ईडी केस में पी चिदंबरम की अग्रिम जमानत याचिका पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान ईडी की ओर से पेश सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अगर चिदंबरम को अग्रिम जमानत सुप्रीम कोर्ट देता है तो उसके विनाशकारी परिणाम होंगे.
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नई दिल्ली: INX मीडिया हेराफेरी से जुड़े ईडी केस में पी चिदंबरम की अग्रिम जमानत याचिका पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान ईडी की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अगर चिदंबरम को अग्रिम जमानत सुप्रीम कोर्ट देता है तो उसके विनाशकारी परिणाम होंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि इसका सीधा असर विजय माल्या, मेहुल चौकसी, नीरव मोदी, शारदा चिटफंड, टेरर फंडिंग जैसे मामले पर पड़ेगा. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सबूत दिखाकर बिना गिरफ्तारी पूछताछ की मांग का विरोध करते हुए कहा कि जांच कैसे हो, एजेंसी ज़िम्मेदारी से इसका फैसला लेती है. जो आरोपी आज़ाद घूम रहा है, उसे सबूत दिखाने का मतलब है बचे हुए सबूत मिटाने का न्योता देना.
ED की दलील
तुषार मेहता ने कहा कि जांच को कैसा बढ़ाया जाए, ये पूरी तरह से एजेंसी का अधिकार है. केस के लिहाज से एजेंसी तय करती है कि किस स्टेज पर किन सबूतों को जाहिर किया जाए और किन को नहीं. अगर गिरफ्तार करने से पहले ही सारे सबूतों, गवाहों को आरोपी के सामने रख दिया जाएगा तो ये तो आरोपी को सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने और मनी ट्रेल को ख़त्म करने का मौक़ा देगा.
उन्होंने कहा कि पी चिदंबरम के वकील कपिल सिब्बल का कहना है कि अपराध की गंभीरता 'सब्जेक्टिव टर्म' है. PMLA के तहत मामले उनके लिहाज से गंभीर नहीं होंगे, पर हकीकत ये है कि इस देश की अदालतें आर्थिक अपराध को गंभीर मानती रही हैं. दरअसल सिब्बल ने बुधवार को सुनवाई के दौरान कहा था कि 7 साल से कम तक की सज़ा के प्रावधान वाले अपराध को CRPC के मुताबिक कम गंभीर माना जाता है. तुषार मेहता ने कहा कि इस मामले में अपराध देश की अर्थव्यवस्था के खिलाफ है. ऐसे मामलों में सज़ा का प्रावधान चाहे कुछ भी हो, सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक अपराध को हमेशा गंभीर अपराध माना है.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अगर ये मामला सेक्शन 45 PMLA के अंतर्गत भी नहीं आता हो तब भी ये मामला CrPC के सेक्शन 438 के अंतर्गत जरूर आता है, जिससे हमें गिरफ्तारी का हक़ मिलता है. इसके साथ ही तुषार मेहता ने सीलबंद रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को दी और कहा कि कोर्ट अगर चाहे तो इसको खोल सकता है. इसके साथ ही तुषार मेहता ने अपनी बहस पूरी की.
पी चिदंबरम का पक्ष
उसके बाद पी चिदंबरम के वकील कपिल सिब्बल ने बहस शुरू की. सिब्बल ने कहा कि इस मामले में कई सालों तक कोई भी जवाबी हलफनामा नहीं दाखिल किया गया. सिब्बल की ओर से एक नोट कोर्ट को दिया गया, जिसको हुबहु हाई कोर्ट के फैसले में लिखा गया है. सिब्बल ने कहा कि किसी भी दस्तावेज़ को केस डायरी में शामिल नहीं किया जा सकता और इसको कोर्ट में साबित करना होगा.
कपिल सिब्बल ने कहा कि आर्टिकल 21 मेरा संरक्षण करता है. अग्रिम जमानत मेरा अधिकार है, मेरा अधिकार मुझसे नहीं छीना जा सकता है. ED ने एक भी फ़र्ज़ी संपत्ति, फ़र्ज़ी बैक अकाउंट के बारे में कोर्ट में नही बताया. मैं एक सम्मानित टैक्स पेयर हूं. मैं समय पर टैक्स देता हूं. सिब्बल ने कहा कि ED के हलफनामे में बैंक अकाउंट प्रोपर्टी के बारे में है लेकिन अभी तक कोर्ट में एक भी दस्तावेज़ नहीं पेश किया गया.
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अब तक क्या हुआ?
इससे पहले बुधवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने चिदम्बरम के तरफ से ADM जबलपुर फैसले को कोर्ट के सामने रखा था. उन्होंने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग काफी चतुर व्यक्तियों द्वारा ही किया जाता है इसमें आदमी इस प्रकार के अपराध में नहीं शामिल होता इसलिए अपराध की गंभीरता समझना चाहिए. जबकि ये मामला महज अग्रिम जमानत का है. इस अपराध में मनी ट्रेल को पकड़ना जरूरी होता है, लेकिन इससे जुड़े सबूत इकट्ठा करना काफी मुश्किल काम है.
तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को सील कवर में रिपोर्ट देते हुए कहा था कि उसको देखकर चिदंबरम की अग्रिम जमानत पर फैसला लें. मनी लॉन्ड्रिंग कभी भी हीट ऑफ द मूवमेंट में नहीं होती. ये बेहद चालाकी से किया जाता है. ज्यादातर मनी लॉन्ड्रिंग डिजिटल ऑपरेशन की तरह है. ये रेप की तरह मामला नहीं है कि फोरेंसिक टीम खून का सैंपल कलेक्ट कर सके. ED ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वो जांच की प्रगति रिपोर्ट चिदंबरम से साझा नहीं कर सकती, जब तक इस मामले में आरोपपत्र दाखिल नहीं होता. तुषार मेहता ने कहा कि इस मामले में सबूत बेहद संवेदनशील हैं लिहाजा इसको चिदंबरम से साझा नहीं कर सकते. हम मनी लॉन्ड्रिंग की जांच करने वाली ग्लोबल ऐजेंसी के पार्ट हैं. इंडिया उस अंतरराष्ट्रीय समुदाय का हिस्सा है जो मनी लॉन्ड्रिंग पूरी तरह से खत्म करना चाहती है.
तुषार मेहता ने कहा कि चिदंबरम का तर्क है कि धन का लेन-देन कानून बनने से पहले होने पर लागू नहीं होता लेकिन कानून बनने के बाद भी पैसे का लेन-देन जारी रहा. हमारे पास पैसे के लेनदेन लगातार जारी रसने के पुख्ता सबूत हैं.मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में संपत्ति को संबंधित विभाग द्वारा अटैच किया जाता है, इस मामले में हमने किया. तुषार मेहता ने कहा कि सिब्बल का कहना है कि अपराध की श्रेणी में आने से पहले यानी कानून बनने से पहले पैसे का लेनदेन हुआ था "ED के हिसाब" से. सिब्बल ने कहा था कि इसका मतलब ये है कि ये अपराध नहीं है. हमारे पास सबूत है कि कानून बनने के बाद भी पैसे का लेनदेन हुआ.
तुषार मेहता ने कहा था कि ED के पास ये अधिकार है कि हम आरोपी को गिरफ्तार कर सकें या हिरासत में पूछताछ जरूरी है या नहीं, ये विशेष कोर्ट तय करे. स्पेशल जज को ही ये अधिकार है कि वो PMLA के मामले में कस्टडी से संबंधित मामले में आदेश दे. इस मामले में गिरफ्तारी जरूरी है इसको लेकर हम पर्याप्त सबूत हमारे पास हैं. जांच रिपोर्ट और जानकारी सील कवर रिपोर्ट में संबंधित विभाग को दी गई है. इस मामले में हमें कई सबूत मिले हैं जैसे विदेश के बैंक से मिली जानकारी.
तुषार मेहता ने कहा कि मैं अदालत को वो मैटेरियल दिखाने को तैयार हूं. जिसके आधार पर मैं आरोपी की गिरफ्तारी की मांग कर रहा हूं. विदेश में बैंकों ने संपत्तियों के बारे में ठोस जानकारी दी है. प्रॉपर्टी की जानकारी दी है. हमने इसके लिये लेटर-रोगेटरी जारी किया है. जांच के दौरान इकट्ठा किए गए सबूतों की प्रतियां आरोप पत्र दाखिल करने से पहले आरोपियों के साथ साझा नहीं की जा सकती हैं. केस डायरी सबूत नहीं है. पूछताछ या सुनवाई के दौरान अदालत इसे मांग सकती है. मुझे इसमें दर्ज केस के हर पहलू को साबित करना होगा. अग्रिम जमानत की मांग के दौरान बड़ी तादाद में दस्तावेज़ थे, जिनसे स्पष्ट होता है कि यह मामला अभियोग का बनता है और सील कवर में दस्तावेज कोर्ट को दिया जाना ऐसे मामले में गलत नहीं माना जा सकता.