Holi in Mughal Period: मुगल राज में होली पर लोगों को शराब के हौद में क्यों डुबोया जाता था? बाबर ने शुरू की थी अजीब परंपरा
Holi in Mughal Dynasty: क्या आपको पता है कि भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म से नफरत करने वाले मुगल बादशाहों ने होली पर एक अलग परंपरा शुरू की थी. उस दौरान होली पर लोगों को शराब के हौद में डुबोया जाता था. ऐसा करने के पीछे आखिर क्या वजह थी.
Holi in Mughal Empire: मुगल शासकों को हिंदुओं के दमन और भारतवर्ष की संपदा लूटने वाले बादशाहों के रूप में जाना जाता है. उन्होंने तलवार के बल पर लाखों हिंदुओं का कत्लेआम कर बाकी लोगों को मुसलमान बनने के लिए मजबूर किया. यही नहीं, उन्होंने यहां के सारे पर्वों और रीति-रिवाजों को बदलकर उन्हें इस्लाम के मुताबिक ढालने की कोशिश भी की. जिसकी वजह से वे करोड़ों लोगों की नजर में आज भी सबसे बड़े विलेन हैं. इतने जुल्मोसितम के बावजूद वे भारत का चरित्र बदलने में कामयाब नहीं हो पाए. सनातन धर्म का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार होली तो उन्हें इतना पसंद आ गया कि वे खुद भी अपने दरबार में इसे मनाने लगे थे.
बाबर ने बनवाए शराब से बने हौद
इतिहासकारों के मुताबिक भारत पर कब्जा कर मुगल साम्राज्य की नींव डालने वाले बाबर ने जब पहली बार भारतीयों को होली खेलते देखा तो वह हैरान रह गया था. लोग एक दूसरे पर रंग-गुलाल डालने के साथ ही उन्हें पानी से भरी हौदियों में फेंक रहे थे. उसे शुरू में यह सब अजीब लगा लेकिन बाद में उसे यह पर्व भा गया. मुगलों का इतिहास लिखने वाले मुंशी जकाउल्ला ने अपनी किताब तारीख-ए-हिन्दुस्तान लिखा है कि बाबर को होली को और रोमांचक बनाने के लिए हौदियों को शराब से भरवा दिया.
अकबर को था ये अजीब शौक
होली के शौक को अकबर ने भी आगे बढ़ाया. अकबर के नवरत्नों में से एक अबुल फजल ने आइन-ए-अकबरी में लिखा कि अकबर को होली के त्योहार से बहुत जुड़ाव रहा. उसने इस त्योहार को रोमांचक बनाने के लिए कई प्रयास किए. वह सालभर देश के अलग-अलग हिस्सों से ऐसी चीजें इकट्ठी करवाता था, जिससे पानी और गुलाल को दूर तक फेंका जा सके. होली वाले दिन अकबर अपने महल से बाहर आकर होली खेलता था.
शाहजहां ने दिया शाही उत्सव का दर्जा
अकबर के बेटे जहांगीर को होली खेलना पसंद नहीं था लेकिन वह इस त्योहार पर अपने दरबार में संगीत की खास महफिलों का आयोजन करता था. इसके साथ ही वे किले के झरोखों से लोगों को होली खेलते देखना पसंद करता था. जहांगीर के बेटे शाहजहां ने होली को और भव्य बनाया और इसे शाही उत्सव का रूप दे दिया. उसने होली को आब-ए-पाशी और ईद-ए-गुलाबी का नाम दिया.
जफर ने होली पर लिखे कई उर्दू गीत
मुगल वंश के आखिरी बादशाह जफर को भी होली का त्योहार बहुत पसंद था. उसने होली पर उर्दू गीतों की एक श्रेणी बना दी. उसने ऐसे ही एक उर्दू गीत में लिखा, ‘क्यों मो पे रंग की मारी पिचकारी, देखो कुंवरजी दूंगी मैं गारी.’ उसके राज में टेसू के फूलों से रंग बनाए जाते थे, जिसमें जफर समेत उसके परिवार के लोग खो जाते थे. उसके शासनकाल में होली खेलने वालों के लिए खाने-पीने का खास इंतजाम रहता था.
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