तोप कैसे बनी भारत की ताकत? जानिए गणतंत्र को बचाने में क्या रही Gunners की भूमिका
ताकतवर तोप युद्ध के मैदान में जीत की गारंटी होती है. जब तोप अपनी ताकत दिखाती है, तब दुश्मन की सारी होप खत्म हो जाती है. भारतीय बेड़े में इस समय कई आधुनिक तोपें हैं.
नई दिल्ली: हमारे देश में तोपों का इस्तेमाल सिर्फ युद्ध के मैदान में ही नहीं बल्कि संवाद के मैदान में भी होता है. ज्यादा तोप मत बनो या तुमने कोई तोप नहीं मार दी या फिर तुम कहीं के तोपची हो क्या, ऐसी लाइनों का इस्तेमाल आपने भी कभी ना कभी किया होगा. भारत में तोप के शाब्दिक मायने भी हैं और युद्ध के मैदान में भी इसकी ताकत किसी से कम नहीं होती.
भारत की पहली Artillery Regiment की स्थापना कब हुई?
भारत की पहली Artillery Regiment की स्थापना 28 सितम्बर 1827 को यानी 194 साल पहले हुई थी, जिसका नाम था Five (Bombay) Mountain Battery. Artillery का अर्थ होता है तोपखाना यानी ये भारत में तोपखाने से जुड़ी पहली Regiment थी.
तोपों से काफी पुराना है भारत का रिश्ता
ब्रिटिश सरकार ने इसे तब 2.5 इंच की Artillery Guns सौंपी थीं, लेकिन समय के साथ इसका दायरा भी बढ़ा और इसे आधुनिक भी बनाया गया. आज भारत में इसे 57 Field Regiment के नाम से जाना जाता है. वैसे तोपों से भारत का रिश्ता काफी पुराना है.
भारत में पहली बार तोप का इस्तेमाल कब हुआ?
माना जाता है कि भारत में पहली बार तोपों का इस्तेमाल वर्ष 1368 में हुआ था. उस समय दक्कन यानी दक्षिण भारत में मोहम्मद शाह बहमनी के नेतृत्व में विजयनगर साम्राज्य के खिलाफ युद्ध में तोपों का इस्तेमाल किया गया था.
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इसके बाद वर्ष 1526 में हुई पानीपत की लड़ाई में मुगल शासक बाबर ने दिल्ली सल्तनत के बादशाह इब्राहिम लोदी को हराने के लिए पहली बार उत्तर भारत में तोपों की मदद ली थी और फिर दिल्ली में मुगल शासकों, मैसूर में टीपू सुल्तान और हैदराबाद में निजाम के दौर में Artillery का व्यापक विकास और विस्तार हुआ.
1999 के कारगिल युद्ध में भी बोफोर्स तोपों का महत्वपूर्ण योगदान था. 60 दिनों से ज्यादा चले इस युद्ध में बोफोर्स तोपों ने ढाई लाख राउंड फायर किए थे. सिर्फ टाइगर हिल के ऑपरेशन में ही इन तोपों से 9 हजार गोले दागे गए थे. कहा जाता है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद पहली बार किसी युद्ध में इतने अधिक राउंड फायर किए गए थे.
आज हमने महाराष्ट्र के School of Artillery से एक स्पेशल रिपोर्ट तैयार की है, जो आपको भारत में तोपों की कहानी के साथ इनकी ताकत के बारे में भी बताएगी.
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भारतीय सेना का तोपखाना 194 साल का हो गया है. कहा जाता है कि युद्ध के मैदान में ताकतवर तोप जीत की गारंटी होती है. दुश्मन की सारी होप खत्म हो जाती है, जब तोप अपनी ताकत दिखाती है और आज इसी ताकत से हम आपका परिचय करवाएंगे.
पहले तोपखाने का मतलब सिर्फ लंबी दूरी तक हमला करने वाली तोपों से हुआ करता था, लेकिन अब आर्टिलरी रेजिमेंट में आधुनिक ब्रह्मोस मिसाइल, मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर्स, रडार और ड्रोन्स भी शामिल होते हैं और ये सब मिलकर एक टीम की तरह दुश्मनों पर हमला करते हैं.
भारतीय बेड़े में इस समय कई आधुनिक तोपें हैं. इनमें में से एक K9 वज्र है. वर्ष 2018 में भारत को दक्षिण कोरिया से 100 K9 वज्र तोपें मिली थीं. इनकी रेंज 18 से 52 किलोमीटर तक है और इसमें टैंकों की ट्रैक लगे हुए हैं, जिससे ये किसी भी तरह के मैदान में चल सकती हैं.
अब आप भारतीय तोपखाने की सबसे हल्की तोप देखिए, जिसकी रेंज 17 कलोमीटर है और इन्हें खास तौर पर LOC पर सीधी फायरिंग के लिए इस्तेमाल किया जाता है. पहाड़ी इलाकों पर जिन तोपों को सबसे ज्यादा सफल माना जाता है, उनमें से एक M777 Howitzer तोप है. भारतीय सेना ने पिछले साल ही इस तोप को चीन से तनाव के बाद LAC पर तैनात किया था.
कारगिल युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाने वाली बोफोर्स तोपों को कोई नहीं भूल सकता क्योंकि इन तोपों से कारगिल युद्ध में रिकॉर्ड गोले दागे गए थे. मिसाइल और बम के जमाने में भी तोप भारत की सुरक्षा की सबसे बड़ी Hope यानी उम्मीद है. हमें उम्मीद है कि ये रिपोर्ट देखकर आज आप भी भारत के तोपचियों को सलामी देंगे क्योंकि भारतीय तोपों की ताकत का सामना करना आज भी भारत के दुश्मनों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं है.
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