जम्मू की पहाड़ियां कैसे बनीं आतंकियों का अड्डा? आंकड़े बहुत कुछ कहते हैं
Advertisement
trendingNow12342308

जम्मू की पहाड़ियां कैसे बनीं आतंकियों का अड्डा? आंकड़े बहुत कुछ कहते हैं

Kahmir News: आंकड़े कहते हैं कि पिछले 3 सालों में जम्मू कश्मीर में 109 आतंकी घटनाएं हुई हैं, जिनमें से 53 फीसदी जम्मू की पहाड़ियों में हुई हैं. इस साल जम्मू में 14 आतंकी हमले हुए और 13 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए.

जम्मू की पहाड़ियां कैसे बनीं आतंकियों का अड्डा? आंकड़े बहुत कुछ कहते हैं

Jammu Kashmir Terrorism: दशकों तक शांत रहने वाली पीरपंजाल की पहाड़ियां जम्मू-कश्मीर में आतंकों के लिए सबसे सुरक्षित अड्डा बन गई हैं. पीरपंजाल की पहाड़ियों के कठिन इलाके और घने जंगल में सबसे ज्यादा विदेशी आतंकी मौजूद हैं. सुरक्षाबलों के सूत्रों की मानें तो पिछले 5 महीनों में पाकिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र से घुसपैठ कर आए 25 से 30 आतंकों का नया जत्था सुरक्षाबलों पर हमले कर रहा है.

53 फीसदी जम्मू की पहाड़ियों से घटनाएं..

असल में पिछले तीन सालों से पहले कश्मीर घाटी ही आतंकी हमलों का केंद्र बनी हुई थी. अचानक से आतंकों का अड्डा जम्मू की पहाड़ियाँ गई है. आंकड़े कहते हैं कि पिछले 3 सालों में जम्मू कश्मीर में 109 आतंकी घटनाएं हुई हैं, जिनमें से 53 फीसदी जम्मू की पहाड़ियों में हुई हैं. जून 2021 में जब जम्मू के पुंछ इलाके में पहला हमला हुआ था, तब से लेकर अब तक जम्मू क्षेत्र में आतंकी हमलों में 51 सुरक्षाबल शहीद हो चुके हैं, जिनमें ज्यादातर पुंछ-राजौरी और डोडा रांजे में हुए हैं. इसके बाद से ही पुंछ, राजौरी, कठुआ, रियासी, डोडा और उधमपुर जिलों में सुरक्षाबलों को लगातार निशाना बनाते हुए आतंकी देखे जा रहे हैं. इस साल जम्मू में 14 आतंकी हमले हुए और 13 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए.

आतंकी डोडा चिनाब घाटी क्षेत्र में सक्रिय

सुरक्षाबलों के सूत्रों का कहना है कि हाल ही में घुसपैठ करने वाले करीब 25-30 विदेशी आतंकी डोडा चिनाब घाटी क्षेत्र में सक्रिय हैं और इतने ही पुंछ-राजौरी क्षेत्र में हैं. ये सभी छोटे-छोटे समूहों में बंटे हुए हैं और एक जगह से दूसरी जगह जाकर हमले कर रहे हैं. ये सभी अत्याधुनिक हथियारों से लैस हैं, इन्हें पहाड़ियों और कठिन इलाकों की अच्छी जानकारी है और देवदार के घने जंगल और प्राकृतिक गुफाएं इनके लिए छिपने और हमले करने के लिए बहुत फायदेमंद हैं. ऐसा संदेह है कि इनमें से अधिकतर जैश और लश्कर के हैं और सभी विदेशी हैं, क्योंकि डोडा में अधिकतर हमलों की जिम्मेदारी जैश की शाखा कश्मीर टाइगर्स ने ली है और पुंछ राजौरी में हमलों की जिम्मेदारी जैश और लश्कर के मिले-जुले समूह 'पीपुल्स एंटी-फासीस्ट फ्रंट' ने ली है.

क्या कहते हैं रक्षा विश्लेषक

रक्षा विश्लेषकों का कहना है कि ये सभी आतंकवादी उच्च प्रशिक्षित हैं और खैबर पख्तूनख्वा से हैं, जिन्हें अफगानिस्तान और सीरिया में युद्ध का अनुभव है. सूत्रों ने कहा कि इनमें पाकिस्तान के पूर्व सैनिक भी हो सकते हैं. खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र के पठान लड़ाकों की मौजूदगी से इनकार नहीं किया जा सकता, जो पहले तालिबान के साथ लड़ चुके हैं.

एसपी वैद पूर्व डीजीपी ने कहा “पीर पंजाल रेंज से जो स्थिति बन रही है, वह बहुत महत्वपूर्ण है. चाहे वह पुंछ राजौरी हो, डोडा हो, इन क्षेत्रों में सक्रिय आतंकवादी पंजाब और खैबर पख्तून के कठोर प्रशिक्षित आतंकवादी हैं. ये आतंकवादी पहाड़ी और जंगल युद्ध में अत्यधिक प्रशिक्षित हैं. ये वही आतंकवादी हैं जो अफगानिस्तान और खैबर पख्तून से लड़ रहे थे. उनके पास अमेरिकी एम4 जैसे नए अत्याधुनिक हथियार हैं, जो नाइट विजन से लैस हैं क्योंकि वे अंधेरे में आसानी से काम कर सकते हैं और स्नाइपर की तरह काम कर सकते हैं. 

वे स्टील कोटेड चीनी निर्मित गोलियों का इस्तेमाल कर रहे हैं जो बुलेटप्रूफ कवच को भेद सकती हैं. क्षेत्र में करीब 50-60 नए घुसपैठिए आतंकवादी हैं. वे इन इलाकों में छोटे-छोटे समूहों में काम कर रहे हैं और उन्होंने क्षेत्र में अस्थिर स्थिति पैदा कर दी है. घुसपैठ को रोकने और एक मजबूत ग्रिड बनाने के लिए सुरक्षाबलों को सीमाओं को पूरी तरह से कवर करने की जरूरत है. भारत सरकार को भी सीमा पार लॉन्च पैड की पहचान करके कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत है”.

रक्षा विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि ''जम्मू-कश्मीर में नए आतंकवादियों की मौजूदा नस्ल 90 के दशक जैसी नहीं है, ये आतंकवादी अत्यधिक प्रशिक्षित हैं और हाल ही में पिछले छह महीनों में कश्मीर के कुपवाड़ा रेंज की शमशावरी पहाड़ियों से घुसपैठ कर चिनाब घाटी और पुंछ-राजौरी सेक्टर तक पहुंचने में कामयाब रहे हैं. आतंकवादियों ने अंतरराष्ट्रीय सीमा से भी घुसपैठ की है.

बॉडी कैमरों का उपयोग करके

हालांकि पुंछ-राजौरी और डोडा-कठुआ-रियासी दोनों ही समूहों की कार्यप्रणाली एक जैसी है. उनके पास सैन्य प्रशिक्षण, टोही क्षमता, तकनीक के इस्तेमाल से परहेज और गुरिल्ला युद्ध की रणनीति का एक ही स्तर है. उन समूहों के पास आधुनिक हथियार हैं जो उन्हें अफगानिस्तान से मिले हैं और जिन्हें अमेरिकी सेना ने वहीं छोड़ दिया है. साथ ही वे बॉडी कैमरों का उपयोग करके हमलों के वीडियो बनाते और फिर उन्हें सोशल मीडिया के माध्यम से प्रकाशित करते हुए आतंकवाद का महिमामंडन करते और कश्मीरी युवाओं को फिर से आतंकी समूहों में शामिल होने के लिए आकर्षित करते हैं, जो अन्यथा कश्मीर में सुरक्षाबलों द्वारा पूरी तरह से नियंत्रित है.

विशेषज्ञों का कहना है कि ये वीडियो कश्मीर के युवाओं को फिर से आकर्षित कर सकते हैं और संभवतः आतंकी समूहों में कश्मीरी युवाओं की भर्ती फिर से बढ़ सकती है. एक और खास बात यह है कि वे मोबाइल फोन का उपयोग नहीं करते हैं, उनके पास अल्ट्रासेट और रेडियो फ्रीक्वेंसी मैसेंजर है जिसे संचार के लिए इंटरसेप्ट नहीं किया जा सकता है जिसमें सिम कार्ड नहीं होता है. वे गांवों में नहीं जाते हैं और ओजीडब्ल्यू का उपयोग नहीं करते हैं. 

वे जंगलों या गुफाओं में रहते हैं. वे या तो जंगल में बकरवाल द्वारा लाए गए भोजन को खरीदते हैं, या फिर अपने संपर्कों से एक चेन के ज़रिए इसे प्राप्त करते हैं जो उन तक नहीं जाती है. कभी-कभी जंगल में भोजन गिरा दिया जाता है. लेकिन सुरक्षा बलों को कुछ स्थानीय समर्थन पर भी संदेह है, लेकिन वे एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के अलावा चेन में लगातार आगे बढ़ते रहते हैं और कभी भी स्थायी ठिकाना नहीं बनाते हैं. राजनीतिक विश्लेषक कहते है कि यह 90 के दशक जैसी स्थिति है और पाकिस्तान गिलगीत बलतीसतान से दुनिया की नज़रें हटाने के लिए किया जा रहा है.

फ़ारूक रेनज़ू राजनीतिक विश्लेषक ने कहा  “पाकिस्तान ने हमेशा जम्मू-कश्मीर में तनाव पैदा किया है क्योंकि गिलगित बाल्टिस्तान के लोग भारत में शामिल होना चाहते हैं और वहाँ से ध्यान हटाने के लिए वे ये सब कर रहे हैं. पाकिस्तान चाहता है कि सारा ध्यान फिर से जम्मू-कश्मीर पर आ जाए. सारा मीडिया डोडा हमलों को कवर कर रहा है लेकिन गिलगित बाल्टिस्तान छुपा हुआ है. ऐसा करना पाकिस्तान की रणनीति है.”

रणनीति में बदलाव अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद देखा जाता है जब कश्मीर में सुरक्षाबलों, एनआईए, एसआईए सीबीआई ने आतंकवादियों के पारिस्थितिकी तंत्र को तोड़ने के लिए एक साथ काम किया और सफल रहे, आज कश्मीर में एक व्यक्ति घाटी में आतंकवादी की मदद करने या उसे पनाह देने से पहले तीन बार सोचता है क्योंकि बाद में उसे इसके लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है.

इसलिए 2021 में पाकिस्तान स्थित आतंकी संचालकों ने चिनाब घाटी, डोडा, भलेसा, किश्तवाड़ भद्रवाह पुंछ राजौरी सुरनकोट के पूर्व आतंकवादियों से संपर्क करना शुरू कर दिया, जो क्षेत्र "आतंक मुक्त" घोषित किए गए थे और दशकों से सुरक्षाबल उन क्षेत्रों पर बहुत कम ध्यान दे रहे थे. लेकिन अब जम्मू में सुरक्षा ग्रिड को कड़ा किया जा रहा है, और सुरक्षाबलों की फिर से तैनाती और पुनर्संयोजन किया जा रहा है.

Trending news