हिमाचल चुनाव: बीजेपी की बढ़त के पांच बड़े कारण, मोदी मैजिक बरकरार
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हिमाचल चुनाव: बीजेपी की बढ़त के पांच बड़े कारण, मोदी मैजिक बरकरार

हिमाचल चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी ने 300 से ज्यादा रैलियां और जनसभाएं कीं. प्रचार के मामले में बीजेपी कांग्रेस से काफी आगे रही.

19 साल में पांचवीं बार सीएम के लिए वीरभद्र सिंह और प्रेम कुमार धूमल के बीच मुकाबला (प्रतीकात्मक तस्वीर)

शिमला: हिमाचल विधानसभा चुनाव के वोटों की गिनती शुरू होने के साथ ही यह साफ हो गया था कि कांग्रेस के हाथों से जनता ने सत्ता छीनने का फैसला सुना दिया है. हिमाचल चुनाव के शुरुआती रुझान में बीजेपी को स्पष्ट बहुमत मिलता नजर आ रहा है. हिमाचल चुनाव में बीजेपी की इतनी बड़ी जीत के पीछे कुछ बड़े कारण काम कर रहे थे. हम आपको यहां बता रहे हैं बीजेपी के इस प्रदर्शन के 5 वो बड़े कारण जो संभवत: राज्य के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार की वजह बने.

  1. हिमाचल चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी ने 300 से ज्यादा रैलियां और जनसभाएं कीं.
  2. प्रचार के मामले में बीजेपी कांग्रेस से काफी आगे रही.
  3. कांग्रेस ने जहां सिर्फ 110 जनसभाएं कीं तो बीजेपी ने कुल 197 चुनावी जनसभाएं कीं.

बीजेपी का आक्रामक प्रचार
चुनाव प्रचार की बात करें तो ऐसा लगता है कि जिस तरह कांग्रेस और राहुल गांधी ने गुजरात में चुनाव प्रचार किया वैसा उनका फोकस हिमाचल पर नहीं रहा. हिमाचल चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी ने 300 से ज्यादा रैलियां और जनसभाएं कीं. प्रचार के मामले में बीजेपी कांग्रेस से काफी आगे रही. इन चुनावों में कांग्रेस ने जहां सिर्फ 110 जनसभाएं कीं तो बीजेपी ने कुल 197 चुनावी जनसभाएं कीं.

मोदी मैजिक
हिमाचल के इस चुनाव में पीएम मोदी ने सात तो राहुल गांधी ने तीन रैलियां कीं. यही नहीं राष्ट्रीय स्तर के कई नेता पांच दिनों तक राज्य में टिके रहे और सत्तारूढ़ कांग्रेस पर हमले पर हमले करते रहे. बीजेपी के लिए पिछले कई चुनावों में सबसे बड़ा प्रचार माध्यम पीएम मोदी का चेहरा और भाषण ही रहा है. इस बार भी पार्टी इसी रणनीति के तहत मैदान में उतरी थी. यही वजह है कि वोटिंग से महज 9 दिन पहले बीजेपी ने अमित शाह ने प्रेम कुमार धूमल को सीएम कैंडिडेट घोषित किया था. इसके अलावा पीएम मोदी ने अपनी रैलियों में कांग्रेस और मौजूदा मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पर जमकर हमले बोले. पीएम मोदी ने अपने भाषण में कहा था कि इस देवभूमि से पांच दानवों को मुक्त कराना है. पीएम मोदी ने जिन पांच दानवों का जिक्र किया वे थे- ड्रग माफिया, खनन माफिया, ट्रांसफर माफिया, वन माफिया और टेंडर माफिया.

बदलाव का इतिहास
पिछले 32 साल का इतिहास है कि हिमाचल की सत्ता पर आसीन मौजूदा सरकार कभी भी रिपीट नहीं हो सकी है. 1985 से लेकर अभी तक जितने विधानसभा चुनाव हुए हैं सभी के परिणाम ऐसे ही रहे कि एक बार कांग्रेस जीती तो अगली बार बीजेपी. यानि लगातार दो बार किसी भी दल ने सत्ता हासिल नहीं की. यहां आपको यह भी बता दें कि हिमाचल विधानसभा का गठन 1962 में हुआ था, इससे पहले यह पंजाब राज्य का हिस्सा हुआ करता था. हिमाचल में 12 बार विधानसभा चुनाव हुए जिनमें से 8 बार कांग्रेस, 3 बार बीजेपी और 1 बार जनता पार्टी सत्ता के सिंहासन पर काबिज हुई.

आपको बता दें कि 1985 के चुनावों में कांग्रेस को जीत मिली थी और वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बने थे. उसके बाद जब 1990 में विधानसभा चुनाव हुए तो हिमाचल की जनता ने सत्ता बीजेपी के हाथों में दे दी और शांता कुमार राज्य के अगले मुख्यमंत्री बने. तीन साल बाद 1993 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई. पांच साल बाद 1998 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई और प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री बने.

2003 में विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी को कांग्रेस ने शिकस्त देते हुए सत्ता में वापसी की. इसी तरह 2007 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल होना पड़ा और बीजेपी की वापसी हुई. हिमाचल ने 2012 में फिर अपने इतिहास को दोहराया जिसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस की सत्ता में फिर वापसी हुई और बीजेपी सत्ता से बाहर हो गई.

भ्रष्टाचार का मुद्दा
पिछले पांच साल में वीरभद्र सिंह सरकार पर घोटाले के कई आरोप लगे थे. वीरभद्र सिंह पर कांग्रेस की सरकार में मंत्री पद का दुरुपयोग करते हुए भारी भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. इस मामले में सीबीआई जांच कर रही है. ईडी ने उनके फार्म हाउस पर छापा भी मारा था. राज्य के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और उनकी पत्नी प्रतिभा के ऊपर आय से अधिक संपत्ति के मामले का भी केस चल रहा है.

वीरभद्र की जिद
वीरभद्र पर लगे तमाम आरोपों के बीच कांग्रेस का 83 साल के हो चुके और भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों में घिरे वीरभद्र सिंह की जिद के आगे झुकना हिमाचल की जनता को रास नहीं आया. जनता के बीच हिमाचल कांग्रेस पर वीरभद्र सिंह का दबदबा गलत संदेश देकर गया. इन चुनावों में वीरभद्र सिंह ने कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को स्पष्ट धमकी दी कि सीएम कैंडिडेट उनको ही बनाया जाए वरना उसके बुरे परिणाम भुगतने होंगे, उन्होंने पार्टी छोड़ने तक की धमकी दी. यही नहीं वीरभद्र सिंह ने टिकट वितरण भी अपने मुताबिक करवाया और अपने तमाम चहेतों को टिकट डलवाने में सफल रहे.

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