Kalinga War History: भारत का इतिहास काफी ज्यादा गौरवशाली है. यहां पर कई ऐसे ऐतिहासिक युद्ध लडे गए वो ऐतिहासिक गतिविधियों से हमें रूबरू कराते हैं. ऐसे ही हम आपको बताने जा रहे हैं उस युद्ध के बारे में जिसके बाद सम्राट अशोक का हृदय पिघल गया.
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Emperor Ashoka History: भारत का इतिहास काफी ज्यादा समृद्धशाली है. देशभर में ऐसे कई राजा हुए जिन्होंने ऐतिहासिक युद्ध लड़े और आक्रांताओं को देश से बाहर निकाल दिया, देश में कई ऐसे सम्राट हुए जिन्होंने भारत के इतिहास की स्वर्णिम गाथा अपनी तलवारों से लिखी. इन्हीं सम्राटों में से एक थे सम्राट अशोक, सम्राट अशोक ने अपने जीवन काल में कई युद्ध लड़े. हालांकि एक युद्ध में हुए नरसंहार को देखकर उनका हृदय परिवर्तित हो गया और उन्होंने तलवार छोड़ दी. आइए जानते हैं इसके बारे में.
कब हुआ था युद्ध
ये बात है 261 ईसा पूर्व की, मौर्य सम्राट अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया था. यह लड़ाई सम्राट अशोक और कलिंग राज्य के बीच हुई,इस युद्ध को सम्राट अशोक ने मौर्य साम्राज्य को बढ़ाने के लिए लड़ा था. इस समय कलिंग के राजा के पास एक सेना थी जिसमें पैदल सेना, घुड़सवार सेना और हाथी शामिल थे जिनकी संख्या केवल 60 हजार पैदल सेना, 1 हजार घुड़सवार सेना और 700 हाथी थी. जबकि अशोक की सेना में 1700 घोड़े, हजारों हाथी और लगभग 60 हजार सैनिक शामिल थे.
पूरी तरह से टूट गए सम्राट
इस युद्ध को अशोक ने मौर्य साम्राज्य के विस्तार के लिए लड़ा था लेकिन युद्ध में हुए भीषण नरसंहार ने अशोक का हृदय पिघला दिया, इस युद्ध में लाखों लोगों की जान चली गई जबकि 1.5 लाख लोगों को निर्वासित कर दिया गया था. इतना ही नहीं कई लोग युद्ध में हुए कई अन्य कारणों से मारे गए. यह सब देखकर सम्राट अशोक पूरी तरह से टूट गए, इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था जब विजेता होने के बाद भी सम्राट को गहरा दुख पहुंचा. इस जीत को सम्राट ने एक खोखली और उथली जीत के रूप में देखा.
बौद्ध धर्म का करने लगे प्रचार-प्रसार
ऐतिहासिक रिपोर्ट के मुताबिक इस विनाशकारी युद्ध के बाद अशोक पूरी तरह से बदल गए और उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाने का फैसला किया और भारत और पड़ोसी देशों में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करने लगे. उन्होंने साम्राज्य के सैन्य विस्तार को समाप्त कर दिया और एक नए युग की शुरुआत करने में लग गए, उत्तर भारत से सीलोन और ग्रीस से बर्मा तक बौद्ध धर्म के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस युग के बाद अशोक ने अपना शेष जीवन अहिंसा, सत्य और धम्म विजय के लिए समर्पित करने के लिए प्रेरित किया.