कश्मीर में 'दो प्रधान...' का विरोध करने वाले श्यामा प्रसाद मुखर्जी का एक रिकॉर्ड कोई नहीं तोड़ पाया
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कश्मीर में 'दो प्रधान...' का विरोध करने वाले श्यामा प्रसाद मुखर्जी का एक रिकॉर्ड कोई नहीं तोड़ पाया

शेष भारत के मुकाबले जम्मू एंड कश्मीर को कुछ विशेष अधिकार देने वाली धारा 370 पर पहली चोट डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने ही की थी. उनका जन्म 6 जुलाई को पश्चिम बंगाल में हुआ था.

कश्मीर में 'दो प्रधान...' का विरोध करने वाले श्यामा प्रसाद मुखर्जी का एक रिकॉर्ड कोई नहीं तोड़ पाया

नई दिल्ली : भाजपा के प्रमुख बड़े नेताओं में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सबसे पहले आते हैं. कश्मीर में धारा 370 को खत्म करने या उस पर बहस के मुद्दे का इस्तेमाल भाजपा चुनावी वादे के रूप में करती रही है. यही धारा है जो घाटी को भारत का हिस्सा होते हुए भी कुछ अतिरिक्त अधिकार देती है. इस पर सबसे पहली चोट डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने की थी. उन्होंने उस समय कश्मीर में दो प्रधानमंत्री का विरोध किया. जम्मू-कश्मीर में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने धारा 370 का विरोध शुरू किया. उन्होंने एक देश में दो विधान, एक देश में दो निशान, एक देश में दो प्रधान- नहीं चलेंगे नहीं चलेंगे जैसे नारे दिए. डाॅ. मुखर्जी सिर्फ 33 साल की उम्र में कुलपति बन गए थे. ये रिकॉर्ड आज तक कायम है.

डॉ. मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई, 1901 को एक बंगाली परिवार में हुआ था. उनकी माता का नाम जोगमाया देवी मुखर्जी था और पिता आशुतोष मुखर्जी बंगाल के एक जाने-माने व्यक्ति और कुशल वकील थे. डॉ. मुखर्जी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्रथम श्रेणी में 1921 में प्राप्त की थी. इसके बाद उन्होंने 1923 में एम.ए. और 1924 में बी.एल. किया. वे 1923 में ही सीनेट के सदस्य बन गये थे. उन्होंने अपने पिता की मृत्यु के बाद कलकता हाईकोर्ट में एडवोकेट के रूप में अपना नाम दर्ज कराया. बाद में वे सन 1926 में 'लिंकन्स इन' में अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड चले गए और 1927 में बैरिस्टर बन गए.

सबसे कम उम्र के कुलपति, रिकॉर्ड आज भी कायम
डॉ. मुखर्जी 33 वर्ष की आयु में कलकत्ता विश्वविद्यालय में विश्व के सबसे कम उम्र के कुलपति बनाये गए थे. आज तक भारत में इतनी कम उम्र में कोई भी कुलपति नहीं बन पाया है. उनके पिता भी इस पद पर रह चुके थे. 1938 तक डॉ. मुखर्जी इस पद पर रहे. उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान अनेक सुधार कार्य किए तथा 'कलकत्ता एशियाटिक सोसायटी' में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया. वे 'इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ़ साइंस', बेंगलुरु की परिषद एवं कोर्ट के सदस्य और इंटर-यूनिवर्सिटी ऑफ़ बोर्ड के चेयरमैन भी रहे.

कलकत्ता यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधित्व करते हुए श्यामा प्रसाद मुखर्जी कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में बंगाल विधान परिषद के सदस्य चुने गए थे. 1937-1941 में 'कृषक प्रजा पार्टी' और मुस्लिम लीग का गठबन्धन सत्ता में आया. इस समय डॉ. मुखर्जी विरोधी पक्ष के नेता बन गए. वे फज़लुल हक़ के नेतृत्व में प्रगतिशील गठबन्धन मंत्रालय में वित्तमंत्री के रूप में शामिल हुए, लेकिन उन्होंने एक वर्ष से कम समय में ही इस पद से त्यागपत्र दे दिया. बाद में वह 'हिन्दू महासभा' में शामिल हुए और 1944 में वे इसके अध्यक्ष नियुक्त किये गए.

नेहरू के मंत्रिमंडल में शामिल हुए
आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने डॉ. मुखर्जी उन्हें अंतरिम सरकार में उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री के रूप में सम्मिलित किया था. डॉ. मुखर्जी ने लियाकत अली ख़ान के साथ दिल्ली समझौते के मुद्दे पर 6 अप्रैल, 1950 को मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया.  इसके बाद उन्होंने 21 अक्तूबर, 1951 को दिल्ली में 'भारतीय जनसंघ' की नींव रखी और इसके पहले अध्यक्ष बने. 1952 के चुनावों में भारतीय जनसंघ ने संसद की तीन सीटों पर विजय प्राप्त की, जिनमें से एक सीट पर डॉ. मुखर्जी जीतकर आए.  

आजादी के बाद भारत में विलय के साथ ही कश्मीर को विशेष अधिकार दिए गए थे. उस समय जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा और अलग संविधान था. वहां मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री कहा जाता था. डॉ. मुखर्जी ने इसका विरोध करते हुए नारा दिया कि- एक देश में दो निशान, एक देश में दो प्रधान, एक देश में दो विधान नहीं चलेंगे. इसी बात का विरोध करते हुए वह जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करने पर उन्हें 11 मई, 1953 में शेख़ अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार ने हिरासत में ले लिया. तब कश्मीर में प्रवेश करने के लिए एक प्रकार से पासपोर्ट के समान परमिट लेना पडता था. डॉ. मुखर्जी बिना परमिट लिए कश्मीर गए थे. वहां गिरफ्तार होने के कुछ दिन बाद ही 23 जून, 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई. उनकी मृत्यु का खुलासा आज तक नहीं हो सका है.

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