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DNA on Gyanvapi Masjid Row: हम आपको बनारस में ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanwari Masjid) की कुछ ऐसी दुर्लभ तस्वीरों के बारे में बताते हैं, जिनमें आपको टूटे हुए मन्दिर के अवशेष दिखाई देते हैं. बड़ी बात ये है कि राम मन्दिर के निर्माण और ज्ञानवापी मस्जिद में मिले सबूतों के बाद अब पूरे भारत में इतिहास में दी गई जानकारियों को चुनौती दी जा रही है. हमें ये बात याद रखनी चाहिए कि इतिहास हमेशा शक्तिशाली लोगों और शासकों की कलम से लिखा जाता है. हमारे देश में सैकड़ों वर्षों तक पहले मुगलों ने अपना इतिहास लिखा और फिर अंग्रेजों ने अपना इतिहास लिखा. आजादी के 75 वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है, जब इस इतिहास को चुनौती मिल रही है. यानी भारत के लोग अब धीरे धीरे जागृत हो रहे हैं.
इस मामले में हमें कई महत्वपूर्ण बातें पता चली हैं. हमारी टीम ने उन दुर्लभ तस्वीरों को भी ढूंढ निकाला है, जिनमें प्राचीन मन्दिर के बचे हुए अवशेष साफ़ दिख रहे हैं. इनमें एक तस्वीर में मस्जिद (Gyanwari Masjid) के पश्चिमी हिस्से की दीवार दिख रही है, जो मस्जिद के मूल ढांचे से बिलकुल अलग है. आपको पता चलेगा कि ये दीवार असल में मस्जिद के मूल ढांचे का हिस्सा है ही नहीं. असल में ये दीवार उस मन्दिर का बचा हुआ अवशेष है, जिसे औरंगज़ेब के आदेश पर 1669 में तोड़ दिया गया था. ये तमाम तस्वीरें हमें विजय शंकर रस्तोगी से मिली हैं, जो वर्ष 1991 में पहली बार इस मामले को कोर्ट में लेकर गए थे. आपको उनकी जुबानी इस मन्दिर और उसके बचे हुए अवशेषों की कहानी सुननी चाहिए.
बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च पेपर में बताया गया है कि औरंगजेब ने जानबूझकर इस मन्दिर की एक दीवार को नहीं तोड़ा था, ताकि इस शहर में रहने वाले हिन्दू इस बात को कभी ना भूलें कि वो मुगल शासकों के गुलाम होने से ज्यादा कुछ नहीं हैं.
अब हम आपको ज्ञानवापी परिसर (Gyanwari Masjid) में मौजूद उस वुज़ूखाने के एक नया वीडियो के बारे में बताते हैं. जिसमें शिवलिंग मिलने का दावा किया गया है. ये वीडियो एक साल पुराना बताया जा रहा है, जिसमें नंदीजी की प्रतिमा साफ दिख रही है. बड़ी बात ये है कि, ये प्रतिमा उत्तर की दिशा में देख रही है, जहां वुज़ूखाने में शिवलिंग मिलने की बात कही गई है. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, नंदीजी को भगवान शिव का वाहन माना गया है और उनकी मूर्ति ज्योतिर्लिंग के ठीक सामने स्थापित होती है. यानी इस हिसाब से ये प्रतिमा उसी दिशा में देख रही है, जहां वुज़ूखाने में शिवलिंग हो सकता है.
इस्लाम धर्म में वुज़ू को शुद्धि की एक प्रक्रिया बताया गया है. इसके मुताबिक़ जब कोई व्यक्ति नमाज से पहले वुज़ू करता है तो वो असल में इस दौरान अपने हाथ, मुंह, नाक, सिर, बाजुएं और अपने पैरों को पानी से धोता है और फिर नमाज़ पढ़ता है. वुज़ू के लिए जिस तालाब या हौज का इस्तेमाल होता है, उसे ही वुज़ूखाना कहते हैं. इस मामले में हिन्दू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanwari Masjid) के वुज़ूखाने के मध्य में जो पत्थर मिला है, वो शिवलिंग है. हालांकि मुस्लिम पक्ष इसे फव्वारा बता रहा है. हालांकि ये शिवलिंग है या फव्वारा, इस पर कोर्ट कमिश्नर की ओर से 19 मई को अदालत में सर्वे रिपोर्ट पेश की जाएगी.
#DNA: मिलावटी इतिहास को भारत के लोगों की चुनौती
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— Zee News (@ZeeNews) May 18, 2022
जो बात हम आपसे कहना चाहते हैं, वो ये कि इतिहास वही लोग लिखते हैं, जो शक्तिशाली होते हैं. इतिहास Rulers यानी शासकों द्वारा लिखा जाता है, जो अपनी ताकत से एक बड़ी आबादी पर राज करते हैं. वर्ष 1526 से 1857 के बीच जब भारत पर मुगलों का राज था, उस समय ये इतिहास मुगलों के दरबारी इतिहासकारों द्वारा लिखा गया. इसमें मुगल शासकों को भारत के नायक के तौर पर पेश किया गया. अकबर को Akbar The Great कहा गया. मुगलों ने हिन्दुओं पर जो अत्याचार किए और जो सैकड़ों मन्दिर तोड़ कर मस्जिदें बनाई गईं, उनकी वास्तविकता को भी मुगलों ने अपने हिसाब से इतिहास में लिखा.
इसी तरह मुगलों के बाद जब अंग्रेज़ भारत आए, तब उन्होंने भी भारत के इतिहास को अपने हिसाब से बदलने की कोशिश की. अंग्रेज़ों ने भारत का जो इतिहास लिखा, उसमें भारत की सांस्कृतिक पहचान, उसके मूल व्यवहार और उसकी वास्तविकता को हमेशा लोगों से छिपाया गया. 15 अगस्त 1947 को जब भारत आज़ाद हुआ, तब भी हमारे देश में इतिहास की रुपरेखा नहीं बदली. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आजादी के बाद भारत पर ऐसे नेताओं ने शासन किया, जो अंग्रेज़ों की बी-टीम का हिस्सा थे.
ये नेता अंग्रेज़ों की बी-टीम इसलिए थे, क्योंकि इन्होंने भारत की आज़ादी के बाद उसके मूल स्वभाव और उसकी ज़रूरत को कभी समझने की कोशिश नहीं की. तब हमने संविधान से लेकर देश के कानून तक, सबकुछ अंग्रेजों से कॉपी पेस्ट कर लिया.
आज़ादी के बाद भारत में वही शिक्षा व्यवस्था लागू रही, जो अंग्रेज़ भारत लेकर आए थे. इसी तरह भारत का संविधान भी अंग्रेज़ों की शासन प्रणाली से प्रभावित था. इसके अलावा हमारी संसद, हमारी न्यायपालिका और यहां तक कि हमारे कानून भी वही रहे, जो अंग्रेज़ों ने बनाए थे. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, राजद्रोह कानून, जिसे Sedition Law भी कहते हैं.
अंग्रेज़ी सरकार ये कानून वर्ष 1870 में भारत के क्रान्तिकारियों का दमन करने के लिए लाई थी. लेकिन ये कानून आज़ादी के 75 वर्ष बाद भी हमारे देश में मौजूद है. जिस पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है.
यानी हमारे देश के नेता अंग्रेजों से इस कदर प्रभावित थे कि उन्होंने भारत की मूल पहचान और उसके इतिहास को कभी समझा ही नहीं. ये बात सही है कि कोई भी देश चाह कर भी इतिहास को दोबारा नहीं लिख सकता. लेकिन ये बात भी उतनी ही सही है कि इतिहास में हुई गलतियों को सैकड़ों वर्षों के बाद भी सुधारा जा सकता है और गलत इतिहास को चुनौती दी सकती है.
उदाहरण के लिए, अमेरिका में अश्वेत नागरिक George Floyd की हत्या के बाद जो Black Lives Matter आन्दोलन शुरू हुआ, उसने अमेरिका और यूरोप के तमाम देशों को उनके नस्लीय भेदभाव के सही इतिहास के बारे में जानने के लिए मजबूर किया. इसका सीधा असर ये हुआ कि इन देशों के बड़े बड़े शहरों में जो Slave Traders की प्रतिमाएं थीं, उन्हें या तो तोड़ दिया गया या लोगों के दबाव के बाद हटा दिया गया. इनमें से अनेक Slave Traders ने अपने अपने शहरों में स्कूल, अस्पताल और सड़कें बनवाई थीं. लेकिन इस आन्दोलन के बाद लोगों ने ये समझा कि इन Slave Traders ने भले स्कूल और अस्पताल बनवाए लेकिन उन्होंने अश्वेत लोगों को गुलाम बनाकर उन पर अत्याचार भी किए थे.
यानी इतिहास में जो कमियां रह गई थीं, उसे वहां के लोगों ने सुधारने की कोशिश की. इसी तरह 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद पूर्वी यूरोप के कई देशों में Communist नेता जोसेफ स्टालिन की मूर्तियों को तोड़ दिया गया था. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि 1991 से पहले स्टालिन की ये छवि बनाई गई कि उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध में पूर्वी यूरोप के लोगों को हिटलर के जुल्मों से बचाया था. लेकिन 1991 के बाद लोगों को ये समझ आया कि स्टालिन ने इसके लिए लोगों पर काफ़ी अत्याचार भी किए थे, जिसके लिए उनकी आज भी निंदा होती है.
यानी इतिहास में हुई गलतियों को कई देशों ने सुधारा और चुनौतियां भी दी है. हालांकि हमारे देश में आज से कुछ वर्ष पहले तक लोग ये कहने से भी डरते थे कि इतिहास में हुई गलतियों को सुधारा जाना चाहिए. ये सोच तब बदलनी शुरू हुई, जब अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया.
अयोध्या का मामला एक बहुत बड़ा Turning Point था. क्योंकि इस फैसले से पहले तक लोगों का दिल ये तो कहता था कि अयोध्या में भगवान राम के साथ अन्याय हुआ है और उन्हें देश का गलत इतिहास पढ़ाया गया है. लेकिन वो ऐसा कहने की हिम्मत नहीं कर पाते थे. लेकिन इस फैसले के बाद लोगों का दिमाग खुलना शुरू हुआ और उन्हें पता चला कि कैसे इस देश से उसका सही इतिहास छिपाने की कोशिश की गईं.
बुधवार को जो ज्ञानवापी (Gyanwari Masjid) का मामला सामने आया है, इससे भारत के प्राचीन और सांस्कृतिक इतिहास के बारे में सबको पता चल रहा है. ये वो सच है, जिसे हमारे देश की इतिहास की किताबों, हमारे देश के शिक्षकों, बुद्धिजीवयों, मीडिया, न्यायपालिका और पॉलिटिकल सिस्टम ने ईमानदारी से देश के लोगों को बताने की कोशिश नहीं की. लेकिन अब ये स्थिति बदल रही है और इसमें आया ये बदलाव नए भारत के नए इतिहास को दिशा दे रहा है.
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आज आप देखेंगे कि ऐसे जितने भी मामले हैं, जहां देश में मन्दिरों को तोड़ कर मस्जिदें बनाई थीं, अब उन सब पर देश में बात होनी शुरू हो गई. इनमें मथुरा के शाही ईदगाह मस्जिद मामले में मथुरा कोर्ट में एक याचिका भी दायर हुई है, जिसमें इस मस्जिद का सर्वे कराने की मांग की गई है. ये मस्जिद आज भी मथुरा में उसी जगह पर मौजूद है, जहां ऐसा माना जाता है कि वहां कंस की कारागार थी और उसी कारागार में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था.