श्रीनगर: सचिवालय से हटाया गया जम्मू-कश्मीर का 'अलग' झंडा, शान से लहरा रहा है तिरंगा
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श्रीनगर: सचिवालय से हटाया गया जम्मू-कश्मीर का 'अलग' झंडा, शान से लहरा रहा है तिरंगा

संशोधन से पहले के अनुच्छेद 370 के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता थी. साथ ही राज्य का झंडा भी अलग था.

जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा ने 27 मई, 1949 को कुछ बदलाव सहित आर्टिकल 306ए (अब आर्टिकल 370) को स्वीकार कर लिया था.

श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 के कुछ प्रावधानों को हटाने और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने के फैसले के बाद अब घाटी में हालात सामान्य हो रहे हैं. हालांकि, अभी भी कुछ क्षेत्रों में सुरक्षा की दृष्टि से प्रतिबंध लगाए गए हैं. इन सबके बीच रविवार को श्रीनगर स्थित सचिवालय की इमारत से जम्मू-कश्मीर का झंडा हटा दिया गया. अब सचिवालय की इमारत पर केवल भारत का झंडा लहराता दिखाई दे रहा है. 

बता दें कि इससे पहले श्रीनगर सचिवालय पर जम्मू-कश्मीर का झंडा और भारत का झंडा एकसाथ फहराते थे. आर्टिकल 370 के कारण जम्मू-कश्मीर का एक अलग झंडा था. वहीं, राज्य में भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान भी अपराध की श्रेणी में नहीं आता था. 

 

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आखिर क्या थी धारा 370? 
जम्मू-कश्मीर का भारत के साथ कैसा संबंध होगा, इसका मसौदा जम्मू-कश्मीर की सरकार ने ही तैयार किया था. जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा ने 27 मई, 1949 को कुछ बदलाव सहित आर्टिकल 306ए (अब आर्टिकल 370) को स्वीकार कर लिया था. फिर 17 अक्टूबर, 1949 को यह आर्टिकल भारतीय संविधान का हिस्सा बन गया था.  

 

संशोधन से पहले के अनुच्छेद 370 के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता थी. साथ ही राज्य का झंडा भी अलग था. जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता था. देश के सुप्रीम कोर्ट के सभी आदेश जम्मू-कश्मीर में मान्य नहीं होते थे. संसद जम्मू-कश्मीर को लेकर सीमित क्षेत्र में ही कानून बना सकती थी. 

रक्षा, विदेश, संचार छोड़कर केंद्र के कानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होते थे. केंद्र का कानून लागू करने के लिये जम्मू-कश्मीर विधानसभा से सहमति ज़रूरी थी. वित्तीय आपातकाल के लिए संविधान की धारा 360 जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होती थी. धारा 356 लागू नहीं होती थी, राष्ट्रपति राज्य का संविधान बर्खास्त नहीं कर सकते थे. कश्मीर में हिन्दू-सिख अल्पसंख्यकों को 16% आरक्षण नहीं मिलता था. जम्मू कश्मीर में 1976 का शहरी भूमि कानून लागू नहीं होता था. धारा 370 की वजह से कश्मीर में RTI और RTE लागू नहीं होता था. जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष नहीं, 6 वर्ष होता था.

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