कारगिल विजय दिवस EXCLUSIVE: दुश्मन का चौथा बंकर हुआ तबाह, तभी गोली लेफ्टिनेंट मनोज के माथे को भेद गई...
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कारगिल विजय दिवस EXCLUSIVE: दुश्मन का चौथा बंकर हुआ तबाह, तभी गोली लेफ्टिनेंट मनोज के माथे को भेद गई...

सुबेदार संत बहादुर राय उस रात की बात को याद करते हुए बताते हैं कि हैंड ग्रेनेड फेंकते हुए लेफ्टिनेंट मनोज पांडे ने सबसे पहले खालूबार से दुश्मन का सफाया किया. फिर आमने-सामने की लड़ाई में उन्होंने एक के बाद एक तीन बंकर उड़ा दिए. इस दौरान वह बुरी तरह घायल हो चुके थे.

परमवीर चक्र लेफ्टिनेंट मनोज पांडे के अदम्य साहस को पूरा देश सैल्यूट करता है.

नई दिल्ली: कारगिल (Kargil)में भारतीय सेना ने सीमा पार से आए दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे, इस घटना को 20 साल हो चुके हैं. यह वह ऐतिहासिक पल जब कभी जेहन में आता है तो हर भारतीय का सीना अपनी सेना के लिए गर्व से चौड़ा हो जाता है. जुलाई भारतीय सेना के लिये बहुत ही गर्व करने वाला महीना है. 20 वर्ष पहले इसी महीने में भारत ने कारगिल (Kargil)जंग जीती थी और पाकिस्तान के साथ पूरी दुनिया को ये दिखा दिया था कि हमारे देश की एक इंच ज़मीन पर भी दुश्मन बुरी नज़र नहीं डाल सकता.

पहाड़ों पर कब्जा जमाए थे घुसपैठिए
13 जून 1999 को सूचना मिली की 5 या 6 नहीं बल्कि करीब 700 से 800 घुसपैठिये हैं, जो नियंत्रण रेखा पार करके भारत के इलाक़े में पहाड़ों पर क़ब्ज़ा कर चुके हैं. भारतीय जवानों के लिए स्थिति कठिन थी. घुसपैठिए ऊंची पहाड़ियों पर भारी हथियार, गोला बारूद लेकर बैठे थे और भारतीय जवानों के लिए गोलियों की बौछार के बीच में पहाड़ियों की चोटियों पर पहुंचना बेहद चुनौतीपूर्ण था.

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गोरखा रेजीमेंट ने सबसे पहले संभाला मोर्चा
इन इलाकों को खाली कराने का जिम्मा भारतीय सेना की सबसे आक्रामक रेजिमेंट 'गोरखा रेजीमेंट' को सौंपा गया. इसी रेजिमेंट का हिस्सा थे लेफ्टिनेंट मनोज पांडे. सियाचिन में तैनाती के बाद मनोज छुट्टियों में घर जाने वाले थे, लेकिन कारगिल (Kargil)युद्ध शुरू होने की वजह से उन्होंने अपनी छुट्टियां रद्द कराई. लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय को 3 जुलाई को बड़ी जिम्मेदारी देते हुए खालूबार पोस्ट को दुश्मनों से छुड़ाने का टास्क दिया गया. 

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परमवीर चक्र लेफ्टिनेंट मनोज पांडे ने दिखाई अदम्य साहस
सूबेदार संत बहादुर राय, गणेश प्रधान और लाल कुमार सुनुनवार, तीनों 11 गोरखा राइफल्स का हिस्सा थे. तीनों मनोज पांडेय की उस यूनिट में शामिल थे, जिसने खालूबार को जीतने में बड़ी भूमिका निभाई थी. आज इन तीनों ने कारगिल (Kargil)लडाई के बाद पहली बार किसी टीवी न्यूज चैनल के कैमरे पर उस दिन की लड़ाई का अपना First hand account बताया, ZEE न्यूज के कैमरे पर उन्होंने बताया कि कैसे उस रात खालुबार की पहाड़ी पर हुई जंग में उनके कमांडिग अफसर परमवीर चक्र लेफ्टिनेंट मनोज पांडे ने वीरता और पराक्रम से पाकिस्तानी फौज के बंकर्स को एक एक करके तबाह और बर्बाद कर दिया और वीरगति को प्राप्त हुए.

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आधी रात को पलटन लेकर बढ़ गए थे लेफ्टिनेंट मनोज
11 गोरखा राइफल के तीनों जवानों ने ZEE न्यूज को बताया कि कैसे दुश्मन लगभग 16 हजार फीट ऊंची चोटियों पर बैठा था और मिशन को पूरा करने के लिए उनके साहब लेफ्टिनेंट मनोज पांडे ने आधी रात को अपनी पलटन के साथ टारगेट की तरफ बढ़ रहे थे. क्योंकि ऊंचाई का फायदा उठाकर दुश्मन इनकी हर हरकत पर नजर बनाए हुए था और दुश्मनों को जैसे ही इनके मूवमेंट के बारे में पता चला उन्होंने फायरिंग शुरू कर दी, लेकिन हमलोग अपने साहब के कमांड में बिना डरे, हमले का जवाब देते हुए आगे बढ़ते रहे. 

बुरी तरह घायल हो गए थे लेफ्टिनेंट मनोज
सुबेदार संत बहादुर राय उस रात की बात को याद करते हुए बताते हैं कि हैंड ग्रेनेड फेंकते हुए लेफ्टिनेंट मनोज पांडे ने सबसे पहले खालूबार से दुश्मन का सफाया किया. फिर आमने-सामने की लड़ाई में उन्होंने एक के बाद एक तीन बंकर उड़ा दिए. इस दौरान वह बुरी तरह घायल हो चुके थे. दुश्मन की गोलीबारी से लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय का कंधा और पैर बुरी तरह जख्मी हो चुका था. लेकिन वह आगे बढ़ते रहे. जैसे ही उन्होंने दुश्मन के चौथे बंकर को उड़ाया सामने से दनदनाती हुई एक गोली उनके माथे को भेद गई. 

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मनोज पांडेय के आखिरी शब्द थे 'ना छोड़नू'
कैप्टन मनोज शहीद तो हो गए, लेकिन खालूबार पोस्ट से पाकिस्तानियों को खदेड़ दिया, साथ ही वो ये भी बताते हैं कि शहीद होने से पहले लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय के आखिरी शब्द थे 'ना छोड़नू'. नेपाली में कह गए इस शब्द का मतलब था किसी को मत छोड़ना. लेफ्टिनेंट मनोज पाडें को उनकी अदम्य वीरता और साहस के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.

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पीछे हटने से पहले पाकिस्तानी बिछा गए थे बारूदी सुरंग
इतिहास गवाह है कि भारतीय फ़ौज ने कहां कब हर मानी है. कम वक्त में ही बड़ी संख्या में सैनिकों को बटालिक सेक्टर में उतारा गया. एक सटीक, फूल प्रूफ और बड़ा प्लान तैयार किया गया. भारतीय सेना की सात बटालियन्स को खालूबार रेंज के अलावा बाकी तीन पहाड़ों को जीतने के लिये भेज दिया गया. बटालिक के इन पहाड़ों पर आज भी बारूदी सुरंग फैली हुई हैं. पाकिस्तानी सैनिकों ने मारे जाने या यहां से पीछे हटने से पहले पूरे इलाक़े में कई जगह बारूदी सुरंग बिछा दी थीं. इसलिये यहां हर क़दम ख़तरे से भरा हुआ है. हमे भी सेना की तरफ़ से साफ़ निर्देश थे कि बताये गये रास्ते या पगडंडी छोड़कर ना चलें. 

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वायुसेना ने युद्ध में की थी काफी मदद
कारगिल (Kargil)युद्द में बटालिक सेक्टर की जंग में भारतीय वाय़ुसेना का योगदान हमेशा हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया. 24 जून 1999 को भारतीय वायुसेना के मिराज विमानों ने दुश्मन के एक अहम ठिकाने, जो पाकिस्तान ने बटालिक के मंथोडालो में था. मिराज से ली गई तस्वीरों में साफ दिख रहा था. दुश्मन की फौज ने मंथोडालो में अपने लिए बड़ा लौजिस्टिक सपोर्ट बेस बनाया हुआ था. ये उनकी फौज का एक बड़ा सप्लाई बेस भी था. भारतीय़ वायुसेना ने इन इनपुट के आधार पर समय बर्बाद किए बगैर अपने लड़ाकू विमानों से हमला किया और दुश्मन के इस सप्लाई चेन बेस को पूरी तरह बर्बाद करके उसकी कमर तोड़ दी थी.

भारत की रगों में कारगिल (Kargil)वाला जोश आज भी ज़िंदा है. 26 जुलाई को पूरा देश इस जीत की 20वीं सालगिरह मनाएगा. ऑपरेशन विजय की शौर्य गाथा से जुड़ी कुछ और अनदेखी, और अनसुनी बातों का हम आगे भी विश्लेषण जारी रखेंगे.

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