भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया है. भारत ने संकेत दिया है कि वो पाकिस्तान की ओर बहने वाले नदियों के पानी के समुचित इस्तेमाल करेगा.
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भारत की वॉटर स्ट्राइक पाकिस्तान को पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसा देगी. मोदी सरकार के जल कूटनीतिक कदम से चिनाब, सतलुज और रावी नदी का पानी देश के काम आएगा. पाकिस्तान को एक बूंद भी अतिरिक्त पानी नहीं मिलेगा. पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि पर सख्त रुख अपनाते हुए अब अपने हिस्से के पानी का अधिकतम उपयोग करने की दिशा में ठोस कदम उठाया है.
केंद्र सरकार अब जम्मू-कश्मीर से निकलने वाली तीन प्रमुख नदियों- चिनाब, सतलुज और रावी का पानी पाकिस्तान जाने से पहले ही भारत में खपत करने के लिए एक 113 किलोमीटर लंबी नहर (canal) बनाने की योजना पर काम कर रही है. जानकारी के मुताबिक, इस नहर को "इंडस-सतलुज लिंक" नाम दिया जा सकता है, जो जम्मू-कश्मीर से शुरू होकर पंजाब, हरियाणा और राजस्थान तक पानी पहुंचाएगी, जिससे विशेष रूप से श्रीगंगानगर जैसे सूखा प्रभावित जिलों को राहत मिलेगी.
वर्तमान में पाकिस्तान को इन नदियों के जरिए सालाना लगभग 33 मिलियन एकड़ फीट पानी मिलता है. हालांकि सिंधु जल संधि (1960) के तहत भारत को पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास, सतलुज) का पूरा हक मिला हुआ है, फिर भी तकनीकी और भौगोलिक वजहों से काफी पानी अब तक बिना उपयोग के पाकिस्तान चला जाता था. अब नई नहर योजना से न केवल पानी की बर्बादी रोकी जाएगी बल्कि भारत इस जल का उपयोग सिंचाई, पीने योग्य जल और बिजली उत्पादन के लिए करेगा.
सूत्रों के अनुसार, इस परियोजना की फिजिबिलिटी स्टडी पहले ही शुरू हो चुकी है और केंद्र सरकार की योजना है कि 2028 तक यह नहर पूरी तरह तैयार हो जाए. यह नहर जम्मू-कश्मीर में बन चुके प्रमुख जल परियोजनाओं जैसे बगलिहार, रटले, और पाकल डुल डैम से निकले पानी को सीधे भारतीय कृषि क्षेत्रों में मोड़ेगी. इसके जरिये भारत अपने हिस्से के जल संसाधनों को न सिर्फ बेहतर तरीके से इस्तेमाल कर पाएगा, बल्कि पाकिस्तान को मिलने वाले अनियंत्रित पानी को भी रोका जा सकेगा.
गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में कहा था, अब भारत अपने हक का पानी पाकिस्तान को नहीं देगा, वह हर बूंद के लिए तरसेगा. उनका यह बयान इस नीति बदलाव की पुष्टि करता है कि भारत अब जल को केवल प्राकृतिक संसाधन नहीं, बल्कि रणनीतिक संपत्ति के रूप में देख रहा है. यह कदम केवल जल बंटवारे की रणनीति नहीं, बल्कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, कूटनीति और आंतरिक विकास की दिशा में एक निर्णायक और दूरदर्शी पहल मानी जा रही है.