नई दिल्‍ली: सिख समुदाय की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करते हुए पाकिस्तान के पंजाब प्रांत स्थित करतारपुर साहिब गुरुद्वारा (Kartarpur Sahib) अब से दो सप्ताह के भीतर भारतीय श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जाएगा. पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के नरोवाल जिले में स्थित करतारपुर साहिब गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक के पास की सीमा से महज 4.5 किलोमीटर की दूरी पर है. सवाल उठता है कि पवित्र स्थल इतना महत्वपूर्ण क्यों है कि भारतीय श्रद्धालु पिछले 70 वर्षों से तीर्थयात्रा की सुविधा की मांग कर रहे हैं?


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1. इसका जवाब यह है कि वास्तव में इसका नाम गुरुद्वारा दरबार साहिब है. ऐसी मान्यता है कि सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी ने अपना अंतिम समय यहीं बिताया था. समुदाय के लोगों के लिए यह पवित्र स्थलों में से एक है.


2. रावी नदी के तट पर स्थित इस गुरुद्वारे को इसलिए बनाया गया था क्योंकि गुरु नानक देव जी अपने मिशनरी काम (प्रचारक कार्य) के बाद यहां आकर बसे थे और 1539 में अपने निधन तक 18 साल उन्होंने यहीं बिताए.


3. सिख समुदाय के मामलों को नियंत्रित करने वाले निकाय 'शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी' (एसपीजीसी) की आधिकारिक वेबसाइट पर लिखे एक पोस्ट के अनुसार, जीवनभर की यात्रा और जनमानस तक धर्म का प्रचार-प्रसार करने के बाद गुरु नानक देव जी करतारपुर में रावी नदी के किनारे अपने खेतों में बस गए.


4. यहां गुरु नानक देव जी ने एक तीर्थयात्री की पोशाक का त्याग किया और गृहस्थ जैसे वस्त्र धारण किए. इसके बाद उनके दिन खेती के साथ-साथ सुबह व शाम सर्वशक्तिमान परमात्मा की प्रार्थना व भजन-गायन के लिए समर्पित रहे.


5. उल्‍लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 9 नवंबर को करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन करेंगे और पाकिस्तान के पंजाब प्रांत स्थित करतारपुर साहिब गुरुद्वारा जाने वाले श्रद्धालुओं के पहले जत्थे को रवाना करेंगे. गृह मंत्रालय ने मंगलवार को यह जानकारी दी. गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाले सिख प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा होंगे और उसी दिन पवित्र स्थल के दर्शन कर लौट आएंगे.


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पहले से विवाद में रहा है करतारपुर कॉरिडोर
हालांकि करतारपुर कॉरिडोर अपने उद्घाटन से पहले पाकिस्तान के साथ विवादों में फंस गया है. ऐसा पाकिस्तान द्वारा पवित्र सिख तीर्थस्थल को शुल्क मुक्त नहीं करने के रुख की वजह से है. दोनों पक्षों ने कई दौर की बातचीत कर तौर-तरीकों पर चर्चा की और अधिकांश मुद्दों को सुलझा लिया लेकिन एक विशेष मामले पर पाकिस्तान अडिग रहा और इससे दोनों देशों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर करने में देरी हो रही है.


पाकिस्तान ने हर तीर्थयात्री पर 20 डॉलर का सेवा शुल्क कर लगाने का फैसला किया है और भारत उससे ऐसा नहीं करने का आग्रह कर रहा है, क्योंकि उनमें ऐसी समझ बनी थी कि तीर्थयात्रा मुफ्त होगी. इस विवाद से समझौते पर हस्ताक्षर होने में देरी हो गई है, जिस पर 20 अक्टूबर को हस्ताक्षर होना तय था, लेकिन पाकिस्तान के अड़ियल रवैए पर भारत की निराशा के बावजूद अब इस पर बुधवार को हस्ताक्षर होगा.


चूंकि, समझौते पर हस्ताक्षर नहीं हो सका तो तीर्थयात्रा के लिए ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया 20 अक्टूबर से शुरू नहीं हो सकी, जिसकी योजना बनी थी. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने सोमवार को कहा, "पाकिस्तान का हर तीर्थयात्री से प्रति यात्रा के लिए 20 डॉलर सेवा शुल्क लगाने पर जोर बना हुआ है."


उन्होंने कहा कि यह निराशाजनक है, जब भारत के तीर्थयात्रियों की यात्रा के ज्यादातर तत्वों पर समझ बन गई है. कुमार ने एक बयान में कहा, "समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए सहमत होते हुए पाकिस्तान सरकार से एक बार फिर तीर्थयात्रियों पर सेवा शुल्क लगाने पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया गया है. भारत अपने अनुसार किसी भी समय समझौते में संशोधन कर सकता है."


(इनपुट: एजेंसी आईएएनएस)