गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है इंसान को फल की चिंता छोड़कर केवल कर्म पर फोकस करना चाहिए, क्योंकि कर्म का फल क्या हो यह आपके हाथों में नहीं है.
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नई दिल्ली: भगवान श्री कृष्ण को वैसे तो जगदगुरु, सर्वव्यापी न जाने कितने नामों, रूपों से जाना जाता है. लेकिन, नीति के हिसाब से देखें तो वाकई श्री कृष्ण से बड़ा कोई मैनेजमेंट गुरु नहीं है. यही नहीं, श्रीमद्भागवत गीता तो खुद अपने आप में मैनेजमेंट का सबसे बड़ा ग्रंथ है. Janmashtami 2018: श्री कृष्ण से बड़ा कोई मैनेजमेंट गुरु नहीं, सीखें सक्सेस मंत्र
हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्.
तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥
यानी हे कौन्तेय अर्जुन युद्ध करो. यहां भगवान श्रीकृष्ण ने वर्तमान कर्म के परिणाम की चर्चा की है, तात्पर्य यह कि वर्तमान कर्म से श्रेयस्कर और कुछ नहीं है. गीता के एक और श्लोक के जरिए मैनेजमेंट के गुर को समझा जा सकता है.
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन.
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥
यानी केवल कर्म करना हमारे वश में है उसका नतीजा क्या होगा यह हमारे अधिकार में नहीं. कहने का मतलब कि जीवन में हमें केवल कर्म करते रहना है. जीवन के हर मोड़ पर आने वाली बाधाओं को पार कर आगे बढ़ते जाना है. हमारी जीत होगी या हार, यह सोचे बिना आगे बढ़ते रहना है. कृष्ण का यह उपदेश वर्तमान समय में बहुत ही उपयोगी है.
क्रोध पर नियंत्रण
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:.
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
जीवन में सफलता के लिए अपने गुस्से पर काबू रखना बहुत जरूरी है. क्योंकि, इससे बात बनती नहीं बल्कि बिगड़ती ही है. इस श्लोक के जरिए कृष्ण ने अर्जुन को यही समझाया कि, हे अर्जुन क्रोध से केवल बुद्धि का नाश होता है. अभिमन्यु वद्ध के बाद अर्जुन ने क्रोध में जयद्रथ वद्ध करने और सूर्यास्त तक न कर पाने पर अग्नि समाधि लेने का प्रण कर लिया. जिससे पांडवों पक्ष में हाहाकार मच गया. कृष्ण ने बहुत रोका, लेकिन अर्जुन नहीं माने. फिर कृष्ण ने अपनी माया से अपने भक्त अर्जुन की रक्षा की और अर्जुन का प्रण पूरा हुआ.
खुद का मूल्यांकन, पहचाने अपनी शक्ति
कहा जाता है कि हम कितने पानी में हैं, यानी हमारी क्या हैसियत है हम खुद जानते हैं. श्री कृष्ण ने महाभारत युद्ध के समय कई बार अर्जुन के भटकने पर हैसियत, क्षमता याद दिलाई. यही नहीं, भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य के बाणों से पांडव सेना में मचे हाहाकार के बीच श्री कृष्ण अर्जुन को भीष्म, द्रोणाचार्य का सामना करने के लिए कहते हैं. श्री कृष्ण ने कहा हे अर्जुन इन दोनों के बाणों का सामना करने की ताकत पांडवों में तुम्हारे सिवा किसी और में नहीं है. इसलिए तुम अपनी पूरी ताकत से उन पर प्रहार करो.
मास्टर स्ट्रेटजी
किसी भी काम, प्रोजक्ट को पूरा करने, लाइफ में सफलता के लिए एक स्ट्रेटजी का होना बहुत जरूरी है. बिना किसी प्लानिंग के कोई भी काम सफल नहीं हो सकता. यही नहीं कौरवों के पास विशाल सेना, बड़े से बड़े युद्धवीर होने के बाद भी जीत पांडवों की हुई. क्योंकि मास्टर स्ट्रेटजी तो कृष्ण की थी. चाहे भीष्म पितामह की हार का कारण जानने के लिए उनके पास द्रौपदी को भेजना हो. द्रोणाचार्य के वद्ध के लिए भीम के जरिए योजना बनाना. अर्जुन की रक्षा के लिए ब्राह्मण बन कर कवच कुंडल दान में ले लेना. यह सब कृष्ण की ही स्ट्रेटजी थी.
व्यहार कुशलता, शुद्ध आचरण
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:.
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
श्रेष्ठ पुरुष यानी सीनियर व्यक्ति जो-जो आचरण, जो-जो काम करते हैं, दूसरे लोग, उसके जूनियर वैसा ही आचरण, व्यवहार करते हैं. यानी जीवन में तरक्की के लिए व्यहार कुशल, शुद्ध आचरण होना जरूरी है. क्योंकि, आज जो हम सही या गलत जो भी करेंगे. समय आने पर दूसरे लोग, साथी भी वही करेंगे.
अपनों का साथ न छोड़ना
कृष्ण ने पांडवों, खास कर अर्जुन और द्रौपदी, इसके अलावा सुदामा का साथ देकर साबित कर दिया कि मुश्किल से मुश्किल में भी वो अपने भक्तों, मित्रों का साथ नहीं छोड़ते हैं. कृष्ण ने साबित कर दिया कि दोस्ती, आपसी संबंध, नाते रिश्तेदारी में अमीरी गरीबी की कोई जगह नहीं होती.
(यह स्टोरी कमल नयन तिवारी द्वारा लिखी गई है. गीता और भगवान कृष्ण को लेकर उनकी राय को उसी रूप में रखा जा रहा है.)