Who Killed Salar Masood Ghazi: महमूद गजनवी ने भारत के गौरव सोमनाथ मंदिर को तोड़ने का जिम्मा अपने भतीजे को दिया था. उसी गाजी ने कई बार सोमनाथ मंदिर को तोड़कर हजारों हिंदुओं को मरवाया. लेकिन जब वह यूपी के श्रावस्ती जिले में पहुंचा तो वहां उसकी मुलाकात एक शेर दिल वाले राजा से हो गई, जिन्होंने उसे कब्र में पहुंचा दिया.
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Maharaja Suheldev and Salar Masood Ghazi: हिंदुस्तान का इतिहास शूरवीरों की गाथाओं से भरा पड़ा है लेकिन अक्सर बातें औरंगजेब, गजनवी और गाजी जैसे अत्याचारियों और आक्रमणकारियों की होती है. लेकिन ये अब नहीं होगा क्योंकि औरंगजेब की कब्र के खिलाफ आंदोलन के बीच संभल में गाजी के नाम पर लगने वाला मेला खत्म कर दिया गया. साथ ही बहराइच में मसूद गाजी की दरगाह पर भी लगने वाले मेले पर भी तलवार लटकी है. यानी कि इतिहास अपने असल नायकों को याद कर रहा है और आक्रांताओं का सबकुछ मिटता जा रहा है.
औरंगजेब और गाजी जैसे हिंदू विरोधी और अत्याचारियों की ऐतिहासिक निशानियां मिट गईं. उनके नाम पर शहरों-गांवों, सड़कों के नाम बदल दिए गए. गाजी के नाम पर लगने वाले एक मेले पर हंटर चल चुका है और अगले पर भी चल सकता है. तो आगे क्या अब औरंगजेब और गाजी की कब्र पर भी बुलडोजर चल सकता है क्योंकि जनता इनकी हकीकत जानकर अब खुद एक्शन की डिमांड कर रही है.
योगी राज में 'गाजी का निकाह'..कबूल नहीं!
हिंदुस्तान में आक्रांताओं और अत्याचारियों की कोई निशानियां नहीं बचेंगी. योगी राज में तो औरंगजेब और गाजी गैंग पर ताबड़तोड़ हंटर चल रहा है. आक्रमणकारियों की परंपरा पर रोक लगाने के लिये योगी फोर्स का बुलडोजर आ गया है. संभल में मसूद गाजी के नाम पर मेले पर फुलस्टॉप लगाने के बाद अब बहराइच में गाजी की दरगाह पर लगने वाले मेले को रोकने की विश्व हिंदू परिषद ने मांग की है.
15 मई से 15 जून के बीच 1 महीने तक गाजी की दरगाह पर जेठ मेला लगता है. इसी दौरान गाजी की दरगाह पर उनके निकाह की रस्म निभाई जाती है. जिसकी तैयारियां चल रही हैं. 18 मई को मुख्य कार्यक्रम के दिन ही बारात भी निकालने का प्लान है. आने वाली 15 अप्रैल से ही गाजी के चाहने वालों को निमंत्रण पत्र भेजने का काम शुरू होगा. उससे पहले ही हिंदू संगठन ने प्रशासन को ज्ञापन सौंपकर मेले की परमिशन ना देने की डिमांड की है.
वह महान राजा, जिसने गाजी को किया था खात्मा
डिमांड योगी फोर्स तक पहुंच चुकी है. क्या वही सख्ती बहराइच में भी दिखेगी, जैसी संभल में पुलिस ने दिखाई थी. योगी फोर्स का यहीं अंदाज रहा तो संभल के बाद बहराइच में गाजी के नाम पर लगने वाले मेले पर मंडराते संकट के बादल भी भाईजान पर मुसीबत बरसाएंगे.
लोगों की बातें आपको बताएं, उससे पहले गाजी के अंत के बारे में जान लीजिए. वह तलवार के दम पर अत्याचार करते हुए साल 1030-31 में अवध के इलाकों में घुसा. वो बाराबंकी होते हुए वो बहराइच और श्रावस्ती तक पहुंचा. 1034 में श्रावस्ती के महाराजा सुहेलदेव ने गाजी को युद्ध में पराजित कर उसका वध कर दिया. जिसके बाद मसूद गाजी को आज के बहराइच में दफना दिया गया. वहां पर बाद में उसके अनुनायियों मजार बनाकर उसका नाम दरगाह शरीफ कर दिया. यानी जो इलाका महाराजा सुहेलदेव के लिये जाना जाता है वहां गाजी के नाम पर मेला लगाने की तैयारी है.
मान्यता है कि जहां गाजी को दफनाया वहां बालार्क ऋषि का आश्रम था. जो हिंदुओं का धार्मिक स्थल था. इसीलिए अब हिंदुओं ने यहां गाजी के नाम पर मेला हटाने की मांग की. गाजी के अत्याचारों का कच्चा चिट्ठा खुल रहा है. पर भाईजान उसे हीरो बताने पर अड़े हैं..जैसे एक जमाने में मुगलों के लिए होता था.
बहराइच में ग़ाजी के नाम पर मेला क्यों?
यूपी में ग़ाजी का भी कोई नामलेवा नहीं होता. पर बहराइच में बाकायदा उसके नाम पर बड़ा आयोजन होता है. इसकी वजह है. सालार मसूद गाजी की मौत के 200 सालों बाद यहां मकबरा बनवाया गया. साल 1250 में दिल्ली के तत्कालीन मुगल शासक नसीरुद्दीन महमूद ने ये मकबरा बनवाया. नसीरुद्दीन महमूद ने गाजी को संत के तौर पर पेश किया और उसे प्रसिद्ध कर दिया. जबकि वह कट्टर लुटेरा था, जिसने चुन-चुनकर हिंदुओं को मारा और मंदिरों को तुड़वाया. एक और मुस्लिम शासक फिरोज़ शाह तुगलक ने इसी मकबरे के बगल में कई गुंबदों का निर्माण कराया.
जिसे आज सालार मसूद गाजी की दरगाह के तौर पर जाना जाता है. वहीं पर मई-जून के दौरान मेला लगता है, जिसको बंद करने की मांग हुई है. पर कई लोग यहां हिंदू-मुस्लिम सबकी आस्था होने का दावा कर रहे हैं. योगी सरकार की तरफ से भी गाजी की निशानियों को मिटाने की मांग उठ रही है.
औरंगजेब की मजार पर जाने वालों की संख्या में कमी
यूपी ही नहीं पूरा भारत अब औरंगजेब और गाजी के बदले अपने असली नायकों का इतिहास जान रहा है. तभी तो बहराइच की चित्तौरा झील के किनारे जहां गाजी और महाराजा सुहेलदेव की जंग हुई थी. वहां कई लोग विजयोत्सव भी मनाते हैं. यहां योगी सरकार ने स्मारक भी बनवाया है.
इसके बावजूद कुछ भाईजान हैं, जो अब भी हिंदुओं पर अत्याचार करने वालों में अपना रोल मॉडल ढूंढते हैं. पर इतिहास की सच्चाई जानने के बाद अब औरंगजेब की कब्र पर माथा फोड़ने वालों की संख्या में भारी गिरावट आई है.
औरंगजेब के नाम से भी लोग चिढ़ने लगे हैं. तभी तो मेरठ के औरंगाबाद गांव में नाम के बोर्ड पर कुछ लोगों ने कालिख पोत दी. आक्रांता चाहे औरंगजेब हो या फिर गाजी, सबके नाम और उससे जुड़ी निशानियां खत्म हो रही हैं क्योंकि देश अपने असल नायकों का सम्मान कर रहा है. वह अब जाग रहा है और देख रहा है कि वामपंथी इतिहासकारों ने किस तरह का माहौल तैयार कर उसे सच जानने से दूर रखा.