किसान आंदोलन (Kisan Andolan) से जुड़े लोगों का मानना है कि पंजाबी किसानों का भाईचारा आंदोलन को ताकत दे रहा है. भारतीय किसान यूनियन नेता पाल माजरा ने बताया कि आंदोलन चलाने के लिए पंजाब (Punjab) से हर कोई दिल्ली मोर्चा (Delhi Morcha) में योगदान दे रहा है.
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नई दिल्ली: कोरोना महामारी (Corona Pandemic) के बीच दिल्ली की सीमाओं (Delhi Borders) पर बीते एक महीने से किसान जमे हुए हैं. केंद्र सरकार द्वारा लागू तीन कृषि कानूनों (Farm Bill) के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसान 26 नवंबर से सिंघु, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर डेरा डाले हैं. ऐसे में सवाल ये कि खेतीबारी छोड़ कर उतरे किसानों को कहां से ताकत मिल रही है.
इस सवाल पर तरह-तरह के कयास लग चुके हैं. किसान आंदोलन (Kisan Andolan) से जुड़े लोगों का मानना है कि पंजाबी किसानों का भाईचारा आंदोलन को ताकत दे रहा है. भारतीय किसान यूनियन नेता पाल माजरा ने बताया कि आंदोलन चलाने के लिए पंजाब (Punjab) से हर कोई दिल्ली मोर्चा (Delhi Morcha) में योगदान दे रहा है.
माजरा के मुताबिक पंजाब के गावों से जब भी कोई दिल्ली मोर्चे पर रवाना होता है तो पूरे गांव के लोग आर्थिक हैसियत के हिसाब से आर्थिक योगदान भेजते हैं. बकौल पाल माजरा आर्थिक सहयोग देने के अलावा हर किसान परिवार का कोई न कोई सदस्य रोज दिल्ली मोर्चा के लिए पहुंचता है. यही वजह है कि महीने भर से दिल्ली की सीमा पर लाखों लोगों का जमावड़ा लगा हुआ है.
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पंजाब के किसान गुरविंदर सिंह से जब पूछा कि क्या आंदोलन से खेती का काम प्रभावित नहीं हो रहा है तो उन्होंने कहा, 'आंदोलन से पंजाबियों में भाई-चारा बढ़ गया है. आंदोलन 26 नवंबर से शुरू हुआ जिससे पहले गेहूं की बुवाई हो चुकी थी, अब तो एक पानी भी गेहूं में पड़ चुका है. बुवाई के साथ खाद और पानी का काम समय पर चल रहा है. लोग एक-दूसरे का हाथ बटा रहे हैं. महिलाओं ने भी खेती का काम संभाल रखा है.
पंजाब सरकार (Punjab Government) के कृषि विभाग के मुताबिक पिछले साल सूबे में 35.21 लाख हेक्टेयर जमीन पर गेहूं की बुवाई हुई. वहीं इस साल 34.78 लाख हेक्टेयर भूमि में गेहूं बोया गया. विभागीय अधिकारी ने ये भी कही कि इस साल गेहूं का कुछ रकबा आलू और दूसरी फसलों में गया है. पंजाब में रबी की फसल का कुल रकबा 40.7 लाख हेक्टेयर है. वहीं अन्य फसलों में जौ, चना और मक्का शामिल है.
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अधिकारी ने बताया कि किसानों के आंदोलन की शुरुआत से पहले ट्रेन नहीं चलने से उर्वरक की आपूर्ति में कठिनाई आई थी, लेकिन अब कोई दिक्कत नहीं है.एक अन्य अधिकारी ने बताया कि धान की बिक्री पहले ही हो चुकी है और बागवानी की जो फसलें है उनकी सप्लाई बाजारों में लगातार हो रही है.
यही स्थिति हरियाणा में भी है. करनाल के किसान हरपाल सिंह बताते हैं कि खेती-किसानी के काम पर किसान आंदोलन का कोई असर नहीं है क्योंकि हर किसान परिवार के सदस्य बारी-बारी से दिल्ली मोर्चा के लिए पहुंच रहे हैं और जो सदस्य गांवों में रहते हैं वो खेती का काम संभालते हैं.
(इनपुट आईएएनएस से)
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