Hardit Singh Malik First Indian Pilot: इंग्लैंड में क्रिकेट के एक मैदान पर अंग्रेज एक स्टाइलिश भारतीय बल्लेबाज को बॉलिंग कर रहा था. उस भारतीय ने जिस कौशल के साथ 19 रन जोड़े, दूर बैठे एक शख्स को काफी पसंद आया. वह भारतीय क्रिकेटर रणजीत सिंह जी के दोस्त थे. उस नौजवान का नाम था हरदित सिंह मलिक. उसकी सिफारिश ससेक्स क्रिकेट टीम के कैप्टन हरबर्ट चैपलिन से की गई. इंग्लिश क्रिकेट लीग में मलिक ससेक्स काउंटी के लिए खेल रहे थे. किसी को नहीं पता था कि इस क्रिकेटर की किस्मत में एक रोमांचक मोड़ आने वाला है. ये कहानी है साल 1912 की. वक्त ने करवट ली और 1914 में जंग छिड़ गई. ये प्रथम विश्व युद्ध था. जर्मनी, रूस और फ्रांस में तनाव बढ़ा. ब्रिटेन भी जंग में कूद गया. 


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भारत से पढ़ने गए थे हरदित


हरदित का जन्म संयुक्त भारत के रावलपिंडी (पश्चिम पंजाब) में 1894 को हुआ था. उन्हें 14 साल की उम्र में पढ़ने के लिए इंग्लैंड भेजा गया था. वह ऑक्सफोर्ड के एक कॉलेज में पढ़ रहे थे. जंग छिड़ी तो उनका मैदान बदल गया. उनके मन में कहीं उड़ने की एक तमन्ना थी लेकिन ऑक्सफोर्ड में चॉइस मिलना इतना आसान नहीं था. अपने सपने को जीने के लिए उन्हें उस देश के लिए लड़ना था, जो मातृभूमि पर जबरन राज कर रहा था. उनके साथी लड़ने के लिए जाने लगे. हरदित ने भी रॉयल फ्लाइंग कॉर्प्स में लड़ाकू विमान का पायलट बनने के लिए आवेदन कर दिया. एक भारतीय को ब्रिटिश प्लेन उड़ाने दिया जाए? इस बात पर कई लोगों ने नाक-भौं सिकोड़ी और उनका आवेदन खारिज हो गया. 


हरदित निराश नहीं हुए. उन्होंने अपने ऑक्सफोर्ड ट्यूटर से आग्रह किया कि वह फ्रांस में सिविलियन सपोर्ट के लिए उनकी सिफारिश कर दें. 1915 में ग्रैजुएट होने के बाद हरदित को फ्रेंच रेड क्रॉस ने हायर कर लिया. उन्हें जंग के मैदान में मोटर एंबुलेंस चलाने की जिम्मेदारी दी गई. वह अपने ऊपर से प्लेन के समूह को उड़ते देखते तो बचपन की यादें ताजा हो जातीं जब वह पतंग उड़ाया करते थे. वहीं से उनके भीतर उड़ने का जुनून पैदा हुआ था.


फ्रेंच फोर्स में किया अप्लाई और... 


उन्होंने फ्रेंच एयरफोर्स में अप्लाई किया और एक दिन चौंक गए. उनका आवेदन स्वीकार कर लिया गया था. एक जाने माने शिक्षाविद ने तब रॉयल एयरफोर्स के चीफ को लेटर लिखकर कहा था कि अगर हरदित सिंह मलिक फ्रेंच को काबिल लगता है तो वह ब्रिटिश सेना के लिए क्यों नहीं है? यह लेटर काम कर दिया. कुछ दिन में हरदित को इंग्लैंड बुलाया गया और खुद जनरल हेंडरसन उनसे ऑफिस में मिले. फटाफट प्रक्रियाएं पूरी करके उन्हें 5 अप्रैल 1917 को सेना में शामिल किया गया और पोस्ट मिली सेकेंड लेफ्टिनेंट की. उन्होंने कई लड़ाकू विमान उड़ाए. उन्होंने Sopwith Camel लड़ाकू विमान भी उड़ाया जो सिंगल सीट प्लेन और उस समय सबसे एडवांस्ड फाइटर हुआ करता था. वह दुश्मन से बचने के लिए आसमान में जो कलाबाजियां करते, देखने वाले हैरान रह जाते. उन्होंने अपने ब्रिटिश प्लेन की एक साइड पर 'India' लिख रखा था. 



अक्टूबर 1917 में उन्हें फ्रांस में स्पेशल तैनाती मिली. उन्हें कनाडाई नागरिक विलियम बार्कर के रूप में मेंटोर मिले. पहले विश्वयुद्ध में बार्कर को सबसे महान पायलट माना गया. उन्हें वीरता पुरस्कार भी मिला. अगले कई मिशन में मलिक दुश्मन पर कहर बनकर टूटे. दुश्मन के क्षेत्र में अपने फाइटर को लेकर घुसने और तबाही मचाने का करतब उन्होंने अपने 'गुरु' से ही सीखा था. एक ऑपरेशन के बाद उन्होंने बताया था कि चारों तरफ से गोलियां बरसती रहती थीं और हमें निर्देश था कि कम से कम एक बड़े टारगेट को हिट करके ही लौटना है. 


प्लेन पर दागी गईं 400 गोलियां


26 अक्टूबर 1917 को वे बेल्जियम के एक गांव के ऊपर उड़ रहे थे. काफी अंधेरा था. रातभर बारिश हुई थी. दिन में भी बहुत कम दिखाई दे रहा था. ऐसे समय में उड़ना काफी खतरनाक होता है लेकिन चार प्लेन एक साथ उड़े और अंधेरे में ओझल हो गए. आगे से जर्मन फाइटरों ने मोर्चा ले लिया. बार्कर और हरदित कैमल की सवारी कर रहे थे. डॉग फाइट तेज हो गई. हरदित ने दुश्मन के प्लेन को टारगेट तो किया लेकिन अगले ही पल उन्हें तेज दर्द का एहसास हुआ. जांघ और कमर का हिस्सा बुरी तरह जख्मी हुआ था. खून से लथपथ होने के बावजूद हरदित दर्द से लड़ते रहे. उस समय जर्मन फाइटरों ने उनके प्लेन पर 400 गोलियां दागी थीं. पेट्रोल टैंक हिट हुआ था, कॉकपिट में गर्मी बढ़ रही थी. वह तमाम चीजें एकसाथ सोच रहे थे. दूर आसमान में वह देख रहे थे कि बार्कर को जर्मन प्लेन ने घेर लिया था. 


प्लेन को वह स्थिर रखना चाहते थे लेकिन वह तेजी से नीचे आ रहा था. सॉफ्ट सरफेस पर प्लेन उतरता तो जान बच सकती थी. आखिरकार वह फ्रेंज इलाके में उतर गए. कीचड़ वाली जगह पर उनका प्लेन फिसलता चला गया. इलाज हुआ और उनकी जान बच गई. ऑपरेशन के समय उन्होंने एक रिपोर्ट लिखी थी जिसमें बार्कर के लिए चिंता जताई थी क्योंकि उन्हें पता नहीं था कि जर्मन प्लेन के हमले में वह बचे या नहीं. हालांकि बार्कर बच निकले थे. उन्होंने भी एक रिपोर्ट लिखी और कहा था कि उन्हें नहीं लगता वह इंडियन बचा होगा. 


आजादी के बाद मलिक कनाडा में पहले भारतीय उच्चायुक्त रहे. बाद में वह फ्रांस में भारत के राजदूत भी रहे. लेखक प्रबल दासगुप्ता ने मलिक की बहादुरी का अपनी किताब में विस्तार से जिक्र किया है. (फोटो- lexica AI)