दिल्ली HC ने कहा, 'सेना की वर्दी की खुलेआम बिक्री के मुद्दे पर गंभीर नहीं है सरकार'
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दिल्ली HC ने कहा, 'सेना की वर्दी की खुलेआम बिक्री के मुद्दे पर गंभीर नहीं है सरकार'

पीठ ने कहा कि इस मुद्दे के ‘‘देश की सुरक्षा और लोक संरक्षा’’ पर बड़े प्रभाव हो सकते हैं, लेकिन मामले की गंभीरता के बावजूद लगता नहीं है कि केंद्र को इस बाबत कुछ करने में दिलचस्पी है. 

(प्रतीकात्मक फोटो)

नई दिल्ली : थलसेना की वर्दी और उपकरणों की खुली बिक्री पर चिंता जताते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लेने पर बुधवार को केंद्र सरकार की खिंचाई की और दिल्ली सरकार से कहा कि वह ऐसी चीजों की बिक्री और निर्माण पर लगाम के लिए कदम उठाए. पीठ ने कहा कि इस मुद्दे के ‘‘देश की सुरक्षा और लोक संरक्षा’’ पर बड़े प्रभाव हो सकते हैं, लेकिन मामले की गंभीरता के बावजूद लगता नहीं है कि केंद्र को इस बाबत कुछ करने में दिलचस्पी है. 

अदालत ने जनवरी 2016 में पठानकोट एयरबेस पर हुए हमले सहित कई अन्य ऐसी आतंकवादी वारदातों की पृष्ठभूमि में यह टिप्पणी की जिनमें हमलावरों ने भारतीय थलसेना की वर्दी पहन रखी थी. पठानकोट हमले में एक लेफ्टिनेंट कर्नल सहित सात सुरक्षाकर्मी और एक आम आदमी की मौत हो गई थी. नवंबर 2016 में भी जम्मू जिले के नगरोटा में थलसेना के XVI कोर मुख्यालय पर हमला हुआ था जिसमें आतंकवादियों ने पुलिस की वर्दी पहन रखी थी. इस घटना में दो अधिकारियों सहित सात सुरक्षाकर्मी मारे गए थे. 

अदालत ने दिया दिल्ली सरकार को निर्देश
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि वह सैन्य वर्दियों और सशस्त्र बलों के उपकरणों के निजी तौर पर निर्माण, जमा करके रखने और उन्हें बेचने पर अंकुश लगाने के लिए तत्काल कदम उठाए. पीठ ने रक्षा मंत्रालय से कहा कि वह इस बाबत कई सरकारी निर्देशों-आदेशों का पालन करने के लिए तुरंत कदम उठाए. 

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अदालत ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे इस बाबत आठ हफ्तों में रिपोर्ट दाखिल करे. पीठ ने कहा कि सैनिकों की ओर से पहनी जाने वाली वर्दियां या उनके पास रहने वाले उपकरणों को पहनने या रखने वालों पर दंडात्मक कार्रवाई करने का प्रावधान है, लेकिन एक भी मामले में कार्रवाई नहीं हुई है. फाइट फॉर ह्यूमन राइट्स नाम के एक एनजीओ की याचिका पर सुनवाई के दौरान पीठ ने यह आदेश दिया.

(इनपुट - भाषा)

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