क्या आपने भी ऑनलाइन वीडियो देखकर धरती को चोट पहुंचाई है?
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क्या आपने भी ऑनलाइन वीडियो देखकर धरती को चोट पहुंचाई है?

यानी अगर आज सुबह से आपने व्हाट्सऐप पर कुछ लोगों को गुडमॉर्निंग या थैंक्यू जैसे मैसेजिस भेजे हैं... फेसबुक पर लोगों की तस्वीरें और स्टेटस को लाइक किया है. तो आज का ये विश्लेषण आपके लिए ही है.

क्या आपने भी ऑनलाइन वीडियो देखकर धरती को चोट पहुंचाई है?

नई दिल्ली: क्या आपको बता है कि आपकी धड़ल्ले से डाटा खर्च करने की आदत धरती की सेहत चुरा रही है. जी हां, जब भी आप.. अपने मोबाइल फोन पर कोई काम करते हैं...या कंप्यूटर से ईमेल भेजते हैं तो आप भी एक तरह से ग्लोबल वार्मिंग (Globel Warming) के लिए जिम्मेदार हैं . दुनिया में हर रोज़ सिर्फ 60 सेकेंड में इतने ईमेल भेजे जाते हैं..जिससे होने वाला कार्बन उत्सर्जन 21 हजार किलो कोयला जलाने के बराबर है . हो सकता है आपको इस खतरे के बारे में कोई जानकारी ना हो... और अनजाने में ही आप ये गलती बार-बार कर रहे हों .

यानी अगर आज सुबह से आपने व्हाट्सऐप पर कुछ लोगों को गुडमॉर्निंग या थैंक्यू जैसे मैसेजिस भेजे हैं... फेसबुक पर लोगों की तस्वीरें और स्टेटस को लाइक किया है. ऑफिस में बैठकर ई-मेल का जवाब दिया है, यूट्यूब पर वीडियो देखे हैं या फिर या फिर ऑनलाइन फिल्में या सीरीज देखी हैं.. तो आज का ये विश्लेषण आपके लिए ही है.

एक ब्रिटिश एनर्जी कंपनी की रिसर्च से पता चला है कि है कि... सिर्फ ब्रिटेन में हर दिन करीब 6 करोड़ 40 लाख ऐसे ई-मेल किए जाते हैं जिनकी ज़रूरत नहीं होती . और इनमें सबसे ज्यादा होते हैं- थैंक यू ई-मेल . इन ईमेल की वजह से हर साल 16 हज़ार 433 टन कार्बन का उत्सर्जन होता है . साल भर में मुंबई से दिल्ली की 81 हज़ार 152 फ्लाइट्स की वजह से जितनी कार्बन डाई ऑक्साईड पैदा होती है ....या 3 हज़ार 334 डीजल गाड़ियों से जितना कार्बन उत्सर्जन होता है, उतना कार्बन उत्सर्जन ब्रिटेन में साल भर में भेजी गई ईमेल्स से ही पैदा हो जाता है.

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अगर आप ये सोच रहे हैं कि आखिर ईमेल्स की वजह से कार्बन उत्सर्जन कैसे होता है .जब भी आप कोई ईमेल भेजते हैं तो ये आपको ई-मेल सर्विस देने वाली कंपनी के डाटा सेंटर में जाती है . और ये ई-मेल तब तक वहां पर मौजूद रहती है जबतक कोई इसे स्थायी तौर पर डिलीट ना कर दे.

यहां डाटा सेंटर का मतलब उन मशीनों से है जहां पर आपकी ईमेल, तस्वीरें और बाकी डेटा स्टोर करके रखा जाता है. यह डाटा सेंटर आपके पर्सनल कंप्यूटर जैसा होता है. बस फर्क इतना है कि एक डाटा सेंटर की क्षमता हज़ारों लाखो पर्सनल कम्प्यूटर्स के बराबर होती है . इसलिए कई डाटा सेंटरs एक छोटे शहर के बराबर ऊर्जा यानी बिजली का इस्तेमाल करते हैं.

एक रिसर्च के मुताबिक दुनिया में बनाई जाने वाली कुल बिजली का 10 प्रतिशत इंटरनेट या उससे जुड़े डेटा सेंटर में इस्तेमाल होता है . अब भी दुनिया के ज्यादातर देश कोयले या गैस की मदद से बिजली बनाते हैं . यही वजह है रोज़ाना भेजे जाने वाले करोड़ों ईमेल्स धरती का तापमान बढ़ा रहे हैं .

इंटरनेट से जुड़ी हर कंपनी यानी गूगल, फेसबुक और ट्विटर के पास ऐसे बड़े बड़े डाटा सेंटर होते हैं... जहां पर आपका डेटा स्टोर करके रखा जाता है. डाटा सेंटर के बारे में आपको समझाने के लिए हमने एक विशेषज्ञ से भी बात की है ताकि आप भी इस खबर को देखकर विशेषज्ञ बन जाएं और दूसरों को भी इस खतरे के बारे में बता सकें .

ब्रिटेन में सिर्फ 5 करोड़ 50 लाख इंटरनेट यूजर्स हैं... जबकि भारत में करीब 62 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. अब आप सिर्फ अंदाजा लगा सकते हैं कि भारत के ये इंटरनेट यूजर्स कितना कार्बन उत्सर्जन करते होंगे . सिर्फ ईमेल ही नहीं आपके मोबाइल फोन पर इंटरनेट के जरिए होने वाली हर गतिविधि धरती का तापमान बढ़ा देती है.

- दुनिया भर में औसतन एक मिनट में करीब 15 करोड़ ई-मेल भेजे जाते हैं . और इससे 60 हजार किलोग्राम कार्बन उत्सर्जन होता है. यानी दिन भर में 21 हज़ार करोड़ से ज्यादा ई-मेल भेजे जाते हैं . और इस हिसाब दिन भर में इनसे... करीब साढ़े 8 करोड़ किलोग्राम कार्बन का उत्सर्जन होता है.

- 60 हज़ार किलोग्राम Carbon का उत्सर्जन करीब 21 हजार किलोग्राम कोयला जलाने के बराबर है . यानी इस हिसाब से हर रोज ई-मेल भेजकर ही दुनिया भर के लोग 30 हजार टन कोयला जलाने के बराबर कार्बन उत्सर्जन करते हैं .

- सिर्फ ई-मेल ही नहीं अगर आप इंटरनेट पर कुछ सर्च भी करते हैं तो इससे 0.2 ग्राम कार्बन एमिशन होता है. 

- 30 मिनट का एक ऑनलाइन वीडियो देखने पर 1.6 किलोग्राम कार्बन का उत्सर्जन होता है. 

- एक फेसबुक यूजर प्रति वर्ष 299 ग्राम कार्बन उत्सर्जन होता है.

- इतना ही नहीं यदि आप अपने मोबाइल फोन से एक एसएमएस भी भेजते हैं तो उसमें भी .014 ग्राम कार्बन का उत्सर्जन होता है.

और ये सारे काम करते वक्त आप इंटरनेट डाटा का इस्तेमाल करते हैं. टेलीकॉम रेगुलेटरी ऑथोरिटी ऑफ इंडिया यानी TRAI के मुताबिक वर्ष 2019 में सितंबर तक भारतीयों ने साढ़े 5 करोड़ टेराबाइट्स... डाटा का इस्तेमाल कर लिया था . ये 55 अरब GB डाटा के बराबर है . और इसकी एक वजह ये है कि पूरी दुनिया के मुकाबले भारत में इंटरनेट डाटा सबसे सस्ता... सिर्फ 18 रुपए प्रति GB है . और आप जितना ज्यादा इंटरनेट डाटा इस्तेमाल करेंगे उतना ही ज्यादा कार्बन का निर्माण होगा . भारत टेकनॉलिजी की दुनिया का उभरता हुआ देश है . कहने को भारत डिजिटल युग में जी रहा है लेकिन ऐसा करके भारत के लोग धरती का तापमान बढ़ाने में अपना सबसे ज्यादा योगदान दे रहे हैं .

मोबाइल फोन पर आपकी गतिविधि और कंप्यूटर पर किया गया एक क्लिक कैसे धरती का नुकसान कर रही है ये समझाने के लिए हमने एक स्पेशल रिपोर्ट तैयार की है... जिसे आपको जरूर देखना चाहिए .

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