DNA: टिकट मिल जाता है.. ट्रेन में घुसना मुश्किल, साल बदले लेकिन रेलवे की हालत नहीं
Advertisement
trendingNow11959434

DNA: टिकट मिल जाता है.. ट्रेन में घुसना मुश्किल, साल बदले लेकिन रेलवे की हालत नहीं

DNA Analysis: कुछ वर्ष पहले तक आपने देखा होगा कि दिवाली, छठ या कहें कि त्योहार के सीजन में रेलवे स्टेशनों और बस स्टेशनों पर जमा होने वाली भीड़ की खबरें दिखाई जाती थीं. खासतौर से रेलवे स्टेशनों पर छठ या दिवाली के मौके पर जमा होने वाली जबरदस्त भीड़ दिखाई देती थी.

DNA: टिकट मिल जाता है.. ट्रेन में घुसना मुश्किल, साल बदले लेकिन रेलवे की हालत नहीं

DNA Analysis: कुछ वर्ष पहले तक आपने देखा होगा कि दिवाली, छठ या कहें कि त्योहार के सीजन में रेलवे स्टेशनों और बस स्टेशनों पर जमा होने वाली भीड़ की खबरें दिखाई जाती थीं. खासतौर से रेलवे स्टेशनों पर छठ या दिवाली के मौके पर जमा होने वाली जबरदस्त भीड़ दिखाई देती थी. हालात ऐसे होते थे कि ट्रेनों में पैर रखने की जगह तक नहीं होती थी. कई बार तो रेलवे स्टेशनों पर पुलिस को लाठियां चलानी पड़ती थीं. यूपी-बिहार जाने वाली ट्रेनों में इतनी अव्यवस्था थी कि लोग Train के Toilet में बैठकर यात्रा करने को मजबूर होते थे.

रेलवे सिस्टम सुधर गया?

लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इस तरह की खबरें आना बंद हो गईं. तो क्या अब हमारा रेलवे सिस्टम इतना बदल गया है, कि त्योहारों में लोग बड़ी आसानी से अपने घर जा पाते हैं? क्या रेलवे स्टेशन पर पहुंचते ही, लोगों को ट्रेन की टिकट या सीट मिल जाती है? आज हम आपको इसी की सच्चाई बताने जा रहे हैं. वंदे भारत ट्रेनों के बारे में आपने सुना होगा. पूरे देश में फिलहाल 34 वंदे भारत ट्रेनें चल रही हैं. आपमें से कई लोगों ने इस Permium Train में यात्रा भी की होगी. वंदे भारत एक ऐसी ट्रेन है, जिसे भारत में हाई स्पीड ट्रेन कहा जाता है. ये ट्रेन 52 सेकेंड में 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पकड़ लेती है. यही नहीं वंदे भारत ट्रेन 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकती है.

वंदे भारत 

वंदे भारत में दो ही Class यानी श्रेणियां हैं, एक है Chair Car...और दूसरी Executive Chair Car...उदाहरण के तौर दिल्ली से वाराणसी जाना हो तो Chair Car की टिकट 1650 रुपये के करीब है, और Executive Chair Car की टिकट 3000 रुपये के करीब है. इस ट्रेन में कई तरह की सुविधाएं हैं, जिनके नाम पर टिकट की कीमत भी ऊंची रखी गई है. रेलवे मंत्रालय की योजना है कि अभी और भी वंदेभारत ट्रेनें, कुछ और रूट पर चलाई जाएंगी, ताकी ज्यादा से ज्यादा लोग इस ट्रेन से यात्रा कर सकें. वंदेभारत, शताब्दी, राजधानी और तेजस जैसी कई Premium Trains, भारत के अलग-अलग शहरों के बीच चल रही हैं.

भारतीयों का भरोसा ट्रेनों पर ज्यादा

लेकिन हम यहां Premium Trains की बात नहीं करेंगे. हम इसके बारे में इसलिए बात नहीं करना चाहते हैं, क्योंकि इन ट्रेनों में टिकट का किराया ही इतना है कि उसमें देश की वो आम जनता नहीं बैठ सकती. जो रिक्शा चला रही है, रेहड़ी पर फल सब्जी बेच रही है, या फिर महीने में 10-15-20 हजार रुपये की नौकरी कर ही है. ये लोग हैं जो दिन में 500 रुपये भी बहुत मेहनत से कमाते हैं. भारत में यात्रा करने का सबसे बड़ा साधन ट्रेन ही है. हमारे देश में हर दिन करीब ढाई करोड़ लोग, ट्रेनों में यात्रा करते हैं. ये संख्या ऑस्ट्रेलिया की कुल आबादी से ज्यादा है. आप ये समझिए कि ऑस्ट्रेलिया से ज्यादा आबादी तो भारत की ट्रेनों में हर रोज़ यात्रा करती है. तो इससे आप समझ सकते हैं कि यात्रा करने के लिए भारतीयों का भरोसा ट्रेनों पर ज्यादा है.

जितना पैसा उतनी सुविधा

भले ही ट्रेनों में प्रथम श्रेणी, AC Class, Sleeper Class, Chair Car, या फिर Second Class General जैसी श्रेणियां बनाई गई हों. लेकिन इस सच्चाई से कोई इनकार नहीं कर सकता है, कि ट्रेन में यात्रा करने वाले यात्रियों की अब केवल दो श्रेणियां हैं. पहली श्रेणी है Premium Trains, या AC में यात्रा करने वालों की. इस श्रेणी वाले लोग हजारों रुपये खर्च करके यात्रा करते हैं. इनकी क्षमता 1500, 2 हजार...3000 या 4000 रुपये का टिकट खरीदने की होती है. ये लोग खरीद सकते हैं. लेकिन दूसरी श्रेणी वो है जिसकी बस इतनी सी चाहत होती है, कि वो अपने त्योहारों पर अपने परिवार के पास रहें. ये लोग दिवाली, छठ जैसे त्योहार, अपने परिवार के साथ मनाना चाहते हैं. इनके पास वैसे तो बहुत ज्यादा पैसे नहीं होते, लेकिन 100..200...500 तक का टिकट ये जैसे तैसे खरीद सकते हैं.हजारों रुपये ये नहीं खर्च कर सकते हैं, शायद इसीलिए रेलवे में इनको सुविधा भी उसी हिसाब से मिलती है.

खत्म नहीं हुई समस्या

इस श्रेणी के यात्रियों के लिए AC, पानी, पंखा तो बहुत बड़ी बात है, सीट ही मिल जाए तो ये गनीमत समझते हैं. ये वो श्रेणी है जिसका सहूलियत तो छोड़िए, सीट दिलाने के बारे में भी रेलवे मंत्रालय कम सोचता है. त्योहार में अपने परिवार के पास जाने की चाहत रखने वाले इन लोगों की ये तस्वीरें, हाल फिलहाल की हैं. ये अलग बात है कि त्योहारों पर रेलवे स्टेशनों पर जमा होने वाली भीड़ देखे हुए आपको बहुत वक्त हो गया होगा. वजह ये है कि इस तरह की खबरें अब कम दिखाई दे रही हैं. लेकिन ऐसा नहीं है ये समस्या खत्म हो गई है.

खचाखच भरीं ट्रेनें

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से बड़ी संख्या में लोग यूपी और बिहार जाते हैं. हर साल त्योहारों के इस Season में यहां जबरदस्त भीड़ होती है. पिछले कुछ वर्षों में खबरें नहीं दिखाई दी, तो इसका मतलब ये नहीं है कि लोगों ने त्योहारों पर घर जाना बंद कर दिया था, या फिर रेलवे ने व्यवस्था ही ऐसी कर दी कि समस्या ही खत्म हो गई. रेलवे स्टेशन पर आज भी उतनी ही भीड़ है, जितनी, त्योहारों के Season में हर साल होती है. समस्या भी वही है, जो वर्षों से चली आ रही है. टिकट सबके पास है, लेकिन ट्रेनों में बैठने की जगह किसी के पास नहीं है. ट्रेनों की संख्या आज भी,यात्रियों के हिसाब से बहुत कम है. हालात देखिए और खुद सोचिए कि क्या आप, इस खचाखच भरी ट्रेन में यात्रा कर सकते हैं.

ट्रेन में घुसना मुश्किल

अगर 1-2 घंटे की यात्रा होती तो भी शायद कोई हिम्मत दिखाकर इस बोगी मेँ घुस जाएगा, लेकिन सोचिए 8-10 या 12 घंटों की यात्रा इस तरह से करना, किसी के लिए भी बहुत मुश्किल है. जिस Second Class बोगी की तस्वीरें आप देख रहे हैं, उनकी संख्या बढ़ाए जाने की बारे में शायद ही विचार किया जाता हो. यही नहीं इस बोगी में जिस श्रेणी के यात्री यात्रा करते हैं, शायद ही रेल मंत्रालय, उनकी सहूलियतों के बारे में सोचता हो. सहूलियत तो दूर की बात है, टिकट के पैसे लेकर, पक्की सीट दिलवा दें, वही बहुत है. दिल्ली ही नहीं, मुंबई में भी यही हालात हैं. बिहार और यूपी जाने वाली ट्रेनों में यहां भी बुरे हाल हैं. ये अलग बात है इनके बारे में कोई बात नहीं करता है. दिवाली और छठ पूजा, अपने परिवार के साथ मनाना, यहां के लोगों के लिए भी एक चुनौती बन जाता है. असली चुनौती जनरल टिकट खरीदना नहीं है, वो तो रेलवे मंत्रालय पैसे लेकर दे ही देता है. असली चुनौती तो टिकट लेने के बाद, ट्रेन में घुसना और फिर सीट पर बैठना है.

किस्मत से मिल रही सीट

जिसको सीट मिल गई वो खुद को किस्मत वाला समझता है. और जिसे नहीं मिली, वो ट्रेन की जमीन पर ही बैठ जाता है, जिनको वहां भी जगह नहीं मिलती, वो टॉयलेट में जाकर बैठ जाते हैं, या फिर बोगी के गेट पर ही जान हथेली पर लेकर डट जाते हैं. यानी रेल मंत्रालय, टिकट का पैसा तो ले लेती है, लेकिन ट्रेन या ट्रेन की सीट दिलवाना, उसकी जिम्मेदारी नहीं है.. इस तरह के हालात देखकर तो यही लगता है. हम आपको यकीन दिलाना चाहते हैं, कि भले ही बड़े-बड़े बैनर, पोस्टर या सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर रेलवे की नई-नई उपल्धियां गिनाई जाती हों. वंदेभारत की तस्वीरों की रील बनाकर आपको गौरवान्वित होने पर मजबूर किया जाता हो. लेकिन देश में रेलवे की ये छिपी हुई सच्चाई आज भी नहीं बदली है.

रेलवे की हालत जस की तस

त्योहारों की सीजन में रेलवे मंत्रालय ने 283 स्पेशल ट्रेनें चलाई हैं. लेकिन रेलवे स्टेशनों पर हालात देखकर ऐसा नहीं लगता, कि लोगों के पास ये Special Trains पहुंच पाई हैं. अब इसे Railway Planning की नाकामी कहें या फिर Railway Managment की नाकामी, कि स्पेशल ट्रेनें चलाने के बावजूद हालात में कोई खास बदलाव नहीं है. इन हालातों को देखकर, ये भी पता चलता है कि रेल मंत्रालय को अंदाजा ही नहीं है कि हर साल कितनी संख्या में यात्री बढ़ रहे हैं. Railway Planning का काम करने वाले लोगों को भी नहीं पता है, कि त्योहारों के Season में कितनी ट्रेनें चलाई जाएं, जिससे यात्रियों को आराम से ट्रेन की सीट मिल जाए.

त्योहारों में खुली रेलवे की पोल

हम First Class या AC वाली श्रेणियों की ही बात नहीं कर रहे हैं, हम तो Second Class General या Sleeper Class में यात्रा करने वालों की भी बात कर रहे हैं. हालांकि त्योहारों के सीज़न में First Class या AC वाली श्रेणियों में भी यात्रा करना मुश्किल हो जाता है. बातें चाहे कितनी भी बड़ी-बड़ी की जाएं, लेकिन सच्चाई ये है कि आज अगर आप किसी ट्रेन में Confirm Ticket पाना चाहें तो शायद वो आपको ना मिले. अगर आप किसी Premium Train में भी टिकट पाना चाहें तो भी टिकट मिलना मुश्किल है, मिलेगा भी तो RAC या Waiting Ticket मिलेगा. टिकट बुकिंग 3 से 4 महीने Advance में चलती है. यानी आज आप मार्च में होने वाली रेल यात्रा का टिकट खरीद सकते हैं. जैसे-जैसे ये समय करीब आता जाएगा, टिकटों की संख्या कम होती जाएगी. जब सारी टिकट बुक हो जाएंगी, तो उसके बाद Reservation Against Cancellation टिकट या Waiting टिकट मिलेगा.

बाकी सारी सुविधाएं छलावा..

रेल में यात्रा करने वाले लोगों को एक बात पता होगी कि Waiting List 20 से लेकर 200 तक होती है. हर श्रेणी के हिसाब से टिकटों पर RAC और Waiting टिकट की संख्या की Limit तय की जाती है. ये टिकट भी Confirm होने तक सीट की Guarantee नहीं होती है. यानी आपने पैसे दे दिए,आपकी किस्मत अच्छी रही तो सीट मिलेगी,नहीं तो नहीं. हालांकि इस तरह का टिकट खरीदने वाले जागरुक यात्रियों को उनके पैसे वापस मिल जाते हैं. रेल यात्रियों को असली सुविधा, सीट का मिलना है. अगर रेलवे ये सुविधा, नहीं दे पा रहा है, ये मानकर चलिए कि बाकी सारी सुविधाएं छलावा हैं.

कन्फर्म टिकट मिलना मुश्किल

वर्ष 2016 से 2021 के बीच यानी पांच वर्षों में भारत में 800 नई ट्रेनें चलाई गई हैं. रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के मुताबिक हर साल 4500 किलोमीटर की नई रेलवे लाइन बिछाई जा रही हैं. बावजूद इसके, यात्रियों को Confirm Ticket मिलना, या सीट मिलना आज भी उतना ही मुश्किल है, जितना एक Generation पहले मुश्किल था.

Breaking News in Hindi और Latest News in Hindi सबसे पहले मिलेगी आपको सिर्फ Zee News Hindi पर. Hindi News और India News in Hindi के लिए जुड़े रहें हमारे साथ.

TAGS

Trending news