प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट स्वच्छ भारत मिशन (Swachh Bharat Mission -SBM) पर पूरी दुनिया की निगाहें रही हैं. स्वच्छ भारत मिशन की शुरूआत अक्टूबर 2014 में हुई थी.
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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के ड्रीम प्रोजेक्ट स्वच्छ भारत मिशन (Swachh Bharat Mission -SBM) पर पूरी दुनिया की निगाहें रही हैं. स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत अक्टूबर 2014 में हुई थी. इस मिशन पर सरकार ने कितना धन खर्च किया और लोगों तक उसका फायदा कितना पहुंचा, इसे लेकर एक अंतर्राष्ट्रीय शोध (International Study) सामने आया है. इस शोध के तहत स्वच्छ भारत मिशन में आई लागत, स्वच्छता मानक में बदलाव और मिशन के तीन सालों में आए आर्थिक और सामाजिक बदलाव पर प्रकाश डाला गया है.
स्वच्छ भारत मिशन की लागत और फायदे पर शोध
इस शोध पत्र को गॉय हटन, निकोलस ऑस्बर्ट, सुमीत पाटिल और अवनी कुमार ने तैयार किया है. जिसका शीर्षक है- स्वच्छ भारत मिशन की लागत और इसके फायदे में परस्पर तुलना (Comparison of the costs and benefits of the Clean India Mission). जिसमें पाया गया है कि हर परिवार को इससे करीब 727 डॉलर की मदद पहुंची. और डायरिया जैसे मामलों में 55 फीसदी, स्वच्छता में 45% का सुधार हुआ.
लागत और प्रति परिवार फायदा
शोध के मुताबिक एक शौचालय बनाने पर औसतन 396 डॉलर का खर्च आया. वहीं, वार्षिक ऑपरेशनल लागत पर 37 डॉलर (आर्थिक) और 94 डॉलर (समय की लागत) का खर्च आया. इस तरह से हर परिवार को 727 डॉलर की मदद पहुंचाई गई.
शोध के मुख्य बिंदु:
सरकारी खर्च से ज्यादा फायदा मिल रहा है
शोध के मुताबिक सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन पर जितने पैसे खर्च किए हैं, वो काफी फायदे का सौदा साबित हुआ है. मौजूदा समय में पहले की तुलना में कई गुना अधिक ओडीएफ को फायदा पहुंचा है. यानि लोगों का खुले में शौच जाना बहुत कम हो गया है और स्वच्छता से संबंधित सुविधाओं में काफी विस्तार हुआ है.
इस शोध में एक बात पर जोर दिया गया है कि सरकार को अब सिर्फ शौचालय निर्माण पर ही जोर नहीं देना है, बल्कि इस बात पर जोर देना है कि इस मिशन के तहत जो लक्ष्य तय किए गए थे, उन्हें बरकरार रखा जाए. यानि कि जो शौचालय बने हैं, उनका रखरखाव बेहतर तरीके से हो. कहीं ऐसा न हो कि लोग कुछ समय बाद स्वच्छता अभियान से मुंह मोड़ लें.