जानिए, सबसे पहले किसने किया था 'टुकड़े टुकड़े गैंग' शब्द का इस्तेमाल
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जानिए, सबसे पहले किसने किया था 'टुकड़े टुकड़े गैंग' शब्द का इस्तेमाल

टुकड़े टुकड़े गैंग इतना बेचैन इसलिए है क्योंकि कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद और राम मंदिर पर फैसला आने के बाद भी देश में कोई गड़बड़ नहीं हुई.

(प्रतीकात्मक फोटो)

नई दिल्ली: आज से 8 साले पहले यानी वर्ष 2012 में एक आरटीआई डालकर सरकार से ये पूछा गया था कि महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता की उपाधि देने का आधार क्या है. तब सरकार के पास इसका कोई जवाब नहीं था और सरकार ने कहा था कि संविधान में किसी को ऐसी कोई उपाधि देने का प्रावधान नहीं है. इसके बाद वर्ष 2013 में गृह मंत्रालय से पूछा गया था कि देश के लिए फांसी पर चढ़ने वाले भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को शहीद घोषित किया गया है या नहीं इसके जवाब में सरकार ने कहा था कि सरकार के पास इससे जुड़ा कोई रिकॉर्ड नहीं है.

लेकिन सच ये है कि महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहना या भगत सिंह को शहीद कहने का विचार किसी आरटीआई का मोहताज नहीं है. ये देश की भावनाओं से जुड़ी बात है और इन महान लोगों को ये उपाधि देशभक्ति वाली विचारधारा के आधार पर दी गई है. हाल ही में गृहमंत्रालय में एक RTI डालकर पूछा गया था कि टुकड़े टुकड़े गैंग क्या है और इसके सदस्य कौन हैं. 

इसी तरह टुकड़े-टुकड़े गैंग भी एक विचारधारा है जिसे किसी आरटीआई से साबित नहीं किया जा सकता. ये उन लोगों का गुट है जो देश को तोड़ने का सपना देखते हैं. ये उन लोगों का गुट है जो पिछले 70 वर्षों से एक ही पार्टी और एक ही परिवार को खुश करने में व्यस्त है और इसी परिवार के दरबार में हाज़िरी लगाकर इन्होंने सेलिब्रेटी स्टेटस हासिल किया है.बात बात पर देश का विरोध करना एक रोग है और इसके रोगी के कुछ लक्षण होते हैं. 

आपको बता दें कि Zee News ने वर्ष 2016 में इन लोगों के लिए टुकड़े टुकड़ै गैंग और अफज़ल प्रेमी गैंग जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया था. इसके अलावा हमने आपका परिचय डिजाइनर पत्रकार शब्द से भी कराया था. पिछले 4 वर्षों में ये तीनों शब्द जबरदस्त रूप से हिट हो चुके हैं. और हो सकता है कि आने वाले दिनों में इन शब्दों को किसी डिक्शनरी में भी जगह मिल जाए. टुकड़े-टुकड़े गैंग शब्द की लोकप्रियता का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह भी अपनी कई रैलियों में इस शब्द का इस्तेमाल कर चुके हैं. राजनीतिक कार्यक्रमों में इन शब्दों का जिक्र कैसे आता है इसकी एक झलक भी आज आपको देखनी चाहिए.

टुकड़े टुकड़े गैंग इतना बेचैन इसलिए है क्योंकि कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद और राम मंदिर पर फैसला आने के बाद भी देश में कोई गड़बड़ नहीं हुई, कोई हिंसा नहीं हुई. दो समुदायों के बीच नफरत पैदा नहीं हुई और इसी सद्भाव को देखकर टुकड़े-टुकड़े गैंग घबरा गया है और वो अब नए कानून के नाम पर देश के मुसलमानों के डरा रहा है.

हमें गर्व है कि 4 साल पहले हमने ही टुकड़े टुकड़े और अफज़ल प्रेमी गैंग की पहचान सबसे पहले की थी और देश को ये दोनों नाम दिए थे. ताकि ऐसे लोगों की पहचान आसानी से हो सके.

लेकिन किसी भी रोग का वायरस एक माध्यम के ज़रिए ही शरीर में प्रवेश करता है. ये माध्यम हवा, पानी, भोजन और संपर्क में से कुछ भी हो सकता है. इसी तरह देश विरोध का वायरस फैलाने के लिए टुकड़े टुकड़े और अफज़ल प्रेमी गैंग एक माध्यम का इस्तेमाल करता है. और इस माध्यम का नाम है मीडिया इसमें न्यूज चैनल्स, अखबार और सोशल मीडिया शामिल हैं. ये सभी माध्यम उन लोगों के कब्ज़े में हैं. जिनके लिए देश के हित से बड़ा अपना एजेंडा है. और ये लोग इसी एजेंडे के सहारे देश विरोधी मिशन को अंजाम देते हैं.

टुकड़े टुकड़े और अफज़ल प्रेमी गैंग का नया मिशन है नए नागरिकता कानून का विरोध करना. और इस विरोध के लिए ये लोग न्यूज़ चैनलों और सोशल मीडिया की खूब मदद लेते हैं. इन लोगों के इशारे पर मीडिया नए नागरिकता कानून के विरोध में हो रही रैलियों और विरोध प्रदर्शनों की तस्वीरें तो दिखाता है लेकिन इस कानून के समर्थन में होने वाली रैलियों में मीडिया के इस हिस्से की कोई दिलचस्पी नहीं है. जबकि सच ये है कि नया नागरिकता कानून आने के बाद से देश के लगभग हर हिस्से में इस कानून के समर्थन में भी रैलियां हो रही हैं.

पिछले महीने सूरत औरंगाबाद, बड़ौदा, जम्मू, पटना और पुणे समेत देश के कई शहरों में इस कानून के समर्थन में बड़ी रैलियां हुईं. जिनमें हज़ारों, लाखों लोगों ने हिस्सा लिया. लेकिन इन रैलियों के बारे में मीडिया आपको नहीं बताता. क्योंकि ये टुकड़े टुकड़े गैंग के एजेंडे को सूट नहीं करती हैं.

मीडिया में सिर्फ नागरिकता कानून के विरोध से जुड़ी खबरों की भरमार है. ये विरोध प्रदर्शन छात्र नेताओं के लिए राजनीति में आने का लॉन्च पैड बन गए हैं. राजनेताओं के डूबते करियर को बचाने का माध्यम बन गए हैं और फिल्मी लोगों के लिए..अपनी फिल्मों के प्रचार का ज़रिया बन गए हैं.

बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान इस बात का जिक्र किया था. उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं से कहा था कि वो अपनी बात जनता तक पहुंचाने के लिए इन माध्यमों पर भरोसा ना करें और जनता से सीधे संवाद करें. आप सोचिए कि हमारे देश की मौजूदा स्थिति ऐसी हो गई है की, देश के प्रधानमंत्री को अपने नेताओं से ये कहना पड़ता है कि वो इन माध्यमों के भरोसे ना रहें और जनता से सीधा संवाद करें. 

जो लोग मीडिया और सोशल मीडिया का सहारा लेकर नए नागरिकता कानून का विरोध कर रहे हैं उन्हें हम अमेरिका और मेक्सिको के बॉर्डर के बारे में बताना चाहते हैं. जहां से अप्रवासी गैरकानूनी तरीके से अमेरिका में घुसने की कोशिश करते हैं तो उन्हें पकड़ लिया जाता है.

अमेरिका की पुलिस इन घुसपैठियों को रोकने के लिए बल प्रयोग भी करती है. इन्हें डिटेंशन सेंटर में भी भेज देती है. जहां इन लोगों को महीनों या फिर कई बार वर्षों तक रहना पड़ता है. जांच के बाद ज्यादातर घुसपैठियों को वापस उनके देश भेज दिया जाता है. अमेरिका के राष्ट्रपति एक ऐसे नेता के तौर पर जाने जाते हैं जो इन गैरकानूनी प्रवासियों को किसी भी कीमत पर रोकना चाहते हैं. इसके लिए वो अमेरिका और मैक्सिको के बॉर्डर पर एक दीवार भी बनवा रहे हैं. 

आपको जानकर हैरानी होगी कि अमेरिका सिर्फ गैरकानूनी प्रवासियों को ही नहीं रोक रहा बल्कि कानूनी रूप से अमेरिका आने वाले लोगों पर भी सख्ती की जा रही है. इसी का नतीजा है कि वर्ष 2016 से 2018 के बीच अमेरिका जाने वाले भारतीयों की संख्या में 7 प्रतिशत से ज्यादा की कमी आई है और जो भारतीय वर्किंग वीजा पर लंबे वक्त से अमेरिका में रहे रहे हैं वो जल्दी से जल्दी अमेरिका की नागरिकता हासिल करना चाहते हैं.

यूनाइटेड स्टेट्स सिटिजनशिप इमग्रेशन सर्विसिस की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में 50 हज़ार से ज्यादा भारतीयों ने अमेरिका की नागरिकता हासिल की. अमेरिका में वीजा पर रहने वाले भारतीयों की चिंता ये है कि उन्हें कभी भी अमेरिका से बाहर निकाला जा सकता है. इसलिए ये लोग जल्द से जल्द अमेरिका के नागरिक बन जाना चाहते हैं.

भारत में रहने वाले लाखों लोगों का सपना भी होता है कि वो अमेरिका में जाकर बस जाए जो लोग आज सड़कों पर नागरिकता कानून का विरोध कर रहे हैं वो अमेरिका का वीज़ा लेने के लिए अमेरिकी दूतावास के बाहर लाइन लगाकर खड़े हो जाते हैं और उनसे जितने कागज़ मांगे जाते हैं सब इन्हें दिखाने पड़ते हैं.

आय के प्रमाण से लेकर, शादी की तस्वीरें, जन्म प्रमाण पत्र, और यहां तक कि अपने स्वास्थ्य से जुडी निजी जानकारियां भी अमेरिकी दूतावास के अधिकारियों को देनी पड़ती है. अमेरिका का वीज़ा हासिल करने के लिए 15 से 20 तरह के दस्तावेज़ दिखाने पड़ते हैं और फिर भी इस बात की गारंटी नहीं होती, कि आपको अमेरिका का वीज़ा मिल जाएगा.

अमेरिका जाने का सपना हमारे देश के डिजाइनर पत्रकारों, बुद्धीजीवियों और सेलिब्रटीज का भी होता है. लेकिन ये लोग अमेरिकी अधिकारियों से कभी ये नहीं कहते कि ये कागज़ नहीं दिखाएंगे. अमेरिका ही नहीं दुनिया के ज्यादातर विकसित देशों की यात्रा करने के लिए भी तमाम कागज़ दिखाने पड़ते हैं और ये लोग ऐसा खुशी खुशी करते हैं. लेकिन जब भारत में नागरिकता से जुड़े कागज़ मांगे जाते हैं तो इन लोगों को दिक्कत होने लगती है और ये लोग सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करने लगते हैं.

टुकड़े टुकड़े गैंग के सदस्य देश के लोगों को डिटेंशन सेटर्स का भी डर दिखाते हैं और अक्सर ये अफवाह उड़ाते हैं कि कागज़ नहीं दिखाने वाले मुसलमानों को इन डिटेंशन सेंटर्स में डाल दिया जाएगा. जबकि सच ये है कि भारत में इस वक्त सिर्फ 10 डिटेंशन सेंटर्स काम कर रहे हैं और ये सभी असम में हैं. इनमें से ज्यादातर का निर्माण तब हुआ था. जब असम में कांग्रेस की सरकार थी. गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक असम के डिटेंशन सेंटर्स में सिर्फ 970 लोगों को रखा गया हैं.

जबकि अमेरिका में डिटेंशन सेंटर्स की संख्या 15 से ज्यादा है. इसके अलावा वहां की जेलों और जूविनाइल डिटेंशन सेंटर में भी गैरकानूनी अप्रवासियों को लंबे वक्त तक रखा जाता है. कुल मिलाकर अमेरिका में 52 हज़ार से ज्यादा लोग इन डिटेंशन सेंटर्स में बंद हैं. जबकि दुनिया भर में मौजूद डिटेंशन सेंटर्स की संख्या 2 हज़ार से ज्यादा है. जिनमें मौजूद लोगों की संख्या लाखों में हैं.

लेकिन हमारे देश के डिजाइनर पत्रकार और बुद्धीजीवी इन विकसित देशों की नीतियों का विरोध नहीं करते क्योंकि इन लोगों का सपना ही ये होता है कि जब इनके एजेंडा की बिक्री बंद हो जाए तो ये अपना बाकी का जीवन, अमेरिका जैसे देशों में आराम करते हुए बिताएं. और फिर वहां के अखबारों में भारत विरोधी लेख लिखकर अपनी पेंशन का इंतज़ाम करते रहें.

टुकड़े टुकड़े गैंग का इलाज
भारत विरोधी इस गैंग के बारे में जानकर आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि इनका इलाज क्या है. तो आज हम आपको इलाज के बारे में भी बता देते हैं. आप इन लोगों को जिन लक्षणों से पहचान सकते हैं उनके बारे में हम आपको बता चुके हैं. और इन लोगों को कैसे अपना एजेंडे वाला वायरस फैलाने से रोका जा सकता है. 

ये अब हम आपको बताते हैं. इसके लिए आपको चीन से आई एक खबर के बारे में जानना होगा. चीन में इन दिनों एक रहस्मयी वायरस तेज़ी से फैल रहा है. इस वायरस का नाम है कोरोना वायरस. इस वायरस के बारे में अभी डॉक्टर्स के पास ज्यादा जानकारियां तो नहीं है लेकिन फिलहाल डॉक्टर इस वायरस से पीड़ित मरीज़ों का इलाज उन्हें अलग-थलग में रखकर कर रहे हैं.

यानी इन मरीज़ों को दूसरे मरीज़ों से दूर रखा जा रहा है ताकि ये वायरस तेज़ी से ना फैले. इस वायरस की गंभीरता को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी एक आपात बैठक बुलाई है और भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में ऐसे आईसोलेशन वार्ड तैयार किए जा रहे हैं. जिनमें कोरोना वायरस से पीड़ित मरीज़ों को रखा जा सके.

इसी खबर में देश विरोधी वायरस फैलाने वालों का इलाज भी छिपा है. इलाज ये है कि आपको लक्षणों की पहचान करने के बाद टुकड़े टुकड़े और अफज़ल प्रेमी गैंग की पहचान करनी होगी. और इन्हें समाज से अलग थलग करना होगा. जब देश और समाज ऐसे लोगों को पहचानना सीख जाएगा तो ये रोग अपने आप जड़ से खत्म हो जाएगा और जब तक ये नहीं होता हम आपको इन लोगों की पहचान के तरीके बताते रहेंगे.

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