मुखपत्र 'सामना' में शिवसेना ने लिखा है कि लोगों को खुश करने की घोषणाएं और लोकप्रिय निर्णयों का धूम-धड़ाका होलसेल में शुरू हो जाए तो समझ लीजिए कि चुनाव करीब आ गए हैं. फिर सरकार चाहे किसी भी दल की हो, चुनाव के मुहाने पर इस तरह की गतिविधियां अधिक तेजी से होने लगती हैं.
Trending Photos
मुंबई: लोकसभा चुनाव की हलचल के बीच महाराष्ट्र और केंद्र में सहयोगी शिवसेना का बीजेपी की सरकारों पर हमले कम होने का नाम नहीं ले रहा है. मुखपत्र 'सामना' में शिवसेना ने लिखा है कि लोगों को खुश करने की घोषणाएं और लोकप्रिय निर्णयों का धूम-धड़ाका होलसेल में शुरू हो जाए तो समझ लीजिए कि चुनाव करीब आ गए हैं. फिर सरकार चाहे किसी भी दल की हो, चुनाव के मुहाने पर इस तरह की गतिविधियां अधिक तेजी से होने लगती हैं. चुनाव करीब आने पर माई-बाप मतदाताओं को मतलब जनता को सुखद लगनेवाले निर्णय लेने का मोह हर एक दल को होता है. इस तरह का निर्णय लेते समय समाज के सभी स्तर के वर्ग को कुछ-न-कुछ देकर पुचकारने की कोशिश सत्ताधारी करते रहते हैं. केंद्र और राज्य में भी इन दिनों ऐसा ही कुछ जारी है.
सामना में आगे लिखा गया है कि सरकार की ओर से लिए गए अच्छे निर्णयों का विरोध करने की कोई वजह नहीं. मगर यही निर्णय सत्ता मिलने के बाद पहले एक-दो वर्षों में क्यों नहीं लिए जा सकते, यही असली विवाद का मुद्दा है. महाराष्ट्र सरकार ने बुधवार को मंत्रिमंडल की बैठक के बाद कई महत्वपूर्ण निर्णय घोषित किए. उन निर्णयों की खबर देते समय अधिकांश मीडिया ने ‘चुनाव धमाका’ ऐसा ही वर्णन किया है. यह पर्याप्त है. ओबीसी और घुमंतू जाति के महामंडलों की विभिन्न योजनाओं को पूरा करने के लिए करीब 736 करोड़ रुपए के अनुदान की घोषणा राज्य सरकार ने की है. मकर संक्रांति के दिन इस पैकेज का तिल-गुड़ वितरण का सरकारी कार्यक्रम संपन्न हुआ. वसंतराव नाईक विमुक्त जाति और घुमंतू जमात विकास महामंडल के लिए 300 करोड़ रुपए का अनुदान अगले तीन वर्षों में देने की घोषणा सरकार ने की है.
शिवसेना ने आगे कहा है कि इसके अलावा अन्य पिछड़े वर्ग के वित्त और विकास महामंडल के मार्फत विभिन्न योजनाओं को पूरा करने के लिए ढाई सौ करोड़ रुपए देने की घोषणा सरकार ने की है. ओबीसी क्षेत्र के युवा उद्योगपतियों को 10 से 50 लाख रुपए का कर्ज, ओबीसी लड़कों और लड़कियों के लिए हर जिले में इस तरह 36 होस्टल, दसवीं तक ओबीसी छात्रों के लिए छात्रवृत्ति, 12 बलूतेदारों के परंपरागत व्यवसाय के लिए 100 करोड़ और वडार, पारधी, रामोशी जैसे अति पिछड़े समाज के विकास के लिए 50 करोड़ रुपए के प्रावधान की घोषणा सरकार ने की है.
इन निर्णयों या घोषणाओं पर किसी तरह की आपत्ति जताने की कोई वजह नहीं है. मगर ये ओबीसी समाज और ये सभी वर्ग महाराष्ट्र में कई वर्षों से रह रहे हैं, यह आपको पता है ही न? फिर आज चुनाव के मुहाने पर ये जो निर्णय लिए जा रहे हैं, वे यदि सत्ता मिलने के समय ही हो गए होते तो सारे अनुदानों का वितरण हो गया होता और उसका उत्तम फल उस समाज तक अब तक पहुंच गया होता. चुनावी वर्ष में ओबीसी के तमाम वर्गों को सरकार ने सिर पर बिठाया है.
इसके अलावा ‘इलेक्शन धमाके’ के रूप में टिप्पणी करने या चुनाव से पहले खुश करने जैसा मामला बताकर चिढ़ाने का मौका मीडिया को नहीं मिला होता. मगर सरकार किसी भी दल की हो वो चुनाव के वर्ष में ढेर सारी घोषणाएं करने का मौका नहीं छोड़तीं. देश के हर नागरिक की ओर सिर्फ ‘हिंदुस्थानी’ के रूप में न देखते हुए उस पर जाति का सर्वाधिक लेबल चुनावी कार्यकाल में ही चिपकाया जाता है. चुनाव लड़ना और जीतना होगा तो इस तरह का ‘कौशल्य’ राजनीतिक दलों को दिखाना होता है. इस तरह का मजाक विश्लेषक मंडलियां भी कई बार राष्ट्रीय चैनलों पर करती हैं. इसे तो बहुत बड़ी मौज ही कहना होगा.
लोकसभा चुनाव के लिए अब करीब तीन माह का समय शेष है. चुनाव आयोग तारीख की समय सारिणी तैयार करने के काम में मशगूल है. लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने में अधिक समय नहीं बचा है इसीलिए ही केंद्र और राज्य सरकार की ओर से अनेक घोषणाओं की बरसात हो रही है. सरकार किसी भी दल की क्यों न हो महत्वपूर्ण निर्णय पहले के एक-दो वर्षों में वो क्यों नहीं लेती? 5 साल का कार्यकाल जब खत्म होने को है तब जात-पात, विभिन्न समाजों को नजर के सामने रख निर्णय होने लगे तो चुनाव में लाभ हो+ने की बजाय मजाक का ही सामना करना पड़ सकता है.