दोस्ती, एकता और सद्भाव के जरिये सभी को प्यार के रंगों में रंगने वाला होली का त्यौहार पारंपरिक रूप से दो दिनों तक मनाया जाता है। पहले दिन होलिका दहन जबकि दूसरे दिन होली खेली जाती है। इन दिनों प्रकृति भी अपने सबसे अद्भुत रंग बिखेरती है। पतझड़ के बाद पेड़ों पर नई पत्तियां खिलती हैं, जो जीवन में नये उत्साह का संचार करती है।
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नई दिल्ली : दोस्ती, एकता और सद्भाव के जरिये सभी को प्यार के रंगों में रंगने वाला होली का त्यौहार पारंपरिक रूप से दो दिनों तक मनाया जाता है। पहले दिन होलिका दहन जबकि दूसरे दिन होली खेली जाती है। इन दिनों प्रकृति भी अपने सबसे अद्भुत रंग बिखेरती है। पतझड़ के बाद पेड़ों पर नई पत्तियां खिलती हैं, जो जीवन में नये उत्साह का संचार करती है।
23 मार्च यानि बुधवार को होलिका दहन का शुभ मुहूर्त सायंकाल 4:55 बजे से 5:31 बजे तक रहेगा। उत्तर भारत के कुछ स्थानों पर सायं 6:30 बजे से रात्रि 8:54 बजे तक भी शुभ मुहूर्त रहेगा। कई जगह होलिका दहन की तारीख को लेकर भी असमंजस की स्थिति है। लेकिन पंचांग के अनुसार इस साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा 22 मार्च दोपहर 01:13 बजे के बाद स्पष्ट रूप से प्रदोष व्यापिनी है और अगले दिन सुबह 04:22 बजे तक भद्रा व्यापिनी भी रहेगी। 23 मार्च को पूर्णिमा प्रदोष-व्यापिनी नहीं रहेगी। इस अनुसार 23 मार्च बुधवार को ही होलिका दहन शास्त्र सम्मत होगा। शास्त्रों के अनुसार पूर्णिमा तिथि शाम 04:55 बजे से 05:31 बजे तक ही रहेगा। इस बीच होलिका दहन के लिये सबसे अच्छा समय रहेगा।
होली का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत और एकता का प्रतीक है। होलिका दहन पर किसी भी बुराई को अग्नि में जलाकर खाक कर सकते हैं। माना जाता है कि पृथ्वी पर एक अत्याचारी राजा हिरण्यकश्यप राज करता था। उसने अपनी प्रजा को ईश्वर की जगह सिर्फ अपनी पूजा करने को कहा था, लेकिन प्रहलाद नाम का उसका पुत्र भगवान विष्णु का परम भक्त था। उसने अपने पिता के आदेश के बावजूद भक्ति जारी रखी, जिसके लिये पिता ने प्रहलाद को सजा देने की ठान ली और प्रहलाद को अपनी बहन होलिका की गोद में बिठाकर दोनों को आग के हवाले कर दिया। दरअसल, होलिका को ईश्वर से यह वरदान मिला था कि उसे अग्नि कभी नहीं जला पाएगी। लेकिन दुराचारी का साथ देने के कारण होलिका भस्म हो गई और प्रह्लाद सुरक्षित रहे। उसी समय से हम समाज की बुराइयों को जलाने के लिए होलिकादहन मनाया जाता रहा है।