरण का प्रणेता' और 'भारतीय पत्रकारिता के पायनियर' के रूप में भी जाना जाता है. वह पेशे से पत्रकार थे. 

समाज सुधारक और सती प्रथा का अंत करने वाले राजा राममोहन राय का आज 246वां जन्मदिवस है. (फोटो साभार: गूगल)

नई दिल्ली : भारतीय इतिहास में सामाजिक बुराई का इतिहास काफी पुराना है. बाल विवाह, विधवा स्त्री के साथ होने वाली कुप्रथा से लेकर सती प्रथा की कुरीतियां भारतीय समाज का लंबे समय कर अभिन्न अंग रही हैं. जिस वक्त समाज ये सब घटनाएं और रीति-रिवाज निभाए जा रहे थे, उस वक्त उनके खिलाफ बोलना तो क्या किसी से राय मांगना भी पाप के समान माना जाता था. ऐसे वक्त में लोगों की सोच को सुधारने और इन प्रथाओं को खत्म करने के लिए समाज सधुराक राजा राममोहन राय आगे और इनका विरोध किया. आज (22 मई) को राजा राममोहन राय का 246वां जन्मदिन है. उनके जन्मदिन पर दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल ने एक खास तरह का डूडल बनाकर उन्हें याद किया है.

  1. राजा राममोहन राय ने किया था सती प्रथा का विरोध
  2. मूर्ति पूजन के खिलाफ थे राजा राममोहन राय
  3. ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी छोड़कर की थी राष्ट्र सेवा

राजा राममोहन राय को 'आधुनिक भारत का निर्माता', 'आधुनिक भारत का जनक', 'बंगाल पुनर्जागरण का प्रणेता' और 'भारतीय पत्रकारिता के पायनियर' के रूप में भी जाना जाता है. वह पेशे से पत्रकार थे. उनका जन्म 22 मई, 1772 को हुआ था. भारतीय इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो राजा राममोहन राय बचपन से ही काफी होनहार थे. महज 15 साल की उम्र में उन्हें बंगाली, संस्कृत, अरबी और फ़ारसी भाषा का ज्ञान हो गया था. किशोरावस्था में उन्होने काफी भ्रमण किया. उन्होंने 1803-1814 तक ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिए भी काम किया. 

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मूर्ति पूजा के विधोरी थे राजा राममोहन राय
भारत में होने वाली मूर्ति पूजा के खिलाफ उन्होंने 17 साल की उम्र में भी मोर्चा खोला था. ऐसा कहा जाता है कि वह अंग्रेजी भाषा और सभ्यता से काफी प्रभावित थे, इसलिए भारतीय प्रथाओं के वो खिलाफ थे. 

नौकरी छोड़ की थी राष्ट्र की सेवा
ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी छोड़कर राममोहन राय ने खुद को राष्ट्र सेवा में लगा दिया. वह भारत में दोहरी लड़ाई लड़ रहे थे, एक तो देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने की लड़ाई और दूसरी, समाज में फैलीं कुरुतियों से देश को मुक्त कराने की लड़ाई. उस समय सती प्रथा, बाल विवाह जैसी बुराइयां पूरे चरम पर थीं. उन्होंने देश में समाज सुधार के लिए संघर्ष किए.

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चिंतक और पत्रकार
राजा राममोहन राय ने 'ब्रह्ममैनिकल मैग्ज़ीन', 'संवाद कौमुदी', मिरात-उल-अखबार, बंगदूत जैसे स्तरीय पत्रों का संपादन-प्रकाशन किया. बंगदूत एक अनोखा पत्र था. इसमें बांग्ला, हिन्दी और फारसी भाषा का प्रयोग एक साथ किया जाता था. 

साल 1830 में मुगल साम्राज्य का दूत बनकर ब्रिटेन भी गए, ताकि सती प्रथा पर रोक लगाने वाला कानून पलटा जाए. 27 सितम्बर 1833 को राजा राममोहन राय का निधन इंग्लैंड में हुआ. ब्रिटेन के ब्रिस्टल नगर के आरनोस वेल क़ब्रिस्तान में राय की समाधि है.

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