नई दिल्ली: सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को रोजगार एवं शिक्षा में आरक्षण देने संबंधी संविधान (124वां संशोधन) विधेयक को संसद की मंजूरी मिली. आर्थिक आरक्षण बिल पर 8 घंटे की चर्चा के बाद वोटिंग शुरू हुई. वोटिंग में 174 लोगों ने हिस्सा लिया. बिल को सिलेक्ट कमेटी को भेजने का प्रस्ताव गिर गया. बाद में राज्यसभा ने भी भारी मतों से इस बिल को पास कर दिया. आर्थिक आरक्षण बिल के पक्ष में 165 वोट पड़े. विरोध में 7 वोट पड़े. इस विधेयक का विरोध सिर्फ डीएमके ने किया. अब ये बिल मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा. इसके बाद ये कानून बन जाएगा. ये बिल इस मायने में काफी अहम है, क्योंकि दो दिन के अंदर ये बिल पास हो गया.
राज्यसभा में पेश होने के बाद दोपहर दो बजे से इस पर चर्चा शुरू हुई. चर्चा की शुरुआत करते हुए बीजेपी सांसद प्रभात झा ने कहा कि लंबे समय से आर्थिक आधार पर आरक्षण बिल का इंतजार था. पीएम मोदी ने अगड़े समाज की चिंता की. मोदी सरकार सारे काम गरीबों के हित में कर रही है. मोदी सरकार ने राष्ट्रहित में फैसला लिया. उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि राहुल गांधी आर्थिक आरक्षण बिल पर बोलने की हिम्मत दिखाएं. इस पर कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने आपत्ति जताते हुए कहा कि किसी भी सदस्य को ऐसे किसी दूसरे सदस्य पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए जोकि इस सदन का सदस्य नहीं हैं. राहुल गांधी लोकसभा सांसद हैं.
कांग्रेस
आनंद शर्मा ने कहा कि लोगों को भ्रमित करने का काम ना किया जाए. हमारी पार्टी इस विधेयक के खिलाफ नहीं है. लेकिन हम इसकी टाइंमिंग को लेकर कुछ सवाल सदन में करना चाहते है. आनंद शर्मा ने कहा कि 2014 में देश के लोगों को सब्जबाग दिखाए गए थे. इस बात को मत भूलिए कि आपने क्या कहा था? क्या सबका साथ सबका विकास सही मायने में हो रहा है? अच्छे दिन का इंतजार अभी तक हो रहा है. कांग्रेस ने सवाल किया कि बीजेपी ने यह बिल 4 साल 7 महीने बाद क्यों लाया है? कांग्रेस ने कहा कि आप विधानसभा चुनाव 5-0 से हार गए तो आपने ये फैसला कर लिया? अभी तो छोटा संदेश दिया है, बड़े संदेश का इंतजार करें वो भी मिलेगा.
समाजवादी पार्टी
समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव ने कहा कि आरक्षण आप दे रहे लेकिन जब नौकरी ही नहीं होगी तो आरक्षण का मतलब क्या होगा? प्रोपगेंडा करके क्या होगा? मैं इस विधेयक का समर्थन करते हुए यह मांग करूंगा कि जब आपने 50 प्रतिशत का बैरियर पार कर दिया है तो ओबीसी को 27 प्रतिशत से ज्यादा 54 प्रतिशत आरक्षण दिया जाए उसकी आबादी के हिसाब से. एससी एसटी की आबादी 25 प्रतिशत हो गई है तो उनका आरक्षण भी बढ़ाकर 25 प्रतिशत किया जाए. ओबीसी की हालत बहुत खराब है, सच्चर कमेटी के मुताबिक मुस्लिमों की स्थिति भी हिंदुस्तान में दलितों से खराब है. तो इसी आधार पर हमने मुस्लिमों को आरक्षण की मांग की थी. यदि शरीर के एक हिस्से में भी दर्द होगा तो पूरे शरीर को तकलीफ होगी. ओडिशा में जनरल कैटगरी की जनसंख्या 6 प्रतिशत है लेकिन वहां 50 प्रतिशत सामान्य वर्ग के लिए है. ओडिशा के लोगों को भी पूरा आरक्षण दीजिए.
टीएमसी
इस चर्चा में तृणमूल कांग्रेस की ओर से हिस्सा लेेते हुए डेरेक ओ ब्रायन ने महिला आरक्षण का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा समाज में बराबरी के लिए महिलआें को अध्ािकार मिलना जरूरी है. हालांकि इस बिल के बहाने उन्होंने टीएमसी ने भी सरकार की मंशा पर सवाल उठाए.
बीजेडी
बीजेडी ने इस बिल का समर्थन किया. उन्होंने कहा, आरक्षण कोई नया मुद्दा नहीं है. बीजेडी की ओर से प्रसन्ना आचार्य ने कहा, ये बिल सदन से तो पास हो जाएगा, लेकिन कोर्ट में गिर जाएगा. इसके लिए उन्होंने अपने तर्क गिनाए. इसके अलावा बीजेडी सांसद ने घटती नौकरियों पर भी सवाल उठाए. उन्होंने इस दौरान सबरीमाला मंदिर में प्रवेश के बहाने भी बीजेपी पर निशाना साधा. उन्होंने कहा, ये बिल सही लाए हैं, लेकिन कोर्ट में ये बिल गिर सकता है. हमारी पार्टी इसका पूरी तरह से समर्थन करती है.
आरजेडी और डीएमके ने किया विरोध
सवर्णों को आरक्षण देने के मुद्दे पर लाए गए संविधान संशोधन विधेयक में चर्चा के दौरान डीएमके और आरजेडी ने इस विधेयक का विरोध किया. चर्चा में हिस्सा लेते हुए डीएमके की ओर से कनिमोझी ने कहा, हम इस विधेयक का विरोध करते हैं. क्योंकि ये संविधान की मूल भावना के खिलाफ है. संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण की व्यवस्था नहीं है.
रविशंकर प्रसाद ने उठाए सवाल
केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, अगड़ों में भी गरीबी हैं. वहां भी कई लोग मजदूरी करते हैं. उन्होंने कहा, कई लोग सवाल उठा रहे हैं कि कोर्ट में बिल गिर जाएगा. मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि संविधान की मूल भावना को बदलने के सिवाए उसमें कुछ भी बदलाव संसद कर सकती है.
रविशंकर प्रसाद ने कहा, हम मूल आरक्षण में बदलाव नहीं कर रहे हैं. ये आरक्षण केंद्र ही नहीं प्रदेश में भी लागू होगा. उन्होंने कहा, 2010 में कांग्रेस के पास ये मौका था, लेकिन वह इसे नहीं लाए. तब वह इसे क्यों नहीं लाए.
रविशंकर प्रसाद के बयान पर कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने सवाल उठाते हुए कहा, जब सुप्रीम कोर्ट में 9 जजों की बेंच इसे असंवैधानिक बता चुकी है, तब इसे आप कैसे पास करा सकते हैं. उन्होंने बिल में सरकार की सिफारिशों पर भी सवाल उठाए.
बीएसपी
बीएसपी के नेता सतीशचंद्र मिश्रा ने इस मामले में विधेयक का समर्थन किया, लेकिन उन्होंने सरकार की मंशा पर सवाल उठाए. सतीश चंद्र मिश्रा ने कहा, जब आप संविधान संशोधन ला रहे हैं, तो आप जातिगत जनगणना के आंकड़े क्यों नहीं जारी कर रहे हैं. आपने कहा है कि आपने आखिरी क्षणों में छक्का मारा है, लेकिन वह बाहर नहीं गया है.
आम आदमी पार्टी
आम आदमी पार्टी की ओर से संजय सिंह ने इस बिल का समर्थन तो किया, लेकिन सरकार पर हमला किया. संजय सिंह ने कहा, अगर ये बिल आज पास हो गया तो आने वाले दिनों में आरएसएस दलित और पिछड़ों का आरक्षण खत्म कर देगी. आरएसएस ने पिछले 90 साल में एक भी प्रमुख दलित नहीं बनाया है.
पहले इस बिल पर चर्चा के लिए तीन घंटे का समय निर्धारित किया गया था लेकिन बाद में इसे बढ़ाकर 8 घंटे कर दिया गया. हालांकि आज राज्यसभा में सदन की कार्यवाही शुरू होते ही विपक्ष ने हंगामा किया. दरअसल विपक्ष नागरिकता मामले पर नार्थ ईस्ट में हो रहे बवाल पर सरकार से जवाब मांग रहा था. इस कारण सदन की कार्यवाही पहले 12 बजे तक स्थगित करनी पड़ी और उसके बाद दोपहर दो बजे तक स्थगित कर दी गई.
आज सदन की कार्यवाही में ट्रिपल तलाक़ बिल को भी सूचीबद्ध किया गया है. इस कारण सरकार आज राज्यसभा में ट्रिपल तलाक़ बिल को भी पास कराने की कोशिश करेगी. वैसे इसके पास होने के आसार नहीं हैं, क्योंकि विपक्ष इसको संयुक्त सेलेक्ट कमेटी में भेजने पर अड़ा हुआ है. यानी ये बिल राज्यसभा में दूसरी बार अटक सकता है. संभवतया इसलिए ही संसदीय कार्यमंत्री विजय गोयल ने कहा कि कई अहम बिल सदन में पास होने के लिए लंबित हैं. इसलिए सदन की कार्यवाही एक दिन के लिए और बढ़ाई जा सकती है. इस बीच अन्नाद्रमुक ने कहा है कि वह आरक्षण बिल पर वाकआउट करेगी. AIADMK के राज्यसभा में 13 सांसद हैं.
आर्थिक आरक्षण बिल (124वां संविधान संशोधन विधेयक)
राज्यसभा में विपक्ष की तरफ से कांग्रेस, सपा और बसपा ने आरक्षण बिल को समर्थन देने का ऐलान किया है. कांग्रेस कोर ग्रुप की बैठक में इस बिल को समर्थन देने का फैसला किया गया है. राज्यसभा में कांग्रेस के 50 सांसद हैं. इस लिहाज से देखा जाए तो बीजेपी के नेतृत्व वाले NDA और कांग्रेस के सांसदों को मिलाकर देखें तो ये बिल दो तिहाई बहुमत से आसानी से पास हो जाएगा. इससे पहले मंगलवार को लोकसभा में मौजूद 326 सांसदों में से 323 ने बिल के समर्थन में वोट दिए, जबकि 3 ने इस विधेयक के विरोध में वोट दिए, इस दौरान पीएम नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे.
विपक्षी पार्टियों ने अपने सभी सदस्यों से बुधवार को राज्यसभा में मौजूद रहने के लिए कहा
सूत्रों ने यह जानकारी देते हुए बताया कि विपक्षी पार्टियों ने अपने सभी सदस्यों से बुधवार को राज्यसभा में मौजूद रहने के लिए कहा है. राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है. मंगलवार (08 जनवरी) को लोकसभा में पेश किए गए आरक्षण विधेयक का लगभग सभी पार्टियों ने समर्थन किया, लेकिन राज्यसभा में विपक्षी पार्टियां इस पर कड़ा रुख अपना सकती हैं. राज्यसभा में बीजेपी के पास सबसे अधिक 73 सदस्य हैं, जबकि मुख्य विपक्षी कांग्रेस के 50 सदस्य हैं. राज्यसभा में अभी सदस्यों की कुल संख्या 244 है.
सूत्रों ने यह भी बताया कि विपक्षी पार्टियों के नेता राज्यसभा की कार्यवाही एक दिन के लिए बढ़ाने के सरकार के ‘‘एकतरफा’’ कदम का भी विरोध कर रहे हैं और वे सदन में विरोध प्रदर्शन करेंगे. उन्होंने बताया कि कांग्रेस इस विधेयक का समर्थन कर सकती है, जबकि विपक्षी पार्टियां इसे पारित करने में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं.
मोदी सरकार ने गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की.(फाइल फोटो)
लोकसभा में हो चुका है पास
आरक्षण संबंधी संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा से पारित लोकसभा में मंगलवार को विपक्ष सहित लगभग सभी दलों ने ‘‘संविधान (124 वां संशोधन) , 2019’’ विधेयक का समर्थन किया. साथ ही सरकार ने दावा किया कि कानून बनने के बाद यह न्यायिक समीक्षा की अग्निपरीक्षा में भी खरा उतरेगा क्योंकि इसे संविधान संशोधन के जरिये लाया गया है.
लोकसभा में केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी सरकार बनने के बाद ही गरीबों की सरकार होने की बात कही थी और इसे अपने हर कदम से उन्होंने साबित भी किया. उनके जवाब के बाद सदन ने 3 के मुकाबले 323 मतों से विधेयक को पारित कर दिया.
चर्चा का जवाब देते हुए गहलोत ने कहा कि बहुत सारे सदस्यों ने आशंका जताई है कि 50 फीसदी आरक्षण की सीमा है तो यह कैसे होगा? जो पहले के फैसले किए गए वो संवैधानिक प्रावधान के बिना हुए थे. उन्होंने कहा कि नरसिंह राव की सरकार को संवैधानिक प्रावधान के बिना 10 फीसदी आरक्षण का आदेश जारी किया था, जो नहीं करना चाहिए था. मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की नीति और नीयत अच्छी है. इसलिए संविधान में प्रावधान करने के बाद हम आरक्षण देने का काम करेंगे. ऐसे में इस तरह की (उच्चतम न्यायालय में निरस्त होने की) शंका निराधार है.
इस दौरान सदन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, गृह मंत्री राजनाथ सिंह मौजूद थे. सदन में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मौजूद दें . गहलोत ने कहा कि पूरे विचार-विमर्श के बाद यह कदम उठाया गया है. हम देर से लाए, लेकिन अच्छी नीयत से लाए. इसलिए आशंका करने की जरूरत नहीं है.
गहलोत ने कहा कि यह विधेयक अमीरी और गरीबी की खाई को कम करेगा. इससे लाखों परिवारों को फायदा मिलेगा. इससे सबको फायदा होगा चाहे वह किसी वर्ग या धर्म के हों. उन्होंने विधेयक को नरेन्द्र मोदी सरकार के लक्ष्य ‘सबका साथ, सबका विकास’ की दिशा में अहम कदम करार दिया. मंत्री के जवाब के बाद सदन ने 3 के मुकाबले 323 मतों से विधेयक को मंजूरी दे दी.
अन्नाद्रमुक के एम थंबिदुरै, आईयूएमएल के ई टी मोहम्मद बशीर और एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने विधेयक का विरोध किया था.
इससे पहले विधेयक पर हुई चर्चा में कांग्रेस सहित विभिन्न विपक्षी दलों द्वारा इस विधेयक का समर्थन करने के बावजूद न्यायिक समीक्षा में इसके टिक पाने की आशंका जतायी गयी और पूर्व में पी वी नरसिंह राव सरकार द्वारा इस संबंध में लाये गये कदम की मिसाल दी गयी. कई विपक्षी दलों का आरोप था कि सरकार इस विधेयक को लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखकर लायी है.
वित्त मंत्री अरूण जेटली ने विधेयक में हुई चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए इस संबंध में विपक्ष के आरोपों को निर्मूल करार देते हुए कहा कि यह न्यायिक समीक्षा में इसलिए टिकेगा क्योंकि इस विधेयक के जरिये संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 में संशोधन किया गया है. उन्होंने कहा कि संविधान की मूल प्रस्तावना में सभी नागरिकों के विकास के लिए समान अवसर देने की बात कही गयी है और यह विधेयक उसी लक्ष्य को पूरा करता है.
जेटली ने कहा कि कांग्रेस सहित विभिन्न दलों ने अपने घोषणापत्र में इस संबंध में वादा किया था कि अनारक्षित वर्ग के गरीबों को आरक्षण दिया जाएगा. उन्होंने विपक्षी दलों को शिकवा-शिकायत छोड़कर ‘‘बड़े दिल के साथ’’ इस विधेयक का समर्थन करने को कहा. कांग्रेस नेता के वी थामस ने इस विधेयक को लोकसभा चुनाव के मद्देनजर जल्दबाजी में लाने की कवायद करार दिया और कहा कि इसमें कानूनी त्रुटियां हैं. उन्होंने यह भी कहा कि उनकी पार्टी विधेयक की अवधारणा का समर्थन करती है.
रामविलास पासवान
केंद्रीय मंत्री एवं लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान ने इसका स्वागत करते हुए कहा कि विधेयक को संविधान की नौवीं अनुसूची में डाला जाना चाहिए ताकि यह न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर हो जाए . उल्लेखनीय है कि इस विधेयक के तहत सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण सुनिश्चित करने का प्रस्ताव किया गया है . केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सोमवार को ही इसे मंजूरी प्रदान की है.
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि वर्तमान में नागरिकों के आर्थिक रूप से दुर्बल वर्ग, ऐसे व्यक्तियों से, जो आर्थिक रूप से अधिक सुविधा प्राप्त है, से प्रतिस्पर्धा करने में अपनी वित्तीय अक्षमता के कारण उच्चतर, शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश और सार्वजनिक क्षेत्र में रोजगार पाने से अधिकांशत: वंचित रहे हैं.
अनुच्छेद 15 के खंड 4 और अनुच्छेद 16 के खंड 4 के अधीन विद्यमान आरक्षण के फायदे उन्हें साधारणतया तब तक उपलब्ध नहीं होते हैं जब तक कि सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के निर्दिष्ट मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं .
संवैधानिक प्रावधान
संविधान के अनुच्छेद 46 के अंतर्विष्ट राज्यों के नीति निर्देश तत्वों में यह आदेश है कि राज्य, जनता के दुर्बल वर्गो के विशिष्टतया अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय एवं सभी प्रकार के शोषण से उनकी संरक्षा करेगा .
संविधान का 93वां संशोधन अधिनियम 2005 द्वारा संविधान के अनुच्छेद 15 खंड 5 अंत:स्थापित किया गया था जो राज्य को नागरिकों के सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गो की उन्नति के लिये या अनुसूचित जातियों के संबंध में विशेष उपबंध करने के लिये समर्थ बनाता है.
इसमें कहा गया है कि फिर भी नागरिकों के आर्थिक रूप से दुर्बल वर्ग आरक्षण का फायदा लेने के पात्र नहीं थे . संविधान 124वां संशोधन विधेयक 2019 उच्चतर शैक्षणिक संस्थाओं में, चाहे वे राज्य द्वारा सहायता पाती हों या सहायता नहीं पाने वाली हों, समाज के आर्थिक रूप से दुर्बल वर्गो के लिये आरक्षण का उपबंध करने तथा राज्य के अधीन सेवाओं में आरंभिक नियुक्तियों के पदों पर उनके लिये आरक्षण का उपबंध करता है.
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