Maharaja Chhatrasal: भारत के इतिहास में कई ऐसे महान योद्धा हुए, जिन्होंने यह साबित कर दिया कि वो अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना जीवन भी बलिदान कर सकते हैं. आज हम आपको एक ऐसे हिंदू पराक्रमी राजा के बारे में बताएंगे, जिसने महज 5 घुड़सवारों और 25 तलवारबाजों के दम पर मुगलों को युद्ध के लिए ललकारा.
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Hindu king Chhatrasal revolts against the Mughals: भारतीय इतिहास और विशेषकर मुगलकाल में कई ऐसे हिंदू पराक्रमी राजा हुए, जिनकी गाथाओं से इतिहास भरा पड़ा है. इन्होंने सीमित संसाधनों के बावजूद अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए विशाल मुगल साम्राज्य से लोहा लिया. ऐसे ही एक शूरवीर बुंदेलखंड के महाराजा छत्रसाल थे. उनकी कहानी साहस, शौर्य और अपराजेय इच्छाशक्ति का अद्भुत उदाहरण है. उन्होंने मात्र 5 घुड़सवारों और 25 तलवारबाजों की छोटी सी टुकड़ी लेकर मुगल सम्राट औरंगजेब के चरम शासन के दौरान स्वतंत्रता का बिगुल फूंका और 52 लड़ाइयां जीतकर बुंदेलखंड में अपना स्वतंत्र साम्राज्य स्थापित किया.
पिता की शहादत और शिवाजी का प्रभाव
महाराजा छत्रसाल का जन्म 4 मई, 1649 हुआ था. उनका बचपन मुगलों के दमनकारी शासनकाल में बीता. जब वह केवल 12 वर्ष के थे, तब उनके पिता वीर योद्धा चंपत राय हत्या औरंगजेब के इशारे पर करवा दी गई थी. इस दुखद घटना ने छत्रसाल के मन में मुगलों के खिलाफ विद्रोह की गहरी भावना जगाई. उन्होंने अपनी प्रेरणा के लिए प्रसिद्ध मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज से मुलाकात की और उनसे मुगलों के विरुद्ध संघर्ष करने की प्रेरणा और मार्गदर्शन प्राप्त किया.
5 घुड़सवार और 25 तलवारबाज
साल 1671 में, 22 साल की उम्र में, छत्रसाल ने इतिहास का सबसे साहसी कदम उठाया. उन्होंने केवल 5 घुड़सवारों और 25 तलवारबाजों की बेहद छोटी टुकड़ी के साथ मुगल साम्राज्य के खिलाफ स्वतंत्रता का बिगुल फूंका. यह एक ऐसे साम्राज्य को चुनौती थी, जिसकी सेना लाखों में थी. उनकी सेना का आकार भले ही छोटा था, लेकिन उनका रणनीतिक कौशल और गुरिल्ला युद्ध की शैली बेजोड़ थी, जिसने मुगलों को बार-बार परास्त किया.
56 साल का शासन और 52 युद्धों की विजय
छत्रसाल ने अपने जीवनकाल में लगभग 56 सालों तक बुंदेलखंड पर सफलतापूर्वक शासन किया. इस दौरान उन्होंने मुगलों और उनके सेनापतियों को एक के बाद एक हराकर 52 लड़ाइयां जीतीं. नकी लगातार विजयों ने उनके साम्राज्य को चित्रकूट, छतरपुर, पन्ना, सागर और दमोह जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों तक फैला दिया. उनकी वीरता का आलम यह था कि मुगल सेनाएं उनके नाम से भी भयभीत रहती थीं.
बुंदेलखंड के शूरवीर और जननायक
छत्रसाल केवल एक महान योद्धा ही नहीं थे, बल्कि अपनी प्रजा के सच्चे सेवक और जननायक थे. उन्होंने एक मजबूत और स्वतंत्र बुंदेलखंड की स्थापना की. उनका नाम आज भी इतिहास के पन्नों में एक ऐसे राजा के रूप में दर्ज है, जिसने विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी और अपनी मुट्ठी भर सेना के दम पर एक विशाल साम्राज्य के विरुद्ध स्वतंत्रता की मशाल जलाए रखी, जिससे उन्हें बुंदेलखंड केसरी की उपाधि मिली.