‘भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुआ सिंधु जल समझौता दोनों देशों के विवादों के बीच भी बचा रहा.
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नई दिल्ली: पाकिस्तान में इमरान खान के सत्ता संभालने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच अपनी तरह की पहली आधिकारिक बातचीत के तहत द्विपक्षीय स्थायी सिंधु आयोग की बैठक 28-29 अगस्त को लाहौर में आयोजित हो रही है. इस बैठक में दोनों देशों के सिंधु आयुक्त शिरकत करते हैं. 1960 के सिंधु जल समझौते के तहत ऐसी व्यवस्था है जिसमें इस तरह की साल में कम से कम एक बार बैठक क्रमश: भारत और पाकिस्तान में होती रहती है. इससे पहले पिछली बैठक मार्च में भारत में हुई थी.
हालांकि दोनों देशों के बीच मौजूदा दौर में संबंध तनावपूर्ण हैं लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुई सिंधु जल संधि दोनों देशों के बीच हुए विवादों के बावजूद बची हुई है और नदी जल प्रयोग के संबंध में उत्पन्न असहमति को सुलझाने का रूपरेखा मुहैया करा रही है. स्टॉकहोम में 27 अगस्त को पानी पर एक उच्च स्तरीय पैनल को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव अमीना मोहम्मद ने कहा कि पानी सहयोग, साझा विकास और पारस्परिक समर्थन का एक स्रोत बन सकता है. उन्होंने कहा, ‘‘भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुआ सिंधु जल समझौता दोनों देशों के विवादों के बीच भी बचा रहा और नदी जल बंटवारे को लेकर उपजे विवादों को सुलझाने की रूपरेखा तैयार करने में मददगार साबित हुआ.’’
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सिंधु पर संधि
आजादी के पहले पंजाब और सिंध प्रांत के बीच पानी के बंटवारे को लेकर विवाद खड़ा हो गया था. नतीजतन विभाजन के बाद 1947 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक समझौता हुआ. इसकी मियाद 31 मार्च, 1948 तक थी. लिहाजा इसके बाद भारत ने दो प्रमुख नहरों का पानी रोक दिया. इसके कारण पाकिस्तानी पंजाब की 17 लाख एकड़ जमीन पर सूखे के हालात पैदा हो गए. हालांकि बाद में भारत पानी देने पर राजी हो गया.
1949 में अमेरिकी विशेषज्ञ और टेनसी वैली अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलियंथल इस विवाद को राजनीतिक स्तर के बजाय तकनीकी और व्यापारिक स्तर पर सुलझाने की सलाह दी. उन्होंने इस संदर्भ में विश्व बैंक से मदद लेने की सिफारिश भी की. 1951 में प्रधानमंत्री नेहरू ने लिलियंथल को भारत बुलाया. वह उसके बाद पाकिस्तान भी गए. उसके बाद उन्होंने सिंधु नदी के बंटवारे पर एक लेख लिखा. ये लेख विश्व बैंक प्रमुख और लिलियंथल के दोस्त डेविड ब्लैक ने भी पढ़ा और उन्होंने इस मसले पर मध्यस्थता की पेशकश की. उसके बाद करीब एक दशक तक दोनों पक्षों की बैठकों के बाद 19 सितंबर, 1960 को सिंधु जल समझौते पर हस्ताक्षर हुए. इस पर भारत की तरफ से पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान ने हस्ताक्षर किए. पेश हैं इस समझौते के खास बिंदु:
1. सिंधु जल संधि के तहत भारत-पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी और सहायक नदियों के पानी का बंटवार हुआ. इसके तहत 6 नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों के रूप में वर्गीकृत करते हुए उनका बंटवारा किया गया.
2. 3 पूर्वी नदियां-रावी, व्यास और सतुलज के पानी पर भारत को कुछ अपवादों को छोड़कर पूर्ण हक दिया गया. वहीं पश्चिमी नदियों- झेलम, चिनाब, सिंधु के पानी पर पाकिस्तान का हक तय है. हालांकि संधि में इस बात को भी स्पष्ट किया गया है कि भारत में पश्चिमी नदियों के पानी का भी इस्तेमाल कुछ शर्तों के अधीन किया जा सकता है.
3. समझौते के अंतर्गत एक स्थायी सिंधु आयोग की स्थापना की गई. इसके आयुक्त हर साल कम से कम एक बार क्रमश: भारत और पाकिस्तान में मिलेंगे और अपनी परेशानियों एवं समस्याओं पर स्थिति स्पष्ट करेंगे.
4. यदि दोनों में से कोई देश संबंधित नदियों पर कोई प्रोजेक्ट शुरू करता है और उसके दूसरे को इसके डिजाइन पर यदि आपत्ति है तो दोनों पक्षों के आयुक्तों की साझा बैठकों के द्वारा इसको सुलझाने का प्रयास किया जाएगा. यदि स्थायी आयोग समाधान खोजने में विफल रहता है तो सरकारें प्रयास शुरू करेंगी.
5. हालांकि इस समझौते में यह व्यवस्था भी की गई है कि समस्या के समाधान के लिए तटस्थ विशेषज्ञ की मदद ली जा सकती है या कोर्ट ऑफ आर्ब्रिट्रेशन (पंचाट) में जाने का भी रास्ता सुझाया गया है.