दक्षिण भारत में क्यों मची है बच्चे पैदा करने की होड़? तमिलनाडु से लेकर आंध्र-तेलंगाना तक मायने गहरे हैं
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दक्षिण भारत में क्यों मची है बच्चे पैदा करने की होड़? तमिलनाडु से लेकर आंध्र-तेलंगाना तक मायने गहरे हैं

South India News: आपने अक्सर एक नारा- 'हम दो हमारे दो' सुना होगा. अब महंगाई बढ़ी और जमाना बदला तो 'हम दो हमारा एक' का भी नारा चलने लगा है, लेकिन दक्षिण भारत में आजकल एक नया नारा है- 'हम दो और हमारे कई'.

दक्षिण भारत में क्यों मची है बच्चे पैदा करने की होड़? तमिलनाडु से लेकर आंध्र-तेलंगाना तक मायने गहरे हैं

Population issue: आपने अक्सर एक नारा- 'हम दो हमारे दो' सुना होगा. अब महंगाई बढ़ी और जमाना बदला तो 'हम दो हमारा एक' का भी नारा चलने लगा है, लेकिन दक्षिण भारत में आजकल एक नया नारा है- 'हम दो और हमारे कई'. दक्षिण भारत के नेता और पार्टियां दक्षिण भारतीय लोगों को जल्दी-जल्दी ज्यादा से ज्यादा बच्चे करने की सलाह दे रहे हैं और इसकी सबसे पहले अपील की तमिलनाड के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने की थी. जैसे ही तमिलनाडु के सीएम ने परिसीमन के नाम पर ज्यादा बच्चे करने की नसीहत दी, साउथ के नेताओं ने अलग-अलग ऐलान करने शुरू कर दिए.

तमिलनाडु से लेकर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना तक होड़

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि सभी महिला कर्मचारियों को मैटरनिटी लीव दी जाएगी. चाहे उनके कितने भी बच्चे क्यों न हों. इसके बाद TDP के सांसद कालीसेट्टी अप्पाला नायडू एक कदम और आगे बढ़ गए और उन्होंने ऐलान कर दिया कि महिलाओं को तीसरा बच्चा होने पर गिफ्ट देंगे. अगर बच्चा लड़का हुआ तो गाय और लड़की हुई तो 50,000 रुपये दिए जाएंगे. सांसद ने कहा कि यह रकम वह अपने वेतन से देंगे.

अब आप सोच रहे होंगे कि दक्षिण भारत के नेता क्यों ज्यादा बच्चे करने की सलाह दे रहे तो इसकी वजह सत्ता है. दरअसल जनसंख्या गणना के बाद 2026 में लोकसभा के सीटों की परिसीमन होने की संभावना है.

दक्षिण भारतीय राज्यों को डर है कि अगर जनसंख्या के आधार पर ये लोकसभा के सीटों को नए तरीके से तय किया जाता है तो ऐसे में दक्षिण भारत में लोकसभा में सीटों की संख्या घट जाएगी क्योंकि दक्षिण भारत में उत्तर भारत के मुकाबले ज्यादा जनसंख्या है.

पचास साल में क्या कुछ बदल गया?

आखिरी बार 1971 की जनगणना के आधार पर 1976 में लोकसभा सीटों का परिसीमन किया गया था. 1971 में देश की आबादी 54 करोड़ थी और हर 10 लाख आबादी पर एक लोकसभा सीट का फॉर्मूला अपनाया गया था । इस तरह कुल 543 सीटें तय की गईं थी.

अब फिर से 2026 में परिसीमन होने वाला है और ये 2021 की जनगणना के आधार पर होगा. लेकिन 2021 की जनगणना अभी शुरू नहीं हुई है तो परिसीमन 2011 की जनगणना पर भी हो सकता है.

2011 की जनगणना के मुताबिक, दक्षिण के पांच राज्यों की आबादी 25.12 करोड़ है, जबकि उत्तर भारत यानी हिंदी बोलने वाले राज्यों की आबादी 57.23 करोड़ है. और ये दक्षिण भारत की आबादी से दोगुनी है। ऐसे में जनसंख्या के फॉर्मूले के आधार पर लोकसभा सीटों की संख्या तय की जाती है तो दक्षिण भारत के सांसदों की संख्या कम हो जाएगी और इसीलिए दक्षिण भारत के नेता ज्यादा बच्चों जन्म देने की बात कह रहे हैं । इस मुद्दे पर संसद में भी हंगामा हो रहा और दक्षिण भारत के सभी सांसद भी एकजुट हैं.

जनसंख्या नियंत्रण का डाटा क्या कहता है?

दक्षिण भारत के नेताओं के मानना है उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण पर ज्यादा काम किया इसीलिए उनके यहां लोगों की संख्या कम है. लेकिन आंकड़े कुछ और बताते हैं. तमिलनाडु में जन्म दर 1.8, आंध्र प्रदेश में 1.7, कर्नाटक में 1.7 , केरल  और तेलंगाना में 1.8 है. अब ओडिशा, पंजाब के आंकड़े देखिए, ये 1.8 और 1.6 है, जबकि पश्चिम बंगाल में 1.6, गोवा - महाराष्ट्र-त्रिपुरा में 1.7 है.

दरअसल दक्षिण भारत के नेताओं का मानना है कि ज्यादा बच्चे होंगे तो दक्षिण भारत से भी ज्यादा सांसद हो पाएंगे, लेकिन जो भी बच्चे अब जन्म लेंगे पहले तो उनको वोटिंग राइट्स मिलने में अभी से 18 साल लगेंगे, इसके अलावा लोकसभा सीटें तय करने में कई मुद्दों का भी ख्याल रखा जाता है, हालांकि इस मामले में स्टालिन ने आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, केरल, ओडिशा, पंजाब, कर्नाटक के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर 22 मार्च को चेन्नई में बैठक के लिए निमंत्रण दे चुके हैं.

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