How tobacco came to india: इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट ट्यूबरक्यूलोसिस एंड लंग डिजीज की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में तंबाकू उत्पादों की वजह से साल 1910 से लेकर 2010 के बीच 10 करोड़ से ज्यादा लोगों की मौत हुई. इसी रिपोर्ट के मुताबिक युवाओं की अकाल मौत की बड़ी वजह तंबाकू, बीड़ी और सिगरेट का सेवन है. तंबाकू का सेवन नुकसान करता है. इसके बावजूद करोड़ों लोग इसे खाते हैं. शौक के नाम पर तल बन चुकी तंबाकू के इतिहास के बारे में अब आपको जो बताने जा रहे हैं, उसकी जानकारी बहुत से लोगों को नहीं होगी.


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भारत में पान-सुपाड़ी के इस्तेमाल का बदला स्वरूप


अपने देश में सुपारी और पान का चलन सदियों नहीं युगों पुराना है. इसका जिक्र आयुर्वेद तक में मौजूद है. भारत में तो पूजा-पाठ में भी भगवान को भी पान और सुपाड़ी चढ़ाई जाती है. बदलते दौर में इसका स्वरूप तब बदला जब लोगों ने इसमें तंबाकू मिलाकर इसका इस्तेमाल नशे के तौर पर शुरू कर दिया. स्वच्छ भारत अभियान की राह का सबसे बड़ा रोड़ा पान और गुटखे की लत था जिसकी लाल पीक से दीवारों-सड़कों का कोना रंगा होता था.


लोगों को मुंह से लाल रंग की लार टपकने में तंबाकू की भूमिका बड़ी रही है. इतालवी यात्री निकोलाओ मनूची जब 1658 में भारत पहुंचा तो लोगों के मुंह से खून टपकता देखकर वो हैरान हुआ कि आखिर हिन्दुस्तान के लोगों को यह कौन सी बीमारी हो गई है. जब उसने पड़ताल की तब उसे ये पता चला कि ये बीमारी नहीं बल्कि शौकिया खाया जाने वाला पान है.


भारत में कब आई तंबाकू?


एक रिपोर्ट के मुताबिक तंबाकू भारत में मुगल दौर में आई. अमेरिका में हुई रिसर्च के मुताबिक 12000 साल पहले भी दुनिया में तंबाकू मौजूद थी और लोग उसका सेवन करते थे, लेकिन इसे भारत में पहुंचने में काफी वक्त लग गया. ये नशा मुगलों की जुबान से होते हुए आम लोगों तक पहुंचा. कहा जाता है कि 1492 के करीब कोलंबस के जरिए तंबाकू अमेरिकी महाद्वीप से यूरोप तक पहुंचा.


मुगल राज में आई तंबाकू


आगे 1604 के आसपास भारत में कारोबार करने वाले पुर्तगालियों के जरिए यह हिन्दुस्तान में आया. यह वो दौर था जब अखंड भारत वाले हिंदुस्तान की मुगल सल्तनत में अकबर और जहांगीर के बीच सत्ता परिवर्तन की जद्दोजहद चल रही थी.


मुगल दरबार में गुड़गुड़ाया हुक्का


अकबर के दरबार में एक बार कुछ विदेशी व्यापारी और इतिहासकार पहुंचे. उन्होंने बादशाह सलामत के सामने एक नई चीज को पेश करने की अनुमति मांगी. दरअसल ये वही तंबाकू थी जिससे अकबर अंजान थे. क्योंकि न तो पहले कभी उन्होंने इसे देखा था और न ही उसकी खुशबू सूंघी थी. उनके आगे एक नक्काशीदार हुक्के के साथ चांदी की प्लेट में कुछ तंबाकू पेश की गई. इसमें नली थी जिससे धुएं को अंदर की तरफ खींचना होता था.


जब अकबर ने खींचा कश!


कुछ इतिहासकारों के मुताबिक अकबर के दरबार में मौजूद असद बेग ने इसकी चिलम सुलगाकर अकबर को दी. अकबर कश लगाने जा रहे थे तभी शाही हकीम ने उन्हें मना लिया, अकबर बादशाह थे भला फौरन कैसे कोई बात मान लेते. तीन चार कश लेने के बाद उन्हें खांसी आने लगी. कुछ ही देर में अकबर समझ गए कि हकीम क्यों परेशान हो रहे थे.


जांच की रिपोर्ट आते आते लोगों को लगी तंबाकू के नशे की लत


आज के डॉक्टरों की तरह शाही हकीम कहते रहे कि तंबाकू सही चीज नहीं है, लेकिन असद बेग ने अकबर से कहा इसे खारिज नहीं करना चाहिए और जांच होनी चाहिए. जांच के नाम पर असद ने तंबाकू का कुछ हिस्सा रईसों को दिया और कुछ आम जनता यानी गरीबों को भी मुफ्त में तंबाकू बांटी गई. इसे हुक्के में भरकर दरबारियों को भी दिया. इस तरह तंबाकू आम लोगों तक पहुंचा. लोगों को ये भनक भी नहीं लगी कि उन्हें कब नशे की इस लत ने अपना गुलाम बना लिया. ऐसे में जब लोग इसकी डिमांड करने लगे तो व्यापारियों ने इसे बेचना शुरू कर दिया. 


औरंगजेब ने तंबाकू की कमाई से काटी चांदी


1605 में जहांगीर ने सत्ता संभाली तो तंबाकू पर बैन लगा दिया. जहांगीर के दौर को बताते हुए शाह अब्बास लिखते हैं कि जहांगीर को इसकी लत और नुकसान की समझ हो गई थी. इसलिए फौरन शाही आदेश जारी करके तंबाकू पर बैन लगाया, लेकिन आदेश के 20 साल के भीतर ही भारत में तंबाकू का बड़ी मात्रा में उत्पादन होने लगा. कहा जाता है कि भारत में 1620 का दशक शुरू होते ही बड़े पैमाने पर तंबाकू की खेती होने लगी थी.


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