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India-US on Tibet Against China: दुनियाभर में अपनी धौंस दिखा रहे चीन (China) को दायरे में बांधने के लिए क्वाड के देश लगातार एक-दूसरे के नजदीक आ रहे हैं. अब अमेरिका और भारत ने मिलकर चीन की दुखती रग पर हाथ रखने का फैसला किया है. दोनों ने तिब्बत (Tibet) के मसले पर चीन को घेरने की योजना बना ली है. योजना के तहत दोनों देश धीरे-धीरे तिब्बत को मसले को उठाएंगे और फिर भविष्य में 'एक चीन' की नीति (One China Policy) पर सवाल खड़े करेंगे.
योजना के तहत अमेरिका (US) ने तिब्बत (Tibet) मामलों पर स्पेशल कोऑर्डिनेटर बनाई गईं उजरा जेया को भारत दौरे पर भेजा है. वे 17 मई को भारत पहुंच चुकी हैं और 22 मई तक यहां रहेंगी. इस यात्रा में वे नेपाल का दौरा भी करेंगी. उजरा जेया अपनी यात्रा में 18 मई को धर्मशाला गईं, जहां पर तिब्बत की निर्वासित सरकार और प्रसिद्ध तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा का आधिकारिक आवास है. उन्होंने तिब्बत के निर्वासित नेताओं और दलाई लामा से काफी देर तक बातचीत की.
उजरा जेया की दलाई लामा और निर्वासित तिब्बती (Tibet) सरकार के साथ बातचीत होने को अमेरिका की चीन नीति में बड़ा बदलाव माना जा रहा है. ऐसा करके अमेरिका ने ड्रैगन को साफ तौर पर संकेत दे दिया है कि वह अब धीरे-धीरे 'एक चीन' नीति (One China Policy) में बदलाव की दिशा में आगे बढ़ना शुरू हो गया है. माना जा रहा है कि उजरा जेया की धर्मशाला यात्रा को भारत का भी मूक समर्थन हासिल है. उसने जिस तरीके से अमेरिकी राजनयिक की धर्मशाला यात्रा को परमीशन दी, उससे साफ है कि वह अब चीन (China) को स्पष्ट संदेश दे रहा है कि बस बहुत हुआ. अब वह भी चीन को उसी की अंदाज में जवाब देने से पीछे नहीं हटेगा.
जियो-पॉलिटिकल एक्सपर्टों के मुताबिक बदलते वैश्विक हालात और चीन की बढ़ती दबंगई ने अमेरिका को अपनी नीतियों में बदलाव को विवश कर दिया है. अभी तक अमेरिका (US) दुनिया के बाकी सभी देशों की तरह 'एक चीन' नीति का पालन करता रहा है. जिसके तहत हॉन्ग कॉन्ग, तिब्बत, ताइवान और शिनजियांग चीन के ही अंग हैं और इन्हें अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता. इसी नीति को वन चाइना पॉलिसी या 'एक चीन' नीति (One China Policy) कहा जाता है.
हालांकि जो बाइडेन के सत्ता में आने के बाद अमेरिका ने अपनी चीन (China) नीति में बदलाव शुरू कर दिए हैं. अमेरिका ने अपने विदेश विभाग की 'कंट्री रिपोर्ट ऑन ह्यूमन राइट्स' में 'तिब्बत चीन का अंग है' वाला हिस्सा हटा दिया है. यानी कि अब वह तिब्बत (Tibet) पर अलग से रिपोर्ट जारी करना शुरू करेगा. चीन पर अमेरिकी (US) रणनीति में ये एक बड़ा बदलाव है, जिसका दुनिया के नजरिए पर गंभीर असर पड़ना तय है. माना जा रहा है कि अमेरिका की तरह दुनिया के बाकी देश भी तिब्बत और ताइवान को चीन से अलग करके देखना शुरू कर देंगे, जिससे चीन की 'वन चाइना पॉलिसी' (One China Policy) को ढहते देर नहीं लगेगी.
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इस मुद्दे पर रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने भी अहम बात कही है. टाइम्स ऑफ इंडिया के एक लेख में उन्होंने कहा कि चीन (China) की चुनौतियों से निपटने के लिए अब भारत को भी खुलकर कुछ नए रचनात्मक कदम उठाने होंगे. इसकी शुरुआत उसे पूर्वी हिमालयी सीमा को 'भारत-तिब्बत' बॉर्डर कहने से करनी चाहिए. भारत को स्पष्ट रूप से कहना चाहिए कि उसने 'वन चाइना पॉलिसी' को मानने की सहमति तब दी थी, जब चीन ने तिब्बत (Tibet) को वास्तविक स्वायतता देने का वादा किया था. अब चूंकि चीन ने अपना वादा नहीं निभाया और उस पर पूरी तरह कब्जा कर लिया. इसलिए इस सहमति को जारी रखने का भी कोई तुक नहीं बनता. चेलानी ने कहा कि ड्रैगन को झटका देने के लिए भारत को भी अमेरिका की तरह तिब्बत पर स्पेशल रिप्रेजेंटेटिव नियुक्त करना चाहिए.
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