UN में फिर गरजा भारत, करतारपुर साहिब और आतंकवाद पर Pakistan को लगाई लताड़
संयुक्त राष्ट्र में भारत के पहले सचिव आशीष शर्मा (Ashish Sharma) ने जहां करतारपुर साहिब गुरुद्वारा प्रबंधन और आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को घेरा, वहीं धर्म के मुद्दे पर UN को भी जमकर सुनाई.
नई दिल्ली: भारत (India) ने करतारपुर साहिब गुरुद्वारा प्रबंधन और आतंकवाद के मुद्दे पर एक बार फिर पाकिस्तान (Pakistan) को आड़े हाथ लिया है. संयुक्त राष्ट्र (UN) के मंच से भारत ने पाकिस्तान को दक्षिण एशिया में शांति के लिए खतरा बताते हुए कहा है कि यदि पाकिस्तान आतंकवाद के समर्थन की अपनी आदत छोड़ दे, तो हम दक्षिण एशिया में शांति की संस्कृति बहाल करने की पहल कर सकते हैं.
कब तक हम मूकदर्शक बने रहेंगे?
संयुक्त राष्ट्र में भारत के पहले सचिव आशीष शर्मा (Ashish Sharma) ने कहा कि आखिर कब तक हम पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की हत्या, जबरन धर्म परिवर्तन और उन पर होने वाले अत्याचारों पर मूक दर्शक बने रहेंगे? पाकिस्तान में स्थिति बेहद विकट है, वहां सांप्रदायिक हत्याओं के चलते समान धर्म के लोगों की भी जान जा रही है. उन्होंने आगे कहा कि पिछले साल शांति कायम करने के लिए इस सभा में पेश किए गए प्रस्ताव का उल्लंघन पाकिस्तान पहले ही कर चुका है.
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यह धर्म के खिलाफ
करतारपुर साहिब गुरुद्वारा प्रबंधन पर पाकिस्तान की चालबाजी पर कड़ी नाराजगी जताते हुए शर्मा ने कहा कि पिछले महीने पाकिस्तान ने सिखों के पवित्र धर्मस्थल के प्रबंधन का जिम्मा जबरदस्ती गैर सिख समुदाय के हवाले कर दिया. यह सिख धर्म और उसकी सुरक्षा के खिलाफ है. बता दें कि इमरान खान सरकार ने हाल ही में करतारपुर साहिब गुरुद्वारे के प्रबंधन और रखरखाव का जिम्मा एक गैर सिख संस्था को दे दिया था. भारत ने इस पर आपत्ति भी जताई थी.
UN को भी किया कठघरे में खड़ा
आशीष शर्मा ने संयुक्त राष्ट्र (UN) को भी कठघरे में खड़ा किया. उन्होंने कहा है कि UN के प्रस्तावों में हिन्दू, बौद्ध, सिख जैसे भारतीय धर्मों के खिलाफ होने वाली हिंसा की निंदा नहीं की जाती, जो कि पूरी तरह से गलत है. मजबूती से भारत का पक्ष रखते हुए उन्होंने कहा, ‘हम इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि इस्लामोफोबिया और ईसाई विरोधी मामलों पर कार्रवाई होनी चाहिए. भारत भी इन मामलों की निंदा करता है, लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि हिंदू, बौद्ध, सिख जैसे भारतीय धर्मों के लोग भी उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं. दुनिया के अलग -अलग हिस्सों में उन्हें हिंसा का सामना करना पड़ा है. इसके बावजूद संयुक्त राष्ट्र की तरफ से इसकी निंदा नहीं की जाती’.
नाकाम रहा है संयुक्त राष्ट्र
'शांति की संस्कृति' पर बोलते हुए शर्मा ने कहा कि यह मंच अब तक बौद्ध, हिंदू और सिख धर्म के लोगों के खिलाफ नफरत और हिंसा के मामलों पर रुख साफ करने में नाकाम साबित हुआ है. उन्होंने आगे कहा, ‘जिस तरह से इस्लामोफोबिया या ईसाई विरोधी मामलों को उठाया जाता है, उसी तरह दूसरे धर्मों के साथ होने वाले अत्याचार के मामलों को भी उठाया जाना चाहिए, उसकी निंदा की जानी चाहिए’. शर्मा ने कहा कि सिर्फ यहूदी, ईसाई या इस्लाम से जुड़े मामलों पर ही बात क्यों होती है? हम क्यों भूल जाते हैं कि कट्टरपंथियों द्वारा बामयान में भगवान बुद्ध की प्रतिमा तोड़ दी गई थी. इस साल की शुरुआत में अफगानिस्तान में सिख गुरद्वारे पर हमला हुआ था, जिसमें 25 सिख श्रद्धालुओं की मौत हो गई. कई दक्षिण एशियाई देशों में हिंदुओं और सिखों की हत्याएं हुई हैं. हिंदुओं और बौद्ध मंदिरों को तोड़ा गया है. इन मामलों की भी निंदा होनी चाहिए.
क्या है ‘शांति की संस्कृति’?
आशीष शर्मा ने संयुक्त राष्ट्र से सवाल करते हुए कहा कि केवल चुनिंदा मामलों को ही क्यों उठाया जाता है? इस सिलेक्टिविटी की वजह क्या है? UN में किसी धर्म विशेष पर ही बात नहीं होनी चाहिए और न ही इसे किसी एक धर्म का पक्ष लेना चाहिए. ‘शांति की संस्कृति’ संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारित एक वार्षिक प्रस्ताव है, जिसमें शांति, अहिंसा को बढ़ावा देने का आह्वान किया जाता है. आंकड़ों की बात करें तो हिंदू धर्म में 1.2 बिलियन, बौद्ध धर्म में 535 मिलियन और सिख धर्म के 30 मिलियन से अधिक अनुयायी हैं, लेकिन शायद ही संयुक्त राष्ट्र के किसी प्रस्ताव में इनका जिक्र किया गया हो. यही वजह है कि भारत ने इस मुद्दे पर प्रमुखता से अपनी बात रखते हुए UN के रुख पर नाराजगी जताई है.
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