अदालतों बहुत से लोग होंगे जिन्हें झूठ बोला होगा, लेकिन अगर कोर्ट में बैठे जज साहब ही झूठ बोलने लगें तो क्या होगा? हाल ही में एक ऐसी हा मामला सामने आया है. जिसके बाद कार्रवाई भी शुरू हो गई है.
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Karnataka Court: अक्सर देखा गया है कि छोटी अदालतों में फैसले सुनाते समय बड़ी अदालतों के ज़रिए दिए गए फैसलों की मिसाल दी जाती है. कई बार वकील, तो कई बार जजों को ऐसा करते हुए देखा गया है. ये बहुत आम बात है लेकिन जरा सोचिए कि अगर कोई जज सुप्रीम कोर्ट के नाम से ऐसे फैसलों का जिक्र भरी अदालत में करे जो कभी सुप्रीम कोर्ट ने सुनाए ही नहीं, तो क्या होगा? हाल ही में एक ऐसा मामला कर्नाटक में सामने आया है.
कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक ट्रायल कोर्ट जज के खिलाफ जांच करने का निर्देश दिया है. जज पर आरोप है कि उन्होंने अपने आदेश में ऐसे फैसलों का हवाला दिया, जो हकीकत में कभी सुप्रीम कोर्ट या किसी अन्य अदालत में दिए ही नहीं गए थे. जस्टिस आर देवदास ने कहा कि सिटी सिविल कोर्ट के जज ने दो ऐसे फैसलों का जिक्र किया, जो न्यायालयों के रिकॉर्ड में मौजूद ही नहीं हैं. वादी पक्ष के सीनियर वकील ने भी साफ किया कि उन्होंने ऐसे किसी भी फैसले का हवाला नहीं दिया था. इस गंभीर मामले की जांच बहुत जरूरी है और इसे चीफ जस्टिस के सामने रखा जाएगा ताकि उचित कार्रवाई की जा सके.
यह मामला Sammaan Capital Limited से जुड़ा है, जो एक नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनी है. कंपनी ने ट्रायल कोर्ट के 25 नवंबर 2024 के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. ट्रायल कोर्ट ने Mantri Infrastructure Private Limited के ज़रिए दाखिल मामले को वापस करने की उनकी याचिका को खारिज कर दिया था. याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि ट्रायल कोर्ट ने तीन ऐसे न्यायिक फैसलों का हवाला दिया, जो हकीकत में कभी दिए ही नहीं गए थे.
M/s. Jalan Trading Co. Pvt. Ltd. बनाम Millenium Telecom Ltd. (Civil Appeal No. 5860/2010, सुप्रीम कोर्ट).
M/s. Kvalrner Cimentation India Ltd. बनाम M/s. Achil Builders Pvt. Ltd. (Civil Appeal No. 6074/2018, सुप्रीम कोर्ट).
M/s. S.K. Gopal बनाम M/s. UNI Deritend Ltd. (CS (Comm) 1114/2016, दिल्ली हाई कोर्ट).
हाई कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट को वादी के ज़रिए दायर केस को वापस कर देना चाहिए था, क्योंकि वादी ने पहले एक Commercial Suit दाखिल किया था लेकिन उसे वापस लेने से पहले कोर्ट से अनुमति नहीं ली थी. इसके अलावा वादी सिर्फ उन्हीं नोटिसों से प्रभावित थे, जो प्रतिवादियों ने जारी किए थे, लेकिन उन्होंने ऐसे पक्षों को भी शामिल कर लिया जिन्हें कोई नोटिस नहीं मिला था. कोर्ट ने इसे एक चालाकी भरी रणनीति करार दिया और कहा कि वादी ने जानबूझकर ऐसे कोर्ट में मामला दायर किया, जिसे इस पर सुनवाई करने का अधिकार नहीं था.
हाई कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट को Order VII Rule 10 के तहत मामला वापस करना चाहिए. हालांकि अगर वादी Rule 10A के तहत आवेदन देते हैं, तो ट्रायल कोर्ट को इस पर जरूरी आदेश पास करना होगा. अब यह मामला चीफ जस्टिस के सामने रखा गया है, ताकि संबंधित जज के खिलाफ जांच और आवश्यक कार्रवाई की जा सके.