दुनियाभर में अब भी 72 ऐसे देश और क्षेत्र हैं जहां समलैंगिक संबंध को अपराध समझा जाता है.
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के साथ ही भारत उन 25 अन्य देशों के साथ जुड़ गया जहां समलैंगिकता वैध है. लेकिन दुनियाभर में अब भी 72 ऐसे देश और क्षेत्र हैं जहां समलैंगिक संबंध को अपराध समझा जाता है. उनमें 45 वे देश भी हैं जहां महिलाओं का आपस में यौन संबंध बनाना गैर कानूनी है.
उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने बृहस्पतिवार को आईपीसी की धारा 377 के तहत 158 साल पुराने इस औपनिवेशिक कानून के संबंधित हिस्से को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया और कहा कि यह समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है.
इंटरनेशनल लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल, ट्रांस एंड इंटरसेक्स एसोसिएशन के अनुसार आठ ऐसे देश हैं जहां समलैंगिक संबंध पर मृत्युदंड का प्रावधान है और दर्जनों ऐसे देश हैं जहां इस तरह के संबंधों पर कैद की सजा हो सकती है.
जिन कुछ देशों समलैंगिक संबंध वैध ठहराए गए हैं उनमें अर्जेंटीना, ग्रीनलैंड, दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, आईसलैंड, स्पेन, बेल्जियम, आयरलैंड, अमेरिका, ब्राजील, लक्जमबर्ग, स्वीडन और कनाडा शामिल हैं.
UN ने की सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तारीफ
संयुक्त राष्ट्र के भारत स्थित कार्यालय ने दो वयस्कों के बीच ‘खास यौन संबंधों’ को अपराध ठहराने वाले भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के एक अहम हिस्से को निरस्त करने के उच्चतम न्यायालय कै फैसले की गुरुवार को सराहना की और कहा कि इस फैसले से एलजीबीटीआई व्यक्तियों पर लगा धब्बा और उनके साथ भेदभाव खत्म करने के प्रयासों को बल मिलेगा. साथ ही उम्मीद जताई कि यह फैसला एलजीबीटीआई व्यक्तियों को पूरे मौलिक अधिकारों की गारंटी देने की दिशा में पहला कदम होगा.
एक बयान में उसने कहा कि दुनियाभर में यौन रुझान और लैंगिक अभिव्यक्ति किसी भी व्यक्ति की पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं तथा इन तत्वों के आधार पर हिंसा, दाग या भेदभाव मानवाधिकारों का ‘घोर’ उल्लंघन है.
उसने एक बयान में कहा,‘भारत स्थित संयुक्त राष्ट्र कार्यालय भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के अहम हिस्से के निरस्तीकरण से संबंधित उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करता है जो बालिगों के बीच विशेष यौन कृत्यों को अपराध ठहराता है. यह ऐसा कानून है जो ब्रिटिश औपनिवेशिक काल का है और उसके निशाने पर खासकर लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और इंटरसेक्स व्यक्ति एवं समुदाय रहे हैं.
उसने कहा,‘भारत में संयुक्त राष्ट्र का कार्यालय उम्मीद करता है कि अदालत का यह फैसला एलजीबीटीआई व्यक्तियों को पूरे मौलिक अधिकारों की गारंटी देने की दिशा में पहला कदम होगा. हम यह भी आशा करते हैं कि इस फैसले से सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्रियाकलापों के सभी क्षेत्रों में एलजीबीटीआई व्यक्तियों के विरुद्ध दाग और भेदभाव खत्म करने के प्रयासों को बल मिलेगा और सच्चे अर्थों में समावेशवी समाज सुनिश्चित होगा'
(इनपुट - भाषा)