नई दिल्ली: कारगिल युद्ध में जीत हासिल करना भारतीय सेना के लिए असंभव को संभव बनाने जैसा है. युद्ध के दौरान एक तरफ कारगिल की चोटी पर बैठे दुश्मनों की पोजीशन ने उनकी ताकत को 20 गुना तक बढ़ा दिया था, वहीं दूसरी तरह सरकारी आदेशों का बंधन भारतीय सेना की मुश्किलें बढ़ा रही थीं. इन सभी मुश्किलात के बावजूद भारतीय सेना न केवल पाकिस्तानी सेना के हर मंसूबे को कुचलते में कामयाब रही, बल्कि कारगिल की चोटी पर तिरंगा फहराकर 'ऑपरेशन विजय' को सफलता पूर्वक अंजाम तक पहुंचाया.
भारतीय सेना ने असंभव सी दिखने वाली इस जीत को अपने युद्ध कौशल, कुशल रणनीति और अदम्य साहस के बल पर हासिल की थी. कारगिल युद्ध के दौरान, भारतीय सेना ने एक खास रणनीति तैयार की थी, इसी रणनीति में फंसकर पाकिस्तानी सेना लगातार मुंह की खाती चली गई. आइए आज हम आपसे भारतीय सेना की उस रणनीति को साझा करते हैं, जिसने कारगिल युद्ध के रुख को पूरी तरह से बदल दिया. युद्ध के इसी बदले रुख ने हमें कारगिल को चोटियों पर दोबारा भारतीय तिरेंगे को फरानाने का सुअवसर प्रदान किया.
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युद्ध जीतने के लिए भारतीय सेना के पास थे सीमित विकल्प
कारगिल युद्ध का गवाह रहे कैप्टन अखिलेश सक्सेना के अनुसार, कारगिल की चोटियों पर मौजूद पाकिस्तानी सेना को अंजाम तक पहुंचाने के लिए भारतीय सेना के पास सीमित विकल्प मौजूद थे. पहला विकल्प, पहाडि़यों में सीधी चढ़ाई कर दुश्मनों तक पहुंचा जाए. इस विकल्प में सबसे बड़ा खतरा यह था कि दुश्मन ऊंचाई पर पत्थरों की ओट लिए बैठा हुआ है. वह भारतीय सेना की हर गतिविधि को देखते हुए उनको चुन चुन कर अपना निशाना बना सकता था. इस विकल्प का चुनाव करना खुदकुशी को गले लगाने जैसा था.
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केंद्रीय नेतृत्व के इस फैसले से बढ़ गईं भारतीय सेना की मुश्किलें
उन्होंने बताया कि भारतीय सेना के पास दूसरे विकल्प के तौर पर पाकिस्तान की तरफ से जाकर चोटियों पर कब्जा करना था. इस विकल्प पर केंद्रीय नेतृत्व पर रोक लगा दी थी. हमें स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि सेना चाहे तो सीधे पहाडि़यों पर चढ़कर कमांडो अटैक को अंजाम दे सकती है, लेकिन वह किसी भी सूरत में पाकिस्तानी सीमा पर दाखिल नहीं होगी. दरअसल, पाकिस्तानी सेना ने यह मानने से इंकार कर दिया था कि कारगिल की चोटी पर मौजूद घुसपैठिए उसके अपने सैनिक है.
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युद्ध जीतने के लिए अब बचा था सिर्फ यह विकल्प
कैप्टन अखिलेश सक्सेना ने बताया कि पाकिस्तान यह लगातार दबाव बना रहा था कि भारत की सेना उसकी सरदह में दाखिल हुई तो यह युद्ध न्यूक्लियर में भी बदल सकता है. ऐसी स्थिति में भारतीय सेना के पास युद्ध जीतने के लिए सिर्फ एक ही विकल्प बचा था. यह विकल्प कारगिल की चोटियों पर मौजूद पाकिस्तानी सेना पर सामने से अटैक कराना. भारतीय सेना इस विकल्प की कीमत जानती थी, लेकिन अब कोई दूसरा चारा नहीं बचा था. भारतीय सेना को इसी विकल्प के साथ आगे बढ़ना था.
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भारतीय सेना की इस रणनीति ने बदला युद्ध का पांसा
भारतीय सेना ने पहले और आखिरी विकल्प के साथ आगे बढ़ने के फैसले को स्वीकार कर लिया. इस फैसले के बाद भारतीय सेना ने एक रणनीति तैयार की. यह रणनीति दो तरफ से हमला करने की थी. जिसमें एक हमला असली और दूसरा हमला दुश्मन को धोखा देने के लिए था. भारतीय सेना की यही चाल कामयाब रही. युद्ध के दौरान भारतीय सेना एक छोर से भारी गोलीबारी के साथ अपनी टुकडि़यों को आगे बढ़ाती थी. जब तक पाकिस्तानी सेना का ध्यान इन टुकडि़यों पर रहता, इसी बीच भारतीय सेना की दूसरी टीम दूसरी तरह से दुश्मनों की तरफ बढ़ जाती थी. इसी कारगर रणनीति के जरिए भारतीय सेना ने पाकिस्तानियों को पटखनी देता रहा.