The undying light a personal history of independent india: गोपाल कृष्ण गांधी की नई किताब में ऐसा दावा किया गया है.
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Gopal Krishna Gandhi Book: 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक चुनावी रैली के दौरान श्रीलंका के उग्रवादी संगठन LTTE (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम) से जुड़े आत्मघाती बम हमले में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कर दी गई थी. उस वक्त तत्कालीन मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) टी एन शेषन ने आम चुनाव प्रक्रिया को तत्काल रोकने का प्रस्ताव रखा था और खुद गृहमंत्री बनने की पेशकश की थी.
पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी की एक नई किताब में ऐसा दावा किया गया है. गोपाल गांधी उस वक्त तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन के संयुक्त सचिव थे. बुधवार को गांधी की बुक 'द अनडाइंग लाइट: ए पर्सनल हिस्ट्री ऑफ इंडिपेंडेंट इंडिया' का विमोचन किया गया. पुस्तक में गांधी ने याद किया कि शेषन ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने राष्ट्रपति को हत्या की खबर दी थी.
उन्होंने लिखा है कि शेषन उस रात बहुत तेजी से राष्ट्रपति भवन पहुंच गये थे. उस वक्त गोपाल कृष्ण गांधी राष्ट्रपति भवन में शेषन, वेंकटरमन और राष्ट्रपति के सचिव पी मुरारी के साथ मौजूद थे. उन्होंने कहा कि सीईसी ने इस मामले की तात्कालिकता के बारे में अपने विचार रखे थे.
पुस्तक में कहा गया है, 'शेषन ने शीघ्रता से कहा कि उन्हें लगता है कि चुनाव प्रक्रिया को तुरंत रोक दिया जाना चाहिए. देश की सुरक्षा को तेजी से नियंत्रण में लाया जाना चाहिए और वह सीईसी के रूप में अपनी भूमिका से परे जाकर कोई अन्य भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं और यदि आरवी (आर वेंकटरमन) को उचित लगे तो वह देश के गृहमंत्री के रूप में भी कार्य कर सकते हैं.'
जब गिर गई चंद्रशेखर की सरकार...
वर्ष 1991 की शुरुआत में कांग्रेस ने यह आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था कि सरकार ने राजीव गांधी की जासूसी कराई थी. चंद्रशेखर ने पद छोड़ दिया और किसी अन्य पार्टी के स्थिर विकल्प प्रदान करने में सक्षम नहीं होने के कारण नये चुनाव कराये गये.
गांधी के अनुसार उस दिन शेषन तनावपूर्ण स्थिति के दौरान पूरे समय मौजूद थे. हालांकि शेषन के किसी भी सुझाव पर विचार नहीं किया गया. प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा ने इसके तुरंत बाद राष्ट्रपति से मुलाकात की थी. इससे पहले चंद्रशेखर और चंद्रा ने उन्हें आश्वस्त किया कि संकट से निपटने के लिए हर कदम उठाया जा रहा है...घबराने की कोई जरूरत नहीं है, चुनाव प्रक्रिया को रोकने की कोई जरूरत नहीं है.
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चुनाव की बदली गईं तारीखें...
पुस्तक के अनुसार चुनावों को पूरी तरह से रोकने में असमर्थ शेषन ने दूसरे और तीसरे चरण के मतदान को महत्वपूर्ण रूप से स्थगित करने का आदेश दिया और 20 मई को हुए पहले चरण के मतदान के बाद दूसरे और तीसरे चरण के मतदान की तिथियों को बदलकर 12 और 15 जून किया गया.
किताब के अनुसार शेषन ने एक इंटरव्यू में दावा किया था कि चुनाव की तारीखें सरकार द्वारा तय की गई थीं. हालांकि चंद्रशेखर ने इस बात का पुरजोर खंडन किया था. गांधी ने पुस्तक में कहा, 'शेषन ऐसा क्यों कर रहे होंगे? केवल शेषन ही जानते थे. वी.पी. सिंह और आई.के. गुजराल ने 15 जून को आरवी से मुलाकात की और निर्वाचन आयोग की 'अजीब' प्रथाओं के बारे में शिकायत की थी.'
शेषन को 12 दिसंबर 1990 से 11 दिसंबर 1996 के बीच 10वें मुख्य निर्वाचन आयुक्त के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान प्रमुख चुनाव सुधारों की शुरुआत करने का श्रेय दिया जाता है.
(इनपुट: एजेंसी भाषा के साथ)