पड़ोसी ने दुस्‍साहस का प्रयास किया, ऐसी शक्तियों को माकूल जवाब देंगे: राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद
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पड़ोसी ने दुस्‍साहस का प्रयास किया, ऐसी शक्तियों को माकूल जवाब देंगे: राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद

राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि आज जब विश्व समुदाय के समक्ष आई सबसे बड़ी चुनौती से एकजुट होकर संघर्ष करने की आवश्यकता है, तब हमारे पड़ोसी ने अपनी विस्तारवादी गतिविधियों को चालाकी से अंजाम देने का दुस्साहस किया.

 

पड़ोसी ने दुस्‍साहस का प्रयास किया, ऐसी शक्तियों को माकूल जवाब देंगे: राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद

नई दिल्‍ली: 74वें स्‍वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्‍या पर राष्‍ट्र को संबोधित करते हुए राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कोरोना वायरस से लेकर पड़ोसी देशों के दुस्‍साहस और श्रीराम मंदिर के निर्माण कार्य के शुरू होने से लेकर विभिन्‍न मुद्दों पर राष्‍ट्र की प्रगति के बारे में बताया. इस अवसर पर जो उन्‍होंने महत्‍वपूर्ण बातें कहीं. पेश है उन पर एक नजर:

- स्वाधीनता के गौरव को महसूस करने का दिवस है. स्वाधीन भारत की नींव पर ही आधुनिक भारत का निर्माण हो रहा है. सौभाग्यशाली हैं कि महात्मा गांधी हमारे मार्ग दर्शक थे..

- समानता हमारे गणतंत्र का मूल मंत्र है. इस साल स्वतंत्रता दिवस पर धूमधाम नहीं होगी..क्योंकि कोरोना ने विश्व को क्षति पहुंचाई है..

- आश्‍वस्‍त करने वाली बात है कि समय रहते प्रभावी कदम उठाए. राज्य सरकारों ने स्‍थानीय परिस्थिति के अनुसार काम किया और लोगों के जीवन की रक्षा करने में प्रभावी साबित हुए

- कोरोना के योद्धाओं ने डट कर काम किया. दुर्भाग्यवश कोरोना से लड़ते हुए कोरोना योद्धा ने अपनी जान गंवा दी. राष्ट्र उन सभी डॉक्टरों, नर्सों तथा अन्य स्वास्थ्य-कर्मियों का ऋणी है जो कोरोना वायरस के खिलाफ इस लड़ाई में अग्रिम पंक्ति के योद्धा रहे हैं.

पश्चिम बंगाल और ओडिशा में अम्फान तूफान का समना करना पड़ा. पूर्वोत्तर राज्यों में बाढ़ का सामना करना पड़ा

-‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना’ की शुरुआत करके सरकार ने करोड़ों लोगों को आजीविका दी है, ताकि महामारी के कारण नौकरी गंवाने, एक जगह से दूसरी जगह जाने तथा जीवन के अस्त-व्यस्त होने के कष्ट को कम किया जा सके.

इस महामारी का सबसे कठोर प्रहार, गरीबों और रोजाना आजीविका कमाने वालों पर हुआ है. संकट के इस दौर में, उनको सहारा देने के लिए, वायरस की रोकथाम के प्रयासों के साथ-साथ, अनेक जन-कल्याणकारी कदम उठाए गए हैं.

किसी भी परिवार को भूखा न रहना पड़े, इसके लिए जरूरतमन्द लोगों को मुफ्त अनाज दिया जा रहा है. इस अभियान से हर महीने, लगभग 80 करोड़ लोगों को राशन मिलना सुनिश्चित किया गया है.इस महामारी का सबसे बड़ा प्रहार रोज आजीविका कमानेवाले लोगों पर हुआ है लोगों की मदद के लिए सरकार ने अनेक कदम उठाए हैं. किसी भी प्रकार से लोगों को भूखा नहीं रहना पड़ा इसके लिए - सरकार राशन दे रही है

80 करोड़ लोगों को राशन दिया. ONE NATION ONE RATION CARD सभी राज्यों में लाया जा रहा है

दुनिया में कहीं पर भी मुसीबत में फंसे हमारे लोगों की मदद करने के लिए प्रतिबद्ध, सरकार द्वारा ‘वंदे भारत मिशन’ के तहत, दस लाख से अधिक भारतीयों को स्वदेश वापस लाया गया है.

भारतीय रेल द्वारा इस चुनौती-पूर्ण समय में ट्रेन सेवाएं चलाकर, वस्तुओं तथा लोगों के आवागमन को संभव किया गया है.

अपने सामर्थ्य में विश्वास के बल पर, हमने कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में अन्य देशों की ओर भी मदद का हाथ बढ़ाया है.  अन्य देशों के अनुरोध पर, दवाओं की आपूर्ति करके, हमने एक बार फिर यह सिद्ध किया है कि भारत संकट की घड़ी में, विश्व समुदाय के साथ खड़ा रहता है.

भारत की आत्मनिर्भरता का अर्थ स्वयं सक्षम होना है, दुनिया से अलगाव या दूरी बनाना नहीं. इसका अर्थ यह भी है कि भारत वैश्विक बाज़ार व्यवस्था में शामिल भी रहेगा और अपनी विशेष पहचान भी कायम रखेगा.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अस्थायी सदस्यता के लिए, हाल ही में सम्पन्न चुनावों में मिला भारी समर्थन, भारत के प्रति व्यापक अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना का प्रमाण है. आज जब विश्व समुदाय के समक्ष आई सबसे बड़ी चुनौती से एकजुट होकर संघर्ष करने की आवश्यकता है, तब हमारे पड़ोसी ने अपनी विस्तारवादी गतिविधियों को चालाकी से अंजाम देने का दुस्साहस किया.

सीमाओं की रक्षा करते हुए, हमारे बहादुर जवानों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए. भारत माता के वे सपूत, राष्ट्र गौरव के लिए ही जिए और उसी के लिए मर मिटे.  पूरा देश गलवान घाटी के बलिदानियों को नमन करता है.  हर भारतवासी के हृदय में उनके परिवार के सदस्यों के प्रति कृतज्ञता का भाव है.

उनके शौर्य ने यह दिखा दिया है कि यद्यपि हमारी आस्था शांति में है, फिर भी यदि कोई अशांति उत्पन्न करने की कोशिश करेगा तो उसे माकूल जवाब दिया जाएगा. हमें अपने सशस्त्र बलों, पुलिस तथा अर्धसैनिक बलों पर गर्व है जो सीमाओं की रक्षा करते हैं, और हमारी आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं.

आज जब विश्व समुदाय के समक्ष आई सबसे बड़ी चुनौती से एकजुट होकर संघर्ष करने की आवश्यकता है, तब हमारे पड़ोसी ने अपनी विस्तारवादी गतिविधियों को चालाकी से अंजाम देने का दुस्साहस किया.

वर्ष 2020 में हम सबने कई महत्वपूर्ण सबक सीखे हैं.  एक अदृश्य वायरस ने इस मिथक को तोड़ दिया है कि प्रकृति मनुष्य के अधीन है.  मेरा मानना है कि सही राह पकड़कर, प्रकृति के साथ सामंजस्य पर आधारित जीवन-शैली को अपनाने का अवसर, मानवता के सामने अभी भी मौजूद 

जलवायु परिवर्तन की तरह, इस महामारी ने भी यह चेतना जगाई है कि विश्व-समुदाय के प्रत्येक सदस्य की नियति एक दूसरे के साथ जुड़ी हुई है. मेरी धारणा है कि वर्तमान संदर्भ में ‘अर्थ-केंद्रित समावेशन’ से अधिक महत्व ‘मानव-केंद्रित सहयोग’ का है.

मेरा मानना है कि कोविड-19 के विरुद्ध लड़ाई में, जीवन और आजीविका दोनों की रक्षा पर ध्यान देना आवश्यक है. हमने मौजूदा संकट को सबके हित में, विशेष रूप से किसानों और छोटे उद्यमियों के हित में, समुचित सुधार लाकर अर्थव्यवस्था को पुन: गति प्रदान करने के अवसर के रूप में देखा है.

कृषि क्षेत्र में ऐतिहासिक सुधार किए गए हैं. किसान बिना किसी बाधा के, देश में कहीं भी, अपनी उपज बेचकर उसका अधिकतम मूल्य प्राप्त कर सकते हैं. किसानों को नियामक प्रतिबंधों से मुक्त करने के लिए ‘आवश्यक वस्तु अधिनियम’ में संशोधन किया गया है. इससे किसानों की आय बढ़ाने में मदद मिलेगी.

कोरोना वायरस मानव समाज द्वारा बनाए गए कृत्रि‍म विभाजनों को नहीं मानता है. इससे यह विश्वास पुष्ट होता है कि मनुष्यों द्वारा उत्पन्न किए गए हर प्रकार के पूर्वाग्रह और सीमाओं से, हमें ऊपर उठने की आवश्यकता है.

21वीं सदी को उस सदी के रूप में याद किया जाना चाहिए जब मानवता ने मतभेदों को दरकिनार करके, धरती मां की रक्षा के लिए एकजुट प्रयास किए.

सार्वजनिक अस्पतालों और प्रयोगशालाओं ने कोविड-19 का सामना करने में अग्रणी भूमिका निभाई है. सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के कारण गरीबों के लिए इस महामारी का सामना करना संभव हो पाया है. इसलिए, इन सार्वजनिक स्वास्थ्य-सुविधाओं को और अधिक विस्तृत व सुदृढ़ बनाना होगा.

सार्वजनिक अस्पतालों और प्रयोगशालाओं ने कोविड-19 का सामना करने में अग्रणी भूमिका निभाई है. सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के कारण गरीबों के लिए इस महामारी का सामना करना संभव हो पाया है. इसलिए, इन सार्वजनिक स्वास्थ्य-सुविधाओं को और अधिक विस्तृत व सुदृढ़ बनाना होगा.

चौथा सबक, विज्ञान और प्रौद्योगिकी से संबंधित है. इस वैश्विक महामारी से विज्ञान और टेक्‍नोलॉजी को तेजी से विकसित करने की आवश्यकता पर और अधिक ध्यान गया है. लॉकडाउन और उसके बाद क्रमशः अनलॉक की प्रक्रिया के दौरान शासन, शिक्षा, व्यवसाय, कार्यालय के काम-काज और सामाजिक संपर्क के प्रभावी माध्यम के रूप में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी को अपनाया गया है.

मुझे विश्वास है कि हमारे देश और युवाओं का भविष्य उज्ज्वल है.

 

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