'बस इस एक ख्वाहिश ने रखा जिंदा', भारत लौटे छात्रों ने Zee News को सुनाई आपबीती
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'बस इस एक ख्वाहिश ने रखा जिंदा', भारत लौटे छात्रों ने Zee News को सुनाई आपबीती

कई छात्र जो MBBS की पढ़ाई करने यूक्रेन गए थे और अब वापस लौट आए हैं, तो उन्होंने जी न्यूज से अपनी आपबीती सुनाई जिसे सुनकर आपके भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे.

'बस इस एक ख्वाहिश ने रखा जिंदा', भारत लौटे छात्रों ने Zee News को सुनाई आपबीती

नई दिल्ली: यूक्रेन और रूस के बीच छिड़ी जंग ने दुनियाभर में चिंता की एक लकीर कायम कर दी है. यूक्रेन में भारतीय छात्र हजारों की संख्या में अभी भी फंसे हुए हैं. भारत सरकार की ओर से सभी फंसे हुए लोगों को वापस लाने की कवायद जारी है. ऐसे में कई छात्र जो MBBS की पढ़ाई करने यूक्रेन गए थे और अब वापस लौट आए हैं, तो उन्होंने जी न्यूज से अपनी आपबीती सुनाई जिसे सुनकर आपके भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे.

  1. दो बेस्ट फ्रेंड ने इंडिया लौटकर सुनाई आपबीती
  2. कॉलेज शुरू होने से पहले ही खत्म कहानी!
  3. –5 डिग्री में बिताईं सड़क पर कई रातें

दो बेस्ट फ्रेंड की आपबीती

मुंबई की रहने वाली धनाश्री और राशी की उम्र 18 साल है और दोनों पांचवी क्लास से अच्छी मित्र हैं. 12वीं पास करने के बाद घर वाले एमबीबीएस की पढ़ाई करने के लिए बाहर नहीं भेजना चाहते थे. लेकिन जब परिवार को पता चला कि दोनों दोस्त साथ जाना चाहते हैं तो दोनों के परिवार ने धनाश्री और राशी को एमबीबीएस करने के लिए 2021 के दिसंबर महीने में यूक्रेन भेज दिया. 

शुरू होने से पहले ही खत्म कहानी!

दोनों बच्चों के क्लासेज फरवरी 28 से शुरू होने वाले थे तभी रूस और यूक्रेन में जंग शुरू हो गई और बच्चों की MBBS की पढ़ाई शुरू होने से पहले ही खत्म हो गई और दोनों बच्चे निराश होकर जान बचाकर वतन वापस लौट आए. धनाश्री ने बताया कि इवनो से निकलने के बाद वो बहुत घंटे की ट्रैवलिंग कर पोलैंड बॉर्डर पहुंचे, कई रातें खुले आसमान के नीचे सड़क किनारे बर्फबारी में गुजारीं. उनके बैग, जैकेट जूते सब कुछ भीड़ में खो गए, लेकिन मम्मी-पापा, भाई बहन के ख्याल ने होसले बुलंद रखे. 

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नंगे पांव ठंड में सफर...

यूक्रेन में बहुत ठंड है, कई जगहों पर भारी बर्फबारी की भी तस्वीरें सोशल मीडिया पर देखी गईं. तापमान माइनस में चला गया है. ऐसे में जो छात्र वहां फसे हुए थे उन्होंने बताया कि किस तरह वो अपने अपने हॉस्टल से भागे तो भीड़ में, भगदड़ में उनका समान भी खो गया. कई छात्रों ने अपने पासपोर्ट और जरूरी दस्तावेजों को भी खो दिया. एक छात्रा ने बताया कि वो किस तरह पोलैंड बॉर्डर पर रात में सो रहीं थी और उनके जूते खो गए. घंटो नंगे पांव ठंड में उन्हें रहना पड़ा, जिसके बाद वो सड़क पर पड़े ओवरसाइज्ड जूते पहनकर वापस अपने देश लौटी.

कई छात्र हो रहे पैनिक अटैक के शिकार

भारत लौटे छात्रों ने बताया कि किस तरह जब यूक्रेन में 24 फरवरी के बाद हालात खराब हो रहे थे तब कई बच्चों को पैनिक अटैक आते थे, वो घंटो बेहोश पड़े रहते थे और रोते रहते थे. छात्रों ने इंडियन एंबेसी और भारत सरकार का धन्यवाद किया कि वो सकुशल घर लौट आए.

'–5 डिग्री में बिताईं सड़क पर कई रातें, एक ब्लैंकेट के सहारे थे कई छात्र'

छात्रों ने बताया कि किस तरह वो अपने अपने हॉस्टल से जल्दी-जल्दी बॉर्डर के लिए निकल कर आए थे. जिसकी वजह से वो ज्यादा सामान भी नहीं ला पाए. खाने का कुछ सामान, जरूरी डॉक्युमेंट्स और मोबाइल लेकर ही निकले थे. ठंड की कई रातें सड़को पर बीतीं. एक ब्लैंकेट में 8 से 10 छात्र सो रहे थे.

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भूखे-प्यासे काटे दिन रात

पिंकी शर्मा थर्ड ईयर की छात्रा हैं, इवानो में मेडिकल की पढ़ाई कर रहीं थीं. इमरजेंसी सायरन जब भी बजता था तो उन्हे बंकर में भागना पड़ता था. पिंकी ने बताया कि वो 5 दिन केवल चॉकलेट के सहारे बंकर में रहीं. उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं था. सिर्फ 4 लीटर पानी में कई छात्रों ने कई दिनों तक गुजारा किया.

इस ख्वाहिश ने रखा जिंदा

पुणे के रहने वाली कादंबरी, मुंबई की पिंकी और नागपुर की सुजेन ने बताया कि जब हमने बॉर्डर पर भगदड़ और यूक्रेनी सेना द्वारा फायरिंग देखी तो एक वक्त ऐसा भी आया जब लगा कि मौत भी मंजूर है, बस एक बार मम्मी-पापा को देख लें. कई दिनों से भूखे प्यासे छात्र बिना सोए जान बचा कर अपने देश लौट आए हैं. छात्रों ने कहा ठंड में हमारे हाथ-पैर सुन्न पड़ जा रहे थे, ऐसा लग रहा था खून जमने लगा है. छात्रों ने बताया कि जैसे हमने यूक्रेन के बॉर्डर को क्रॉस किया और इंडियन एंबेसी के लोगों को हमने देखा तो सुकून की सांस ली कि हम अपने लोगों को देख पा रहे हैं और घर जल्दी पहुंच जाएंगे. 

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'सायरन और विस्फोट की आवाज के डर से नहीं जाते थे वॉशरूम'

भारत लौटे छात्रों ने बताया कि जब 24 तारीख के बाद इवानो और आसपास के जगहों पर विस्फोट की आवाजें फाइटर प्लेन की आवाजें और इमरजेंसी सायरन का शोर होता था तो हमें वॉशरूम जाने में भी डर लगता था कि कहीं हमला ना हो जाए और हम विस्फोट का शिकार ना हो जाएं. ऐसे में बस घर की याद आती थी और लगता था कि किसी तरह से हम इस मौत के कुए से बाहर निकल जाएं.

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